बच्चोंको सदा शास्त्रज्ञ, उद्योगपति, कुशाग्रबुद्धि के
प्रसिद्ध व्यक्तित्व की उत्तम कहानियां सुनाएं तथा बडे पद
को प्राप्त करने के लिए
उन व्यक्तियों को क्या परिश्रम करने पडे, कितना अध्ययन करना पडा, इसकी
जानकारी बच्चों के मनपर प्रभावकारी रूपसे अंकित हो, यह देखें । कठोर परिश्रम
का कोई पर्याय नहीं है । इस
विषय में उनके
मन में कोई
संदेह न रहे ।
बच्चों
के मनपर यह अंकित करें कि, स्वकर्म के फल उन्हें भोगने पडते हैं । अध्ययन करने से उनका आगे सर्वांगीण विकास होगा । कठोर, प्रामाणिक परिश्रम करने
वाले
के पीछे भगवान सदैव खडे रहते
हैं, यह बच्चों
के मनपर अंकित करना चाहिए ।
अध्ययन को सरल बनाने के लिए उपाय
बताने हेतु अलग-अलग साधनों की सहायता लें !
बच्चा जितना छोटा हो उतनी ही अलग-अलग
कहानियां अथवा उचित उदाहरण देकर विषय को सरल बनाकर अध्ययन में रुचि
निर्माण करना महत्त्वपूर्ण होता है । १० से १२ वर्ष
के बच्चों
में
अमूर्त कल्पन का विकास
नहीं हुआ होता;
और इस कारण बीजगणित के `क्ष’ का
निश्चित अर्थ क्या है यह वे समझ नहीं पाते ।
२-४ गोटियां पेन्सिल अथवा लकडी का उपयोग
करना महत्त्वपूर्ण होता है । बीच-बीच में बच्चको विषय समझ में आ
रहा है अथवा नहीं यह भी देखें । गणित, विज्ञान
जैसे विषया की नींव पक्का करना पालकों
के लिए संभव न हो, तो किसी अनुभवी शिक्षक
की सहायता लेना उचित होगा ।
यदि बच्चा अनुत्तीर्ण हो गया हो, तो उसे उच्चवर्ग में प्रोन्नत करने का
प्रयत्न न करें;
क्योंकि यदि उसके अध्ययन की
नींव ही कच्ची रह गई हो, तो उच्च
वर्ग में
प्रोन्नत होने पर वह अध्ययन में पिछड जाएगा । यदि बच्चा अनुत्तीर्ण हो गया हो, तो उसपर क्रोध न करें । बार-बार क्रोध करने से उसका
ध्यान और अल्प हो जाएगा और वह अध्ययन करना छोड देगा । उससे सहानुभूतिपूर्वक बात कर
उसके अनुत्तीर्ण होने के कारणों को समझकर उसमें सुधार कर सकते हैं ।
घरका वातावरण
अध्ययन हेतु पूरक रखें !
अच्छे अध्ययन
के लिए घरका वातावरण स्नेहपूर्ण, विश्वासनीय, शांत तथा
अध्ययन हेतु प्रेरक होना चाहिए । प्राचीनकाल
में बालकों को
विद्या प्राप्त करने के लिए आश्रम में भेजा जाता था तथा ये आश्रम गांव
से दूर, एकांत में, शांत, वातावरण में होते थे । आज की शिक्षा-प्रणाली में
अभिभावकों का उत्तरदायित्व बहुत बढ गया है । अतः घर का
वातावरण शांत,
स्नेहयुक्त तथा अध्ययन हेतु
प्रेरक हो, इसके प्रति अभिभावकों को
जागरूक होना चाहिए ।
बालक यदि अध्ययन कर रहा हो, तो उस
समय रेडियो अथवा दूरदर्शन न चलाएं । बच्चों के सामने मां-पिता आपस
में न झगडें, वैसे ही घर के काम छोडकर अथवा रसोई बनाते-बनाते मार्ग में जा
रही बारात देखने न जाएं क्योंकि आपका बच्चा भी आपके पीछे-पीछे अध्ययन छोडकर बारात
देखने के लिए
भागेगा । यदि आपको स्वयं ही बारात देखने का मोह छोडना नहीं आता, तो आप अपने बच्चे से कैसे अपेक्षा करते हैं कि उसे
बारात का मोह
छोडकर अध्ययन करना चाहिए । अर्थात बच्चे का अध्ययन अच्छा हो तो घरका वातावरण
भी आश्रम के समान ही होना चाहिए ।
अच्छे अध्ययन हेतु बच्चे से
बीच-बीच में थोडा
समय निकालकर उसे कुछ सिखाएं । यदि बच्चा महाविद्यालय
में अध्ययन करता है तथा उसके
विषयों का ज्ञान
आपको नहीं है,
तो कम-से-कम रात्रि में
बच्चा पढाई करते समय गीता, ज्ञानेश्वरी, संतों के चरित्र इत्यादिका वाचन करें तथा स्वतः
टिप्पणियां लिखें । आपका सान्निध्य उसे मिलेगा तथा मां-पिताजी भी अध्ययन कर रहे
हैं, इसका अनुभव उन्हें होगा । एक बात
पक्की ध्यान में रखें, कि बच्चे
अनुकरणप्रिय होते हैं ।
एक परिच्छेद पढकर उसके महत्त्वपूर्ण
बिंदु लिखने की आदत बच्चों में डालें तथा उसके पश्चात संपूर्ण अनुच्छेद के
संक्षिप्त मुख्य बिंदुओं को लिखकर रखें । साधारणतः एक विषयका अभ्यास सतत ४५ मिनट से अधिक
करना कठिन होता है । अतः बच्चों को बीच-बीच में ही थोडा विश्राम करने दें तथा विषयमें परिवर्तन करनेके
लिए कहें ।
केवल अधिक घंटे
तक अभ्यास करना ही वास्तविक
अभ्यास नहीं है । एकाग्रता से ३-४ घंटे वाचन-मनन-चिंतन होगा, तभी वह वास्तविक अभ्यास है । कभी-कभी बच्चों के प्रिय
देवताओं के चित्र
अध्ययन की मेज पर रखने से
बच्चों में
आत्मविश्वास निर्माण होने में सहायता होती है । मन एकाग्र करने
के लिए ध्यान-धारणा भी बहुत
उपयुक्त सिद्ध होती है ।
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