वेदों
और ग्रंथों में ब्रह्माणों के महत्व के बारे में बताया गया है। शास्त्रों के
अनुसार, वेदपाठी और ज्ञानी अपने धर्म-कर्म और देव भक्ति की वजह से
ब्रह्मतेज से सम्पन्न होते हैं। वे हमेशा ही पूजनीय माने जाते हैं। वेदपाठी
ब्रह्माणों और ज्ञानियों का कभी अपमान नहीं करना चाहिए, इसे घोर पाप माना गया है।
ब्रह्माणों का सम्मान करने पर जीवन में हर काम में सफलका मिलती है, इसके विपरीत उनका अपमान करने पर
वह हमें उनके श्राप का भागी भी बनना पड़ सकता है।
ऋग्वेद
में वेदपाठी ब्राह्मणों और ज्ञानियों के महत्व और सम्मान के बारे में कई बातें
बताई गई हैं। जिन्हें जान कर मनुष्य उनके महत्व और तेज को समझ करता है। ऋग्वेद की
एक ऋचा में इसी बात से संबंधित संकेत दिया गया है। उस कथा में बताया गया है कि किस
तरह राजा त्रसदस्यु द्वारा एक ब्राह्मण का सम्मान करने पर उसे जीवन में हर काम में
सफलता हासिल होती है।
ऋग्वेद में बताई गई कथा और श्लोक-
श्लोक-
ब्राह्मणान्
नावमन्येत ब्रह्मशापो हि दुस्तरः।
भीतोदात्
सौरभेः शापाद्वधूः पच्चशतं नृप।।
अर्थात-सदाचारी
और वेदपाठी ब्रह्माणों का विरोध नहीं करना चाहिए। राजा त्रसदस्यु ने ब्रह्माण
सौरभि का असंगत विवाह प्रस्ताव जानकर भी उनका सम्मान ही किया। जिससे राजा का महान
कल्याण हुआ।
कथा-
कथा
के अनुसार, एक समय पर सौभरि नाम के एक महान ब्राह्मण रहते थे। वह कठोर
तपस्या और धर्म-कर्म में लीन रहते थे। तपस्या करते हुए वे वृद्धावस्था में पहुंच
गए। एक दिन उन्होंने गंगा नदी के तट पर एक पुरुष को अपनी पत्नियों के साथ घूमते
हुए देखा। यह देख कर उनके मन में भी विवाह करके संसारिक सुख भोगने की इच्छा जाग
उठी। अपनी इसी इच्छ को पूरा करने के लिए वह राजा त्रसदस्यु से उनकी पुत्रियों के
हाथ मांगने के लिए चले गए। वृद्ध ब्राह्मण के मन की बात जान कर सभी लोग उनका मजाक
उठाने लगे, लेकिन राजा ने ब्राह्मण की वृद्ध अवस्था को देखकर भी उनका
अपमान न करते हुए, ब्राह्मण की इच्छा का मान रखा और कहा कि उसकी सौ पुत्रियों
में से जो भी पुत्री उनका का चयन करेगी राजा उसका विवाह ब्राह्मण से कर देंगे।
राजा की बात सुनकर ब्राह्मण ने भगवान इन्द्र की तपस्या करके उनसे युवा रूप प्राप्त
कर लिया, ताकि राजा की पुत्रियां उन्हीं का चयन करें। ब्राह्मण के
सुंदर रूप को देखकर राजा के सभी पुत्रियों ने उनसे विवाह कर लिया। राजा ने
ब्राह्मण के वृद्ध होने पर भी उनकी इच्छा का अपमान नहीं किया था और पूरे
आदर-सम्मान के साथ पूजन-अर्चन किया था। इस बात से खुश होकर ब्राह्मण ने राजा को कई
शुभ आशीर्वाद और वरदान दिए थे। जिनके फलस्वरूप राजा को जीवनभर सुख और उन्नति मिली।
अपमानित होने पर ऋषि दुर्वासा ने साहसिक को दे दिया था
श्राप
राजा
बलि का एक पुत्र का साहसिक। वह बहुत ही सुंदर और बलवान था। एक बार वह गन्धमादन
पर्वत पर अपनी पत्नियों के साथ घूम रहा था। उसी पर्वत पर ऋषि दुर्वासा तपस्या कर
रहें थे। साहसिक ने ऋषि दुर्वासा को देख कर भी उनका सम्मान नहीं किया और अपनी
पत्नियों के साथ ऋषि को अनदेखा करके आगे जाने लगा। इस बात से क्रोधित होकर ऋषि
दुर्वासा ने साहसिक को गधा बन जाने का श्राप दे दिया था।
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