भारत आस्था और विश्वास का
देश है। हिंदू धर्म में मंदिर और पूजन का विशेष महत्व माना गया है। कुछ मंदिर ऐसे
भी हैं, जो सिर्फ मनोकामना पूरी करने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी किसी
अनोखी या चमत्कारिक विशेषता के कारण भी जाने जाते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे
हैं भारत के कुछ ऐसे ही प्राचीन मंदिरों के बारे में जिन से जुड़ी चमत्कारिक बातों
को कोई माने या न माने, लेकिन इनकी ये खास विशेषताएं किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देती
है।
1. मेहंदीपुर बालाजी
2.काल
भैरव मंदिर
3. कामाख्या मंदिर
4. तवानी मंदिर
5.करणी
माता मंदिर
6. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर
7.ज्वाला
देवी मंदिर
1. मेहंदीपुर बालाजी
राजस्थान में मेंहदीपुर बालाजी का मंदिर श्री
हनुमान का बहुत जाग्रत स्थान माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में
विराजित श्री बालाजी अपनी दैवीय शक्ति से बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाते हैं।
मंदिर में हजारों भूत-पिशाच से त्रस्त लोग रोज दर्शन और प्रार्थना के लिए यहां आते
हैं, जिन्हें स्थानीय लोग संकटवाला कहते हैं।
भूतबाधा से पीड़ित के लिए यह मंदिर अपने ही घर के समान हो जाता है और श्री बालाजी
ही उसकी अंतिम उम्मीद होते हैं।
यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उलटे लटके
देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान हो सकता है।
शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूत-प्रेत से पीड़ित लोगों को जुझते देखा
जाता है और आरती के बाद लोग मंदिर के गर्भ गृह में जाते हैं। वहां के पुरोहित कुछ
उपाय करते हैं और कहा जाता है इसके बाद पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।
2.काल
भैरव मंदिर
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब 8 कि.मी. दूर कालभैरव मंदिर है। यहां भगवान
कालभैरव को प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाई जाती है। शराब से भरे प्याले
कालभैरव की मूर्ति के मुंह से लगाने पर वह देखते ही देखते खाली हो जाते हैं। मंदिर
के बाहर भगवान कालभैरव को चढ़ाने के लिए देसी शराब की कई दुकानें हैं।
पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव का अपमान कर दिया था, इस बात से भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए और उनके नेत्रों से कालभैरव प्रकट हुए। क्रोधित कालभैरव ने भगवान ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया था, जिसकी वजह से उन्हें ब्रह्म-हत्या का पाप लगा। इस पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है। कालांतर में यहां एक बड़ा मंदिर बन गया। कहा जाता है मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।
पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव का अपमान कर दिया था, इस बात से भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए और उनके नेत्रों से कालभैरव प्रकट हुए। क्रोधित कालभैरव ने भगवान ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया था, जिसकी वजह से उन्हें ब्रह्म-हत्या का पाप लगा। इस पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है। कालांतर में यहां एक बड़ा मंदिर बन गया। कहा जाता है मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।
3. कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन
से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह
मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है सती का
योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया।
इस मंदिर में प्रतिवर्ष
अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघोरी हिस्सा
लेते हैं। माना जाता है कि सालभर में एक बार अम्बुबाची मेले के दौरान मां कामाख्या
रजस्वला होती हैं और इन तीन दिन में योनि कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह
होता है। इसलिए अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।
4. तवानी मंदिर
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से 25 कि.मी. दूर तवानी मंदिर स्थित है। धर्मशाला को
गर्म पानी के झरनों और कुंडों के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के बाहर एक गर्म पानी
का कुंड है। इस कुंड में स्नान के बाद ही कोई भी दर्शनार्थी मंदिर में प्रवेश कर
सकता है। इस कुंड में पानी गर्म कैसे होता है, ये बात आज तक रहस्य बनी हुई है। माना जाता है कि इस पानी में शरीर के लिए
कई लाभदायक तत्व मौजूद हैं।
5.करणी
माता मंदिर
करणी माता मंदिर राजस्थान में बीकानेर से कुछ
दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर है। यह स्थान मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं। इनके
बीच अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही यहां की
मान्यता है।
इसे चूहों को काबा भी कहा जाता है। चूहों को भक्त दूध, लड्डू आदि देते हैं। आश्चर्यजनक बात यह भी है कि असंख्य चूहों से पटे मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता। इस मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश नहीं करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था, तब यह मंदिर ही नहीं, बल्कि यह पूरा इलाका इस बीमारी से महफूज था।
इसे चूहों को काबा भी कहा जाता है। चूहों को भक्त दूध, लड्डू आदि देते हैं। आश्चर्यजनक बात यह भी है कि असंख्य चूहों से पटे मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता। इस मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश नहीं करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था, तब यह मंदिर ही नहीं, बल्कि यह पूरा इलाका इस बीमारी से महफूज था।
6. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर
कई पुराणों में इस तीर्थ स्थल के बारे में
बताया गया है। महिसागर संगम तीर्थ की पावन भूमि पर भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय
ने एक शिवलिंग की स्थापित की थी, जिसे श्री स्तंभेश्वर महादेव कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन
मात्र से व्यक्ति सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती
है। यह स्तंभेश्वरतीर्थ गुजरात के भरूच जिला के जंबुसर तहसील में कावी-कंबोई
समुद्र तट पर है। मंदिर की विशेषता यह है कि समुद्र दिन में दो बार श्री
स्तंभेश्वर शिवलिंग का स्वयं अभिषेक करता है। समुद्र का पानी बढ़ने पर मंदिर पानी
में डूब जाता है और थोड़ी ही देर में पानी उतर भी जाता है।
7.ज्वाला
देवी मंदिर
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार
पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर। शास्त्रों के अनुसार, यहां सती की जिह्वा गिरी थी। मान्यता है कि
सभी शक्तिपीठों में देवी हमेशा निवास करती हैं। शक्तिपीठ में माता की आराधना करने
से माता जल्दी प्रसन्न होती है। ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल-बाती के
प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला चांदी के
जाला के बीच स्थित है,
उसे महाकाली कहते हैं।
अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चंडी,
हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं।
कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी की शक्ति का अनादर किया और मां की प्राकृतिक ज्वाला को बुझाने की बहुत कोशिस की, लेकिन वह अपने प्रयास में असफल रहा। अकबर को जब ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ, तो क्षमा मांगने के लिए उसने ज्वाला देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-TID-7-mysterious-temples-of-india-in-hindi-news-hindi-5491205-PHO.htmlकहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी की शक्ति का अनादर किया और मां की प्राकृतिक ज्वाला को बुझाने की बहुत कोशिस की, लेकिन वह अपने प्रयास में असफल रहा। अकबर को जब ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ, तो क्षमा मांगने के लिए उसने ज्वाला देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया।
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