महाभारत का युद्ध खत्म हुआ। कौरव तो
सभी युद्ध में मारे जा चुके थे। पांडव भी कुछ समय तक राज्य करके हिमालय पर चले गए।
वहां पर एक, एक करके सभी भाई गिर गए। अकेले युधिष्ठिर
अपने एक मात्र साथी कुत्ते के साथ बचे रहे और वे स्वर्ग गए। कहते हैं युधिष्ठिर
जीवित ही स्वर्ग में गए थे। वहां उन्होंने स्वर्ग और नरक दोनों को देखा।
स्वर्ग में प्रवेश करते ही दुर्योधन
दिखाई दिया। अपने भाइयों से भी उनका सामना हुआ। रास्ते में अन्य भाइयों को गिरते
समय प्रश्न करने वाले भीम के मन में यहां भी जिज्ञासा उठी पूछा भैय्या दुष्ट
दुर्योधन तो आजीवन अनीति का ही पक्ष लेता रहा। उसने अपने पूरे जीवन में कोई धर्म
का काम नहीं किया जिसके पुण्य से उसे स्वर्ग मिला हो। क्या ईश्वर के न्याय में भी
गलती है।
ईश्वरीय विधान के अनुसार हर पुण्य का परिणाम चाहे वह किंचित
ही क्यों न हो, स्वर्ग मिलता है। सभी बुराइयों के होते हुए भी दुर्योधन में
एक सद्गुण था जिसके प्रसाद स्वरूप उसे स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ है।वह क्या-
भीम ने पूछा। वह अपने संस्कारों के कारण जीवन को सही दिशा भले ही न दे सका हो, लेकिन उसका मार्ग अवश्य सही था।
वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए तन्मयतापूर्वक जुटा रहा। ध्येय के प्रति एकनिष्ठ
रहना बहुत बड़ा सद्गुण है। इस सद्गुण के पुण्य के परिणाम स्वरूप कुछ समय के लिए
उसे स्वर्ग में स्थान मिलना उचित था।
No comments:
Post a Comment