Thursday, July 28, 2016

यहां भस्म से किया जाता है शिव का श्रृंगार, करते हैं अकाल मृत्यु से रक्षा

अवंतिका, उज्जैयिनी आदि नामों से प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है। 12 ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का तीसरा स्थाल माना जाता है। क्षिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ यह शहर धार्मिक मान्यताओं और विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है।

ऐसे हुई थी यहां भगवान महाकाल की स्थापना

पुराणों के अनुसार, अवंतिका (उज्जैन) भगवान शिव को बहुत प्रिय था। यहां भगवान शिव के कई प्रिय भक्त रहते थे। एक समय अवंतिका नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। उस ब्राह्मण के चार पुत्र थे। दूषण नाम का राक्षस ने अवंतिका में आतंक मचा दिया। वह राक्षस उस नगर के सभी वासियों को पीड़ा देना लगा। उस राक्षस के आतंक से बचने के लिए उस ब्राह्मण ने भगवान शिव की आराधना की। ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उस राक्षस का वध करके नगर की रक्षा की। नगर के सभी भक्तों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की। भक्तों के प्रार्थना करने पर भगवान शिव अवंतिका में ही महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।

किया जाता है भस्म और भांग से श्रृंगार

भगवान शिव के इस शिवलिंग का श्रृंगार भस्म और भांग से भी किया जाता है। भस्म से श्रृंगार किए हुए इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का अपना ही अलग महत्व माना जाता है। यहां की भस्मारती विश्व प्रसिद्ध है।

महाकाल के दर्शन से होती है अकाल मृत्यु से रक्षा

महाकाल ज्योतिर्लिंग का अपना ही अलग महत्व है। इस ज्योतिर्लिंग के महत्व और शक्तियों का वर्णन कई ग्रंथों में मिलता है। महाकाल ज्योतिर्लिंग को कालों का काल माना जाता है। कहा जाता है कि इनके दर्शन करने से मनुष्य को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।

ऐसा है मंदिर का स्वरूप

महाकाल मंदिर के दो मुख्य खंड हैं। प्रांगण की सतह के बराबर मंदिर का एक ऊपरी खंड है, यहां पर भगवान शिव का एक लिंग स्थित है। इस शिवलिंग को ओंकारेश्वर कहा जाता है। दूसरे खंड में ओंकारेश्वर के ठीक नीचे महाकाल ज्योतिर्लिंग स्थित है। मान्यता है कि भगवान शिव को जो वस्तु चढ़ाई जाती है, वह निर्माल्य बन जाती है। उसे पुनः प्राप्त करना वर्जित माना जाता है, लेकिन महाकाल ज्योतिर्लिंग में चढ़ाई जाने वाली वस्तुओं का प्रसाद लिया जाता है और एक बार चढ़ाया गया बिल्व पत्र भी फिर से चढ़ाया जा सकता है।

ऐसा है उज्जैन का ऐतिहासिक महत्व

उज्जैन सप्त पुरियों में से एक है। कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य के समय उज्जैन भारत की राजधानी थी। द्वापर युग में भगनाम कृष्ण और बलराम में यहीं पर महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी। यह ज्योतिष विद्या का केन्द्र भी माना जाता है। साथ ही इसी स्थान से समय की गणना भी की जाती है इसलिए इस स्थान को पृथ्वी का नाभिप्रदेश के नाम से भी पुकारा जाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-TID-story-about-mahakaleshwar-jyotirling-in-hindi-news-hindi-5381573-PHO.html?seq=1

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