Saturday, September 10, 2016

श्रीगणेश को क्यों कहते हैं मैनेजमेंट गुरु, जानिए इन 7 बातों से

इन दिनों गणेशोत्सव चल रहा है। भगवान श्रीगणेश के जन्म की कथा जितनी रोचक है, उनके शरीर की बनावट भी उतनी ही रहस्यमयी है। इसके अलावा भी श्रीगणेश से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं, जो बच्चों के लिए जिज्ञासा का विषय है जैसे- श्रीगणेश को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं या श्रीगणेश को मोदक का भोग क्यों लगाया जाता है? आज हम बच्चों की जिज्ञासा दूर करने के लिए श्रीगणेश से जुड़ा कुछ ऐसी ही परंपराओं व रोचक सवालों के जवाब आपको बता रहे हैं। इन जवाबों में लाइफ मैनेजमेंट के कर्इं सूत्र भी छिपे हैं, जो बच्चों के भावी जीवन के लिए उपयोगी साबित होंगे-
1. श्रीगणेश का मस्तक हाथी का क्यों है?
कथा- शिवपुराण के अनुसार माता पार्वती ने अपने मैल से एक बालक की रचना की तथा उसमें प्राण डाल दिए। पार्वती ने उस बालक को अपना पुत्र बनाकर कहा कि मेरी आज्ञा के बिना कोई भी अंदर न आने पाए। जब भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती से मिलने जाने लगे तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। बहुत समझाने पर भी जब वह बालक नहीं माना तो शिवजी ने अपने त्रिशूल से उस बालक का मस्तक काट दिया।
जब माता पार्वती को यह पता चला तो वह बहुत क्रोधित हो गईं। माता पार्वती को शांत करने के लिए विष्णुजी एक गजबालक का सिर काटकर लाए और उस बालक के धड़ से जोड़ कर उसे पुनर्जीवित कर दिया। भगवान शिव ने उस बालक को अपने गणों का प्रधान नियुक्त कर दिया। गणों का ईश होने के कारण ही उस बालक का नाम गणेश पड़ा।
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भगवान गणेश गजमुख है जिस पर हाथी जैसे कान सूप जैसे हैं। जिनका मतलब है कि बातें सबकी सुनो, लेकिन उनका सार ही ग्रहण करो। ठीक उसी तरह जिस तरह सूप छिलके बाहर फेंककर सिर्फ अन्न को ही अपने पास रखता है। इसी तरह श्री गणेश की छोटी आंखें मानव को जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। उनकी बड़ी नाक (सूंड) दूर तक सूंघने में समर्थ है, जो उनकी दूरदर्शिता को बताती है जिसका अर्थ है कि उन्हें हर बात का ज्ञान है।

