वैसे तो दक्षिण भारत के सभी मंदिर अपनी भव्यता और सुंदरता
के लिए मशहूर हैं, लेकिन तिरुपति बालाजी का मंदिर सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।
तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में है। इस मंदिर को भारत
का सबसे धनी मंदिर माना जाता है, क्योंकि यहां पर रोज करोड़ों रुपये का दान आता है, साथ ही यहां पर अपने बालों का
दान करने की भी परंपरा है। इसके अलावा भी बालाजी में कुछ बातें ऐसी हैं, जो सबसे अनोखी है।
1. इसलिए किया
जाता है यहां बालों का दान
तिरुपति
बालाजी को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। इन्हें प्रसन्न करने पर देवी
लक्ष्मी की कृपा अपने-आप ही हमें मिलती है और हमारी सारी परेशानी खत्म हो
जाती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने मन से सभी पाप और बुराइयों को यहां छोड़
जाता है,
उसके
सभी दुख देवी लक्ष्मी खत्म कर देती हैं। इसलिए यहां अपनी सभी बुराइयों और पापों के
रूप में लोग अपने बाल छोड़ जाते है। ताकी भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी उन पर
प्रसन्न हों और उन पर हमेशा धन-धान्य की कृपा बनी रहे।
2. खुद प्रकट हुई थीं यहां की मूर्ति
मान्यता
है कि यहां मंदिर में स्थापित काले रंग की दिव्य मूर्ति किसी ने बनाई नहीं बल्कि
वह खुद ही जमीन से प्रकट हुई थी। स्वयं प्रकट होने की वजह से इसकी बहुत मान्यता
है। वेंकटाचल पर्वत को लोग भगवान का ही स्वरूप मानते है और इसलिए उस पर जूते लेकर
नहीं जाया जाता।
3. भक्तों को नहीं दिया जाता तुलसी पत्र
भगवान
श्रीकृष्ण और विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय मानी जाती है, इसलिए उनकी पूजा में
तुलसी के पत्ते का बहुत महत्व है। सभी मंदिरों में भगवान को चढ़ाया गया तुलसी पत्र
बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। अन्य वैष्णव मंदिरों की तरह यहां
पर भी भगवान को रोज तुलसी पत्र चढ़ाया तो जाता है, लेकिन उसे भक्तों को
प्रसाद के रूप में नहीं दिया जाता। पूजा के बाद उस तुलसी पत्र को मंदिर परिसर में
मौजूद कुंए में डाल दिया जाता है।
4. क्यों कहते हैं भगवान विष्णु को वेंकटेश्वर
इस
मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि यह मेरूपर्वत के सप्त शिखरों पर बना हुआ है, जो की भगवान शेषनाग का
प्रतीक माना जाता है। इस पर्वत को शेषांचल भी कहते हैं। इसकी सात चोटियां शेषनाग
के सात फनों का प्रतीक कही जाती है। इन चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और
वेंकटाद्रि कहा जाता है। इनमें से वेंकटाद्रि नाम की चोटी पर भगवान विष्णु विराजित
हैं और इसी वजह से उन्हें वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है।
5. पूरी मूर्ति
के दर्शन होते हैं सिर्फ शुक्रवार को
मंदिर
में बालाजी के दिन में तीन बार दर्शन होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो सुबह के समय होते
हैं। दूसरे दर्शन दोपहर को और तीसरे दर्शन रात को होते हैं। इनके अलावा अन्य दर्शन
भी हैं, जिनके लिए विभिन्न शुल्क
निर्धारित है। पहले तीन दर्शनों के लिए कोई शुल्क नहीं है। भगवान बालाजी की पूरी
मूर्ति के दर्शन केवल शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय ही किए जा सकते हैं।
6. यात्रा के
हैं कुछ नियम
तिरुपति
बालाजी की यात्रा के कुछ नियम भी हैं। नियम के अनुसार, तिरुपति के दर्शन करने
से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करना चाहिए। फिर वेंकटाचल
पर्वत पर जाकर बालाजी के दर्शन करें। वहां से आने के बाद तिरुण्चानूर जाकर
पद्मावती के दर्शन करने की पंरापरा मानी जाती है।
7. रामानुजाचार्य
को यहीं पर बालाजी ने दिए साक्षात दर्शन
यहां
पर बालाजी के मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर हैं, जैसे- आकाश गंगा, पापनाशक तीर्थ, वैकुंठ तीर्थ, जालावितीर्थ, तिरुच्चानूर। ये सभी
जगहें भगवान की लीलाओं के जुड़ी हुई हैं। कहा जाता हैं कि श्रीरामानुजाचार्य जी
लगभग डेढ़ सौ साल तक जीवित रहे और उन्होंने सारी उम्र भगवान विष्णु की सेवा की।
जिसके फलस्वरूप यहीं पर भगवान ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-TID-facts-of-tirupati-balaji-in-hindi-news-hindi-5471074-PHO.html
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