सनातन धर्म में पूजा के लिए कई नियम कायदे और विधि-विधान बताए गए
हैं। कहा जाता है कि यदि सही विधि-विधान से पूजन किया जाए तो उसका फल बहुत जल्दी
मिलता है। इसलिए जब भी घर में किसी बड़े पूजन या अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है तब
पंडित या पुरोहित से पूजा करवाई जाती है, लेकिन
ऐसा करना रोज या जब भी पूजा करें तब तो संभव हो नहीं पाता। इसलिए यदि हम स्वयं ही
प्रतिदिन की सामान्य पूजा में भी कुछ बातों का ध्यान रखेंगे तो देवी-देवताओं की
कृपा बहुत जल्दी मिल सकती है।
नित्यकर्म पूजा प्रकाश ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह के पूजन से पहले संकल्प जरूर लेना चाहिए। पूजा से पहले यदि संकल्प ना लिया जाए तो उस पूजन पूरा फल नहीं मिल पाता है।मान्यता है कि इसके बिना की गई पूजा का सारा फल इंद्र देव को मिल जाता है। इसलिए पहले संकल्प लेना चाहिए, फिर पूजन करना चाहिए।
संकल्प लेने का अर्थ है
संकल्प लेने का अर्थ यह है कि हम इष्टदेव और स्वयं को
साक्षी मानकर संकल्प लें कि यह पूजन कर्म विभिन्न इच्छाओं की कामना पूर्ति के लिए
कर रहे हैं और इस पूजन को पूरा जरूर करेंगे। संकल्प लेते समय हाथ में जल लिया जाता
है, क्योंकि इस पूरी सृष्टि के
पंचमहाभूतों (अग्रि, पृथ्वी, आकाश, वायु और जल) में भगवान गणपति जल
तत्व के अधिपति हैं। इसलिए श्रीगणेश को सामने रखकर संकल्प लिया जाता है। ताकि
श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूरा हो जाए। एक बार पूजन का
संकल्प लेने के बाद उस पूजा को पूरा करना आवश्यक होता है। इस परंपरा से हमारी
संकल्प शक्ति मजबूत होती है। व्यक्ति को विपरित परिस्थितियों का सामना करने का
साहस प्राप्त होता है।
कैसे लें पूजा से पहले संकल्प
दाहिने हाथ में जल लेकर बोले-
दाहिने हाथ में जल लेकर बोले-
ओउमतत्सदध्ये तस्य ब्राह्मो
ह्नी द्वितीय परर्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त अंतर्गत
देशे वैवस्त मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरने श्री विक्रमार्क
राज्यदमुक संवत्सर.........अमुक शके......, ईश्वी सत्र ......,अमुक अयन उतरायण/
दक्षिण.....अमुक ऋतु...... वसन्त/ ग्रीष्म/ वर्षा/ शरद्/ हेमन्त/ शिशिर......मासे ... चैत या चैत्र/ बैसाख या वैशाख/ जेठ या ज्येष्ठ/ आसाढ़ या आषाढ/ सावन या श्रावण/ भादों या भाद्रपद/ क्वार या आश्विन/ कातिक या कार्तिक/ अगहन या अग्रहायण/ पूस या पौष/ माघ/ फागुन या फाल्गुन.. पक्षे
... शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण
पक्ष.. तिथि
... पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा
(पड़वा), द्वितीया
(दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी
(ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी
(तेरस), चतुर्दशी
(चौदस) और अमावस्या (अमावस)...वार... सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार...... अपना
नाम.......अपनी
गोत्र ........मम कायिक वाचिक मानसिक
सांसर्गिक दुविधा निवारण (अथवा आप जिस मंत्र का जाप करे उसका नाम) करिष्ये।ऐसा
कहकर जल छोड दे।
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