 2. श्रीगणेश का एक दांत टूटा हुआ क्यों है?
कथा- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो भगवान ध्यान में थे। तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुरामजी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, जिसके कारण उनका एक दांत टूट गया। तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।
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श्री गणेश के दो दांत हैं एक पूर्ण व दूसरा अपूर्ण। पूर्ण दांत श्रद्धा का प्रतीक है तथा टूटा हुआ दांत बुद्धि का। वह मनुष्य को यह प्रेरणा देते हैं कि जीवन में बुद्धि कम होगी तो चलेगा, लेकिन ईश्वर के प्रति पूरा विश्वास रखना चाहिए।
3. श्रीगणेश का पेट बड़ा क्यों है?
कथा- जब कार्तिकेय ने तारकासुर को मार दिया तो दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।
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भगवान गणेश का बड़ा पेट यह बताता है कि पेट गागर की तरह छोटा नहीं अपितु सागर की तरह विशाल होना चाहिए, जिसमें अच्छी-बुरी सभी बातों को शामिल करने की शक्ति हो।
4. श्रीगणेश का वाहन चूहा क्यों है?
कथा- ग्रंथों के अनुसार, गजमुखासुर नामक एक दैत्य था। वह सत्पुरुषों का कष्ट देता था। एक बार उसका युद्ध भगवान श्रीगणेश से हुआ। श्रीगणेश ने उस दैत्य को परास्त कर दिया। श्रीगणेश से घबराकर वह दैत्य चूहा बनकर भागने लगा तभी गणेशजी ने उसे पकड़ लिया और अपना वाहन बना लिया। तभी से श्रीगणेश का वाहन मूषक उनके स्वरूप के साथ सदा के लिए जुड़ गया।
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चूहे की प्रवृत्ति होती है कुतरने की। अत: इसे कुतर्क का प्रतीक माना जाता है। गणेश बुद्धि के देवता हैं। संदेश है कि बुद्धि की वृद्धि के लिए कुतर्क को काबू में रखना चाहिए। कुतर्कों से व्यक्ति भ्रमित हो जाता है। जीवन में वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है। जिस तरह चूहा कुतर-कुतर कर उपयोगी वस्तुओं को बेकार कर देता है वैसे ही कुतर्कों से विवेक नष्ट हो सकता है। ऐसे कुतर्कों पर सवार होने का तात्पर्य है कुतर्कां पर काबू करना।
5. श्रीगणेश को क्यों चढ़ाते हैं दूर्वा?
कथा- पुराणों में कथा है कि पृथ्वी पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की। तब इंद्र और अनलासुर में भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन इंद्र भी उसे परास्त न कर सके। तब सभी देवतागण एकत्रित होकर भगवान शिव के पास गए तथा अनलासुर का वध करने का अनुरोध किया। तब शिव ने कहा इसका नाश सिर्फ श्रीगणेश ही कर सकते हैं। तब सभी देवताओं ने भगवान गणेश की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया। अनलासुर को निगलने के कारण गणेशजी के पेट में जलन होने लगी, तब ऋषि कश्यप ने 21 दूर्वा की गांठ उन्हें खिलाई और इससे उनकी पेट की ज्वाला शांत हुई। इसी मान्यता के चलते श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित की जाती है।
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दूर्वा जिसे आम भाषा में दूब भी कहते हैं, एक प्रकार ही घास है। इसकी विशेषता है कि इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहरे (लगभग 6 फीट तक) उतर जाती हैं। विपरीत परिस्थिति में यह अपना अस्तित्व बखूबी बचाए रखती हैं। इसलिए दूर्वा गहनता और पवित्रता की प्रतीक है। इसे देखते ही मन में ताजगी और प्रफुल्लता का अनुभव होता है। हमारे जीवन में दूर्वा के कई उपयोग हैं। दूर्वा को शीतल और रेचक (राहत पहुंचाने वाला) माना जाता है। दूर्वा के कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है। प्रात:काल सूर्योदय से पहले दूब पर जमी ओंस की बूंदों पर नंगे पैर घूमने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
6. गणेश चतुर्थी की रात चंद्रमा के दर्शन क्यों नहीं करते?
कथा- भगवान श्रीगणेश को जब हाथी (गज) का मुख लगाया गया तो वे गजवदन कहलाए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराता रहा। उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमानवश उनका उपहास कर रहा है। क्रोध में आकर श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि- आज से तुम काले हो जाओगे। तब चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने श्रीगणेश से क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण होओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे।
लेकिन आज का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति आज यानी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसीलिए भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता।
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शारीरिक बनावट, चाल-ढाल या व्यक्तित्व के आधार पर किसी व्यक्ति का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। संभव है वह व्यक्ति गुणों के आधार पर आपसे कहीं बेहतर हो। साथ ही मनुष्य को कभी भी किसी भी बात का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि घमंड के कारण व्यक्ति के अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं। इसलिए कभी भी किसी भी तरह से अभिमान नहीं करना चाहिए। अभिमानी व्यक्ति का पतन एक दिन अवश्य होता है।
7. श्रीगणेश को क्यों चढ़ाते हैं मोदक?
वैसे तो किसी भी धर्म ग्रंथ में भगवान श्रीगणेश को मोदक का भोग लगाने के संबंध में कोई कथा या किवदंती नहीं मिलती, लेकिन इसके पीछे लाइफ मैनेजमेंट के सूत्र अवश्य छिपे हैं।
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मोदक यानी जो मोद (आनन्द) देता है, जिससे आनन्द प्राप्त हो, संतोष हो, इसका गहरा अर्थ यह है कि तन का आहार हो या मन के विचार वह सात्विक और शुद्ध होना जरुरी है। तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद पा सकते हैं। मोदक ज्ञान का प्रतीक है। जैसे मोदक को थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे खाने पर उसका स्वाद और मिठास अधिक आनंद देती है और अंत में मोदक खत्म होने पर आप तृप्त हो जाते हैं, उसी तरह वैसे ही ऊपरी और बाहरी ज्ञान व्यक्ति को आनंद नही देता परंतु ज्ञान की गहराई में सुख और सफलता की मिठास छुपी होती है। इस प्रकार जो अपने कर्म के फलरूपी मोदक प्रभु के हाथ में रख देता है उसे प्रभु आशीर्वाद देते हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-life-management-formulas-of-lord-ganesh-news-hindi-5413140-PHO.html

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