Wednesday, July 13, 2016

बालकों को अनुशासनप्रिय कैसे बनाएं ?

अनुशासन और दंड, इन दोनों शब्दों की निर्मिति शिक्षा शब्द से हुई है । शिक्षा की सहायता से अच्छा आचरण करने का अर्थ ही अनुशासन है । इसलिए दंड किस कारण से व किसी भूल अथवा अनाचार के लिए देना है, यह समझकर ही दंड देना चाहिए ।
अनुशासनप्रिय होने संबंधी महत्त्वपूर्ण सूचना
१. अच्छे आचरण की प्रशंसा व अनाचार के लिए दंड : बच्चोंको परीक्षा में अच्छे अंक मिलने पर या पारितोषक मिलने पर उनकी प्रशंसा करें । इससे वे और अच्छा आचरण करने के लिए प्रोत्साहित होंगे । उनके अयोग्य आचरण के लिए अप्रसन्नता व्यक्त कर एवं आवश्यकता के अनुसार दंड भी दें ।
२. आज्ञा नहीं; अपितु विनती करें : पानी लाओ’, ऐसा कहने की अपेक्षा बेटे, मेरे लिए एक गिलास पानी लाओगे ?’, ऐसी विनती करें ।
३. घरके सदस्यका समान मत होना : बच्चों को अनुशासित करनेसे पूर्व बच्चों से किस प्रकार के आचरण की अपेक्षा है, इसका विचार कर अपनी भूमिका निश्चित करें व इसमें मतभेद न होने दें ।
माता-पिता का एवं घर के अन्य सदस्यों का सहमत होना, बच्चों में अनुशासन लाने के लिए अत्यंत आवश्यक है । खिडकी पर ऊंचा लटकने पर पिता ने प्रशंसा की; परंतु मां ने डांटा । ऐसा नहीं होना चाहिए । दंड कब देना है, इस संदर्भ में मां-पिताजी को आपसी मतभेद पहले ही सुलझा लेने चाहिए; बच्चों के सामने नहीं ।
४. चूक होते ही तुरंत दंड दें : ठहरो, सायंकाल पिताजी को घर आने दो, फिर देखेंगेयह दंड देने की अनुचित पद्धति है । इससे पिताजी के आनेतक बच्चा दंड के भय से ग्रस्त रहता है ।
५. योग्य एवं अयोग्य दंड : बच्चों से लंबे समय तक बोलचाल बंद करना अथवा उन्हें दिनभर भूखा रखना, यह दंड योग्य नहीं है । इसके स्थान पर सायंकाल बच्चों को खेलने के लिए घर से बाहर न जाने दें अथवा उन्हें दूरचित्रवाणी न देखने दें, यह दंड उचित होगा ।
संदर्भ : सनातननिर्मित ग्रंथ ग्रंथ : संस्कार ही साधना
https://www.hindujagruti.org/hinduism-for-kids-hindi/29.html

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