Wednesday, May 31, 2017

श्रीकृष्ण को पाने के लिए मीरा ने की थी श्रीराम की भक्ति

मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती है। मीरा बाई ने जीवनभर भगवान कृष्ण की भक्ती की और कहा जाता है कि उनकी मृत्यु भी भगवान की मूर्ति में समा कर की हुई थी। कहीं-कहीं इतिहास में ये मिलता है कि मीरा बाई ने तुलसीदास को गुरु बनाकर रामभक्ति भी की। कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखे हैं। हालांकि इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है लेकिन कुछ इतिहासकार ये मानते हैं कि मीराबाई और तुलसीदास के बीच पत्रों के जरिए संवाद हुआ था।
मीरा बाई के जीवन से जुड़ी कई बातों के को आज भी रहस्य माना जाता है। ऐसे में हम आपको गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक भक्त-चरितांक के अनुसार मीरा बाई के जीवन और मृत्यु से जुड़ी कुछ बातें बताने जा रहे हैं।
तुलसीदास के कहने पर की राम की भक्ति
माना जाता है मीराबाई ने तुलसीदास जी को पत्र लिखा था कि उनके घर वाले उन्हें कृष्ण की भक्ति नहीं करने देते। श्रीकृष्ण को पाने के लिए मीराबाई ने अपने गुरु तुलसीदास से उपाय मांगा। तुलसी दास के कहने पर मीरा ने कृष्ण के साथ ही रामभक्ति के भजन लिखे। जिसमें सबसे प्रसिद्ध भजन है पायो जी मैंने राम रतन धन पायो

क्यों बचपन से ही श्रीकृष्ण की दीवानी थी मीरा

मीराबाई का जन्म मारवाड़ के कुड़की नामक गावं में 1558 1559 के लगभग हुआ था। मीराबाई की मां ने बचपन में खेल-खेल के दौरान उनका विवाह श्रीकृष्ण की मूर्ति के करवा दिया था। इस बात को मीराबाई सच मान गई और श्रीकृष्ण को ही अपना सब कुछ मान बैठी और जीवनभर कृष्ण भक्ति करती रहीं।

न चाहते हुए थी करना पड़ा भोजराज से विवाह

विवाह योग्य होने पर मीराबाई के घर वाले उनकी विवाह करना चाहते थें, लेकिन मीराबाई श्रीकृष्ण को पति मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ सन् 1573 में कर दिया गया।

पति की मृत्यु के बाद क्या हुआ मीरा के साथ

विवाह के कुछ साल बाद ही वर्ष 1580 में मीराबाई के पति भोजराज की मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद मीरा को भी भोजराज के साथ सती करने का प्रयास किया गया। लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई और जोगन बनकर साधु-संतों के साथ रहने लगीं।

मीरा की कृष्ण भक्ती देख उन्हें जहर देना चाहते थे ये लोग

पति की मृत्यु के बाद मीरा की भक्ति दिनों-दिन बढ़ती गई। मीरा मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटो तक नाचती रहती थीं। मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा।उनके परिजनों ने मीरा को कई बार विषदेकर मारने की भी कोशिश की। लेकिन श्रीकृष्ण की कृपा से मीराबाई को कुछ नहीं हुआ।

श्रीकृष्ण में समाकर हुआ मीराबाई का अंत

कहते हैं कि जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं। मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1630 में द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।

पूर्व-जन्म में वृंदावन की गोपी थी मीरा

मान्यता है कि मीरा पूर्व-जन्म में वृंदावन की एक गोपि थीं और उन दिनों वह राधा की सहेली थीं। वे मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। गोप से विवाह होने के बाद भी उनका लगाव श्रीकृष्ण के प्रति कम न हुआ और कृष्ण से मिलने की तड़प में ही उन्होंने प्राण त्याग दिए। बाद में उसी गोपी ने मीरा के रूप में जन्म लिया।

