Monday, July 18, 2016

चातुर्मास का वैज्ञानिक व धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के चार महीनों का विशेष महत्व है। इसे चातुर्मास कहते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दौरान पूजा आदि का विशेष महत्व तरीका है। यह देवशयनी से देव प्रबोधिनी एकादशी के बीच का समय होता है। इसके अंतर्गत सावन, भादौ, अश्विन कार्तिक मास आते हैं। इस बार चातुर्मास का प्रारंभ 15 जुलाई, शुक्रवार से हो रहा है, जिसका समापन 11नवंबर, शुक्रवार को होगा।

चातुर्मास का वैज्ञानिक महत्व
चातुर्मास में मूलत: बारिश का मौसम होता है। इस समय बादल और वर्षा के कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पाता, सूर्य का प्रकाश कम होना, देवताओं के सोने का ही प्रतीक है। इस समय शरीर की पाचन शक्ति भी कम हो जाती है, जिससे शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि चातुर्मास में (मुख्यत: वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म जंतु उत्पन्न हो जाते हैं। जल की बहुलता और सूर्य तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होने के कारण ही इस दौरान भगवान की पूजा को अधिक महत्व दिया गया है।

चातुर्मास का धार्मिक महत्व
पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इन चार महीनों तक पाताल में राजा बलि के यहां निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। अर्थात इस समय भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में होते हैं, इसलिए इस दौरान सकारात्मक शक्तियों को बल पहुंचाने के लिए व्रत, उपवास, हवन व यज्ञ करने का विधान है। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, करने की मनाही है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-chsturmaas-start-from-tomorrow-15-july-news-hindi-5371785-PHO.html

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