Thursday, September 15, 2016

MYTH: यहां हुआ था भगवान श्रीगणेश और भगवान परशुराम का युद्ध

कुछ समय पहले पुरातत्व विभाग ने छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा जिला से लगभग 30 कि.मी. की
दूर पर ढोल कल नाम की जगह पर भगवान गणेश की एक दुर्गम मूर्ति की खोज की। ढोल कल की पहाड़ियों पर 3000 फीट की ऊंचाई पर सैकड़ों साल पुरानी यह भव्य गणेश प्रतिमा आज भी लोगों के लिए आश्चर्य का कारण बनी हुई है। सदियों पहले इतने दुर्गम इलाके में इतनी ऊंचाई पर स्थापित की गई यह गणेश प्रतिमा आश्चर्य के कम नहीं है। यहां पर पहुँचाना आज भी बहुत जोखिम भरा काम है तो उस समय पर तो यह काम और भी मुश्किल होगा। पुरात्वविदों का अनुमान यह है 10वी शताब्दी में दंतेवाड़ा क्षेत्र के रक्षक के रूप नागवंशियों ने गणेश जी की यह मूर्ति यहां पर स्थापना की थी।
भव्य है यहां की गणेश प्रतीमा
पहाड़ी पर स्थापित गणेश प्रतीमा लगभग 6 फीट ऊंची और 21 फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई है। यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से बहुत ही कलात्मक है। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए हुए है। पुरात्वविदों के मुताबिक इस प्रकार की प्रतिमा बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं मिलती है।
इसी जगह हुआ था श्रीगणेश और परशुराम का युद्ध
दंतेश का क्षेत्र (वाड़ा) को दंतेवाड़ा कहा जाता है। इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है। इस क्षेत्र से सम्बंधित एक मान्यता है कि यह वही कैलाश क्षेत्र है, जहां पर श्रीगणेश एवं परशुराम के बीच युद्ध हुआ था। यहां पर दंतेवाड़ा से ढोल कल पहुंचने के मार्ग में एक ग्राम परस पाल मिलता है, जो परशुराम के नाम से जाना जाता है। इसके आगे ग्राम कोतवाल पारा आता है। कोतवाल का अर्थ होता है रक्षक।
दंतेवाड़ा क्षेत्र के रक्षक है श्रीगणेश
मान्यताओं के अनुसार, इतनी ऊंची पहाड़ी पर भगवान गणेश की स्थापित नागवंशी शासकों ने की थी। गणेश जी के उदर पर एक नाग का चिन्ह मिलता है। कहा जाता है कि मूर्ति का निर्माण करवाते समय नागवंशियों ने यह चिन्ह भगवान गणेश पर अंकित किया होगा। कला की दृष्टि से यह मूर्ति 10-11 शताब्दी की (नागवंशी) प्रतिमा कही जा सकती है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-TID-ganesh-idol-at-chhattisgarh-in-hindi-news-hindi-5417546-PHO.html

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