Tuesday, May 30, 2017

विवाह के 7 पवित्र वचन और महत्व

सनातन धर्म में विवाह के समय पति द्वारा पत्नी को दिए जाने वाले सात वचनों के महत्व को देखते हुए यहां उन वचनों के बारे में जानकारी दी जा रही है।
 1. तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी!। 
(यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।) 

किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभा‍गिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।

2. पुज्यो यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम!! 
(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।) 

यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रख वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

3. जीवनम अवस्थात्रये पालनां कुर्यात
वामांगंयामितदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं!!   
(तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे यह वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।) 

4. कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थ:।। 
(कन्या चौथा वचन यह मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दा‍यित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूं।) 

इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उत्तरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृष्ट करती है। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए, जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।
 
5. स्वसद्यकार्ये व्यहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्‍त्रयेथा
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या!! 
(इस वचन में कन्या कहती जो कहती है, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्व रखता है। वह कहती है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।) 

यह वचन पूरी तरह से पत्नी के अधिकारों को रेखांकित करता है। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढ़ता ही है, साथ-साथ अपने अधिकारों के के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है। 

6. न मेपमानमं सविधे सखीना द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्वेत
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम!!
(कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्‍त्रियों के बीच बैठी हूं, तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)  

7. परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमंत्र कन्या!! 
(अंतिम वचन के रूप में कन्या यह वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)  
http://hindi.webdunia.com/religious-article/7-oaths-of-hindu-marriage-in-hindi-114090300022_1.html

Monday, May 29, 2017

इन 7 चीजों का प्रसाद चढ़ाने पर देवी-देवता जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं

सनातन धर्म में भोजन करते समय सात्विकता के अलावा अच्छी भावना और अच्छे वातावरण और आसन का बहुत महत्व माना गया है। यही कारण है कि सिर्फ इंसान ही नहीं देवता भी भोजन का खास ख्याल रखने पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। देवी और देवताओं को इन 7 चीजों में से अक्सर किसी का एक का भोग लगाया जाए तो घर में कभी धन व धान्य की कमी नहीं होती है।
1. मालपुए
मालपुए देवी के साथ भगवान विष्णु के भी प्रिय भोग में से एक है। अधिक मास में भगवान को ये ही भोग लगाने का नियम है। पूरी शुद्धता के साथ बने मालपुए का भोग लगाने से भी देवी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
2. खीर
खीर कई प्रकार से बनाई जाती है। इसे हविष्य भोजन माना गया है। खीर में किशमिश, बारीक कतरे हुए बादाम, बहुत थोड़ी-सी नारियल की कतरन, काजू, पिस्ता, चारौली, थोड़े से पिसे हुए मखाने, सुगंध के लिए एक इलायची, कुछ केसर और अंत में तुलसी डालकर देवी-देवताओं को अर्पित करने से उनकी कृपा बनी रहती हे।
3. केसर भात
केसर भात बहुत ही स्वादिष्ट और मन को भाने वाली होती है। केसरिया भात को बनाने के लिए बासमती चावल, केसर और सूखे मेवे आदि की जरुरत होती है। अक्सर माता लक्ष्मी और सरस्वती को केसर भात का भोग लगाया जाता है, क्योंकि इनको ये भात विशेष रूप से पसंद है ऐसी मान्यता है।
4. हलुआ
भारत में हलवा पारंपरिक मिठाईयों में से एक है। जैसे सूजी का हलुआ, आटे का हलुआ, गाजर का हलुआ, मूंग का हलुआ, कद्दू का हलुआ, आदि। इसमें से सूजी के हलुवे का भोग लगाया जाता है। हनुमानजी को हलुआ, पंच मेवा, गुड़ से बने लड्डू या रोठ, डंठल वाला पान और केसर- भात बहुत पसंद हैं। देवी मां को भी हलुआ प्रिय है।
5. पूरणपोली
मां दुर्गा को इसका भोग लगाने से हर तरह की मनोकामना पूर्ण होती है। माताजी को हलुए के साथ पूरणपोली भी पसंद है।
6. लड्डू
मोदक के लड्डू, बेसन के लड्डू, सूजी के लड्डू, मोतीचूर के लड्डू, नारियल के लड्डू, बूंदी के लड्डू, गेंहू के लड्डू, मलाई के लड्डू, चूरमा के लड्डू आदि। सभी देवताओं को पसंद हैं, लेकिन गणेशजी को ये विशेष रूप से पसंद हैं।
7. सफेद मावे की मिठाई
सफेद मावे की मिठाई देवी-देवताओं को विशेष रूप से पसंद है, जब किसी विशेष मनोकामना के लिए इसका भोग लगाएं तो मिठाई को कन्याओं में बांटना चाहिए।

