शालिग्राम भगवान विष्णु का
रूप है, लेकिन मां तुलसी माता लक्ष्मी का रूप नहीं है। एक शाप के
चलते भगवान विष्णु ने पत्थर का रूप लिया था और ये श्राप दिया था मां तुलसी ने।
जानिए इसके पीछे की कहानी। पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस कुल में जन्मी वृंदा नाम
की एक कन्या थी, जो
भगवान विष्णु की भक्त थी। जब वृंदा बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव
जलंधर से हुआ।
पतिव्रता वृंदा अपने पति की खूब
सेवा करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ और जब जलंधर युद्ध पर जाने
लगा तो वृंदा ने कहा कि वे जब तक विजयी होकर वापस नहीं आएंगे, वो अनुष्ठान करेंगी और इस
संकल्प के साथ वृंदा पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव के कारण देवता जलंधर से
हार रहे थे। ऐसे में सभी देवता मदद के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु
ने कहा कि वृंदा मेरी परम भक्त है और मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता, लेकिन कोई दूसरा रास्ता ना होने
के कारण भगवान विष्णु देवताओं की मदद के लिए तैयार हो गए। माना जाता है कि भगवान
ने जलंधर का ही रूप लिया।
वृंदा के महल में पहुंच गए
और जैसे ही वृंदा ने भगवान विष्णु को अपना पति समझकर छूआ। इसी के साथ वृंदा का
संकल्प टूटते ही युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर
दिया। जलंधर का सिर सीधे महल में वृंदा के सामने गिरा। अपने पति का कटा सिर देखकर
जब उन्होंने पूछा तो भगवान अपने असली रूप में आ गए। सारी बात समझ आने पर वृंदा ने
भगवान को शाप दे दिया कि आप पत्थर के हो जाओ और भगवान उसी समय पत्थर के हो गए।
जिस कारण देवताओं में हाहाकर
मच गया। ऐसे में देवी लक्ष्मी के प्रार्थना करने के बाद वृंदा ने भगवान को पहले
जैसा ही कर दिया। भगवान को पहले जैसा करने के साथ ही वृंदा अपने पति का सिर लेकर
सती हो गई और उनकी राख से एक पौधा निकला, जिसे
भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और कहा कि उनका एक रूप इस पत्थर के रूप रहेगा।
जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा। भगवान विष्णु ने यह भी
कहा कि बिना तुलसी के वो प्रसाद स्वीकार नहीं करेंगे।
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