भाद्रपद
मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध व पितृ पक्ष
कहलाता है। हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष को बहुत ही पवित्र समय माना गया है। इन 16 दिनों में पितरों की आत्मा की
शांति के लिए ब्राह्मणों का भोजन करवाया जाता है, साथ ही तर्पण व पिंडदान भी किया जाता है। श्राद्ध पक्ष से
कई परंपराएं भी जुड़ी हैं।
वर्तमान समय में जब बच्चे श्राद्ध पक्ष की परंपराओं को देखते हैं तो उनके मन में सहज ही इन परंपराओं के पीछे छिपे भाव व मनोवैज्ञानिक पक्ष को जानने की उत्सुकता जाग उठती है, लेकिन कई बार संकोचवश बच्चे इन परंपराओं के बारे में अपने माता-पिता से पूछ नहीं पाते। बच्चों के मन की जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से आज हम श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कुछ खास परंपराओं के बारे में बता रहे हैं। ये परंपराएं इस प्रकार हैं-
वर्तमान समय में जब बच्चे श्राद्ध पक्ष की परंपराओं को देखते हैं तो उनके मन में सहज ही इन परंपराओं के पीछे छिपे भाव व मनोवैज्ञानिक पक्ष को जानने की उत्सुकता जाग उठती है, लेकिन कई बार संकोचवश बच्चे इन परंपराओं के बारे में अपने माता-पिता से पूछ नहीं पाते। बच्चों के मन की जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से आज हम श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कुछ खास परंपराओं के बारे में बता रहे हैं। ये परंपराएं इस प्रकार हैं-
परंपरा 1. श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन
क्यों करवाया जाता है?
उत्तर. श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन
करवाना एक जरूरी परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाए बिना
श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में
पितृ भी भोजन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया गया भोजन सीधे
पितरों तक पहुंचता है।इसलिए विद्वान ब्राह्मणों को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन कराने पर पितृ भी तृप्त होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितृ भी चलते हैं।
परंपरा 2. श्राद्ध के भोजन में खीर क्यों
बनाई जाती है?
उत्तर. जब भी कोई अतिथि हमारे घर आता है
तो हम उसे स्वादिष्ट भोजन कराते हैं,
उस भोजन
में मिठाई भी अवश्य होती है। मिठाई के साथ भोजन करने पर