श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराने
की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया हुआ भोजन हमारे पितरों को
प्राप्त होता है। ऐसी ही एक कथा का वर्णन हमारे पद्म पुराण में भी मिलता है उसके
अनुसार-
जब भगवान राम वनवास में थे, तब श्राद्ध पक्ष में उन्होंने
अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध किया। सीताजी ने अपने हाथों से सब सामग्री तैयार
की, परंतु
जब निमंत्रित ब्राह्मण भोजन के लिए आए तो सीताजी उनको देखकर कुटिया में चली गईं।
भोजन के बाद जब ब्राह्मण चले गए तो श्रीराम ने इसका कारण पूछा। तब सीताजी ने कहा
कि-
पिता तव मया दृष्यो ब्राह्मणंगेषु राघव।
दृष्टवा त्रपान्विता चाहमपक्रान्ता तवान्तिकात्।।
याहं राज्ञा पुरा दृष्टा सर्वालंकारभूषिता।
सा स्वेदमलदिग्धांगी कथं पश्यामि भूमिपम्।।
दृष्टवा त्रपान्विता चाहमपक्रान्ता तवान्तिकात्।।
याहं राज्ञा पुरा दृष्टा सर्वालंकारभूषिता।
सा स्वेदमलदिग्धांगी कथं पश्यामि भूमिपम्।।
(पद्म
पुराण सृष्टि 33/74/110)
अर्थात- हे
राघव। मैंने निमंत्रित ब्राह्मणों के शरीर में आपके पिताजी का दर्शन किया। इसलिए
लज्जित होकर मैं आपके निकट से दूर चली गई। मेरे श्वसुर ने पहले मुझे सब आभूषणों और
अलंकारों से सुसज्जित देखा था, अब वे मुझे इस अवस्था में कैसे देख पाते।
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