Wednesday, May 24, 2017

श्रीकृष्ण ने खुद को कहा है पेड़ों में पीपल

भगवान श्रीकृष्‍ण ने गीता के 10 वें अध्याय में कहा है अश्वथ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: यानी हे अर्जुन वृक्षों में मैं पीपल हूं और देवर्षियों में नारद। इस श्लोक को पढ़कर मन में ये विचार जरूर आता है कि कदंब के नीचे रास रचाने वाले श्रीकृष्ण ने आखिर खुद को पीपल की संज्ञा ही क्यों दी। आइए जानते हैं इसके धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों को

1. पीपल में अनोखी तरह की जीने की चाह होती है। आप उसे उखाड़ कर फेंक दीजिए, वह कहीं भी फिर से उग आएगा। मिट्टी तो मिट्टी वह पत्थर पर भी उग आता है। आपके घर की दीवारों को तोड़ कर उग आता है। भगवान श्रीकृष्‍ण मानव को यह संदेश देते हैं कि हे मनुष्यों तुम सभी में पीपल के समान ही जिजीविषा यानी जीवन की चाह होनी चाहिए।

2. किसी स्थान को पकड़कर मत बैठो। जहां भी संभावना हो, जैसी भी परिस्थिति हो। उस परिस्थिति में खुद को ढालो और आगे बढ़ो। आखिर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी जड़ों को मथुरा से उखाड़, द्वारका नगरी को बसाया ही था।

3. पीपल का तीसरा गुण भी जीवन देने से जुड़ा है। सभी पेड़ों में सबसे अधिक ऑक्‍सीजन पीपल का पेड़ ही देता है। इतना ही नहीं, पीपल एक मात्र पेड़ है, जो दिन के समान रात में भी ऑक्सीजन देता है। जबकि दूसरे सभी पेड़ कार्बनडाई ऑक्साइड छोड़ते हैं।

4. लगातार ध्यान और समाधि में एक मात्र पीपल के वृक्ष के नीचे ही बैठे रह सकते हैं। दूसरे पेड़ों के पास से आपको रात के समय उठना पड़ेगा। सनातन धर्म ने इसी कारण पीपल पर ब्रह्म का वास बताया है। ब्रहृम यानी सृष्टि। सृष्टि जिस दिन अपनी जीने की चाह छोड़ देगी, मानव ही नहीं, पूरे प्राणी जगत का विनाश हो जाएगा।

5. पीपल में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह सांस संबंधी समस्या में बेहद लाभकारी है। इसके अलावा इसके पत्तों का दूध में उबालकर पीने से भी दमा में लाभ होता है। पीपल के पत्तों का उपयोग कब्ज या गैस की समस्या में दवा के तौर पर किया जाता है। इसे पित्त खत्म करने वाला भी माना जाता है। पीपल की दातुन से दांत मजबूत होते हैं। इसके अलावा चमड़ी से जुड़े रोगों सहित कई असाध्य रोग इससे दूर किए जा सकते हैं।
https://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-it-is-believed-that-lord-krishna-resides-on-peepal-tree-5601016-PHO.html?ref=keyreco

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