Wednesday, December 14, 2016

एक ही नाम के कई तीर्थ, जानिए किसकी है क्या मान्यता और महत्व

भारत में कई मंदिर अपनी अनोखी बातों और रहस्यों से लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारत में ऐसे कई मंदिर भी मौजूद है, जिनकी स्थिति को लेकर आज तक रहस्य बना हुआ है। हिंदू धर्म में कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध मंदिर और पर्वत है, जिनकी लेकर 2 अलग-अलग जगहों पर स्थित माना जाता है। आज हम आपको ऐसी ही 3 जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं..

1. हरसिद्धि मंदिर

हरसिद्धि देवी राजा विक्रमादित्य की आराध्य थीं और राजा अमावस की रात को विशेष पूजा अनुष्ठान कर अपना सिर चढ़ाते थे,पर हर बार देवी उनके सिर को जोड़ देती थीं। हरसिद्धि मंदिर देवी के खास मंदिरों में से एक माना जाता है। इस प्रसिद्ध मंदिर की स्थिती को लेकर भी रहस्य माना जाता है, क्योंकि कुछ मान्यताओं के अनुसार देवी हरसिद्धी का मुख्य मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है, वहीं कुछ मान्यताएं इस मंदिर को गुजरात के हरसद गांव में स्थित बताती है।

कहां-कहां स्थित माना जाता है ये मंदिर

मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित हरसिद्धि देवी का मंदिर देश की शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि सती के अंग जिन 52 स्थानों पर अंग गिरे थे, वे स्थान शक्तिपीठ में बदल गए और उन स्थानों पर नवरात्र के मौके पर आराधना का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि सती की कोहनी उज्जैन में जिस स्थान पर गिरी थी, वह हरसिद्धि शक्तिपीठ के तौर पर पहचानी जाती है।
किंवदंती है कि माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गाँव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं तथा रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं, इसलिए यहां की संध्या आरती का विशेष महत्व है। माता हरसिद्धि की साधना से समस्त प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इसलिए नवरात्रि में यहां साधक साधना करने आते हैं।

2. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिगों में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान दसवां है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। उसके अनुसार जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है तथा उत्पत्ति और महात्म्य की कथा सुनता है, वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होता है।

कहां-कहां स्थित माना जाता है ये ज्योतिर्लिगं

गुजरात राज्य के जामनगर जिले में स्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थान द्वारका धाम से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी पर स्थित नागेश्वर, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दसवें क्रम के ज्योतिर्लिंग के रूप में विश्व भर में प्रसिद्द है।
कुछ लोग मानते हैं की यह ज्योतिर्लिग महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में स्थित औंढा नागनाथ नामक जगह पर है, वहीँ अन्य लोगों का मानना है की यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा के समीप जागेश्वर नामक जगह पर स्थित है। इन सारे मतभेदों के बावजूद तथ्य यह है की प्रति वर्ष लाखों की संख्या में भक्त गुजरात में द्वारका के समीप स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन, पूजन और अभिषेक के लिए आते हैं.।

ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कहानी

इस प्रसिद्ध शिवलिंग की स्थापना के सम्बन्ध में इतिहास इस प्रकार है- एक धर्मात्मा, सदाचारी और शिव जी का अनन्य वैश्य भक्त था, जिसका नाम सुप्रियथा। जब वह नाव पर सवार होकर समुद्र के जलमार्ग से कहीं जा रहा था, उस समयदारूकनामक एक भयंकर बलशाली राक्षस ने उस पर आक्रमण कर दिया। राक्षस दारूक ने सभी लोगों सहित सुप्रिय का अपहरण कर लिया और अपनी पुरी में ले जाकर उसे बन्दी बना लिया। चूँकि सुप्रिय शिव जी का अनन्य भक्त था, इसलिए वह हमेशा शिव जी की आराधना में तन्मय रहता था। कारागार में भी उसकी आराधना बन्द नहीं हुई और उसने अपने अन्य साथियों को भी शंकर जी की आराधना के प्रति जागरूक कर दिया। वे सभी शिवभक्त बन गये। कारागार में सभी शिवभक्ति करने लगें। जब इसकी सूचना राक्षस दारूक को मिली, तो वह क्रोध में उबल उठा। उसने देखा कि कारागार में सुप्रिय ध्यान लगाए बैठा है, तो उसे डाँटते हुए बोलातू आंखें बन्द करके मेरे विरुद्ध कौन-सा षड्यन्त्र रच रहा है? वह जोर-जोर से चिल्लाता हुआ धमका रहा था, इसलिए उस पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा। घमंडी राक्षस दारूक ने अपने अनुचरों को आदेश दिया कि सुप्रिय को मार डालो।
अपनी हत्या के भय से भी सुप्रिय डरा नहीं और वह भयहारी, संकटमोचक भगवान शिव को पुकारने में ही लगा रहा। उस समय अपने भक्त की पुकार पर भगवान शिव ने उसे कारागार में ही दर्शन दिया। कारागार में एक ऊँचे स्थान पर चमकीले सिंहासन पर स्थित भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में उसे दिखाई दिये। शंकरजी ने उस समय सुप्रिय वैश्य का अपना एक पाशुपतास्त्र भी दिया और उसके बाद वे अन्तर्धान (लुप्त) हो गये। पाशुपतास्त्र (अस्त्र) प्राप्त करने के बाद सुप्रिय ने उसक बल से समचे राक्षसों का संहार कर डाला और अन्त में वह स्वयं शिवलोक को प्राप्त हुआ। भगवान शिव के निर्देशानुसार ही उस शिवलिंग का नाम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पड़ा।

3. गंधमादन पर्वत

हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद भागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।
गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथों में हुआ है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यहां के विशालकाय पर्वतमाला और वन क्षेत्र में देवता रमण करते हैं। पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ऋषि ने भी तपस्या की थी।

कहां-कहां स्थित माना जाता है ये पर्वत

मान्यताओं के अनुसार गंधमादन पर्वत हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। वहीं दूसरी ओर गंधमादन नाम का एक पर्वत रामेश्वरम के पास स्थित है, जहां से हनुमानजी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी, लेकिन हम उस पर्वत की नहीं बात कर रहे हैं। इन दो के अलावा कुछ लोग जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में भी मौजूद पर्वत को भी गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

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