अगर किसी को कोई काम ठीक से समझाया जाए और वह उस काम के प्रति उत्साही हो, समर्पित हो तो काम बहुत अच्छे ढंग से निपटेगा। बात कर रहे हैं किष्किंधा कांड
के उस प्रसंग की जिसमें सीताजी की खोज में सुग्रीव ने वानरों का दल भेजा था। सबसे
पीछे खड़े हनुमानजी को देखकर श्रीराम ने एकांत में उनसे बात की थी। हमें इससे यह
शिक्षा मिलती है कि किसी को काम सौंपते हुए क्या करना है, कैसे करना है और क्यों करना है, यह सब बहुत साफ
तरीके से समझा दिया जाए। तुलसीदासजी ने चौपाई लिखी है –
बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु। कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु।।
हनुमत जन्म सुफल करि माना। चलेउ हृदयं धरि कृपानिधाना।
श्रीराम ने कहा, ‘बहुत प्रकार से सीता को समझाना और मेरा बल तथा विरह
(प्रेम) कहकर शीघ्र लौट आना। हनुमानजी ने अपना जन्म सफल समझा और कृपानिधान प्रभु
को हृदय में धारण कर चले।’
श्रीराम ने हनुमानजी से पहली बात कही कि सीता को समझाना है। जिस स्थिति में
सीता होंगी, जो उनकी मानसिकता होगी उसमें सीधी बातचीत से काम नहीं
चलेगा। उन्हें समझाना भी पड़ेगा। दूसरी बात
कहते हैं मेरे बल की व्याख्या करना और जिस विरह में मैं डूबा हुआ हूं उसकी भी
चर्चा करना। साथ ही सब काम करके शीघ्र लौट आना। हनुमानजी को जब यह कार्य सौंपा गया
तो वे बहुत प्रसन्न हुए। आभार व्यक्त किया और भगवान को हृदय में रखकर चल दिए। हम
कोई भी काम करें, उसके प्रति कृतज्ञता होनी चाहिए। काम को बोझ न मानें।
परमात्मा को हृदय में रखने का अर्थ है ऐसी शक्ति को अपने से जोड़े रखें जो हमें
निराशा से बचाए। इस दृश्य में हमने संदेश देने वाले की स्पष्टता देखी और काम करने
के लिए जिन्होंने संदेश लिया उनकी प्रसन्नता व उत्साह की मानसिकता देखी। ये दोनों
ही हमारे बड़े काम के हैं।
- पं. विजयशंकर मेहता
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