Saturday, May 27, 2017

संकल्प ना लिया जाए तो उस पूजन पूरा फल नहीं मिल पाता है

सनातन धर्म में पूजा के लिए कई नियम कायदे और विधि-विधान बताए गए हैं। कहा जाता है कि यदि सही विधि-विधान से पूजन किया जाए तो उसका फल बहुत जल्दी मिलता है। इसलिए जब भी घर में किसी बड़े पूजन या अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है तब पंडित या पुरोहित से पूजा करवाई जाती है, लेकिन ऐसा करना रोज या जब भी पूजा करें तब तो संभव हो नहीं पाता। इसलिए यदि हम स्वयं ही प्रतिदिन की सामान्य पूजा में भी कुछ बातों का ध्यान रखेंगे तो देवी-देवताओं की कृपा बहुत जल्दी मिल सकती है।

नित्यकर्म पूजा प्रकाश ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह के पूजन से पहले संकल्प जरूर लेना चाहिए। पूजा से पहले यदि संकल्प ना लिया जाए तो उस पूजन पूरा फल नहीं मिल पाता है।मान्यता है कि इसके बिना की गई पूजा का सारा फल इंद्र देव को मिल जाता है। इसलिए पहले संकल्प लेना चाहिए, फिर पूजन करना चाहिए।

संकल्प लेने का अर्थ है
संकल्प लेने का अर्थ यह है कि हम इष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर संकल्प लें कि यह पूजन कर्म विभिन्न इच्छाओं की कामना पूर्ति के लिए कर रहे हैं और इस पूजन को पूरा जरूर करेंगे। संकल्प लेते समय हाथ में जल लिया जाता है, क्योंकि इस पूरी सृष्टि के पंचमहाभूतों (अग्रि, पृथ्वी, आकाश, वायु और जल) में भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। इसलिए श्रीगणेश को सामने रखकर संकल्प लिया जाता है। ताकि श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूरा हो जाए। एक बार पूजन का संकल्प लेने के बाद उस पूजा को पूरा करना आवश्यक होता है। इस परंपरा से हमारी संकल्प शक्ति मजबूत होती है। व्यक्ति को विपरित परिस्थितियों का सामना करने का साहस प्राप्त होता है।

कैसे लें पूजा से पहले संकल्प
दाहिने हाथ में जल लेकर बोले-
ओउमतत्सदध्ये तस्य ब्राह्मो ह्नी द्वितीय परर्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त अंतर्गत देशे वैवस्त मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरने श्री विक्रमार्क राज्यदमुक संवत्सर.........अमुक शके......, ईश्वी सत्र ......,अमुक अयन उतरायण/ दक्षिण.....अमुक ऋतु...... वसन्त/ ग्रीष्म/ वर्षा/ शरद्/ हेमन्त/ शिशिर......मासे ... चैत या चैत्र/ बैसाख या वैशाख/ जेठ या ज्येष्ठ/ आसाढ़ या आषाढ/ सावन या श्रावण/ भादों या भाद्रपद/ क्वार या  आश्विन/ कातिक या कार्तिक/ अगहन या अग्रहायण/ पूस या पौष/ माघ/ फागुन या फाल्गुन.. पक्षे ... शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष.. तिथि ... पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)...वार... सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार...... अपना नाम.......अपनी गोत्र ........मम कायिक वाचिक मानसिक सांसर्गिक दुविधा निवारण (अथवा आप जिस मंत्र का जाप करे उसका नाम) करिष्ये।ऐसा कहकर जल छोड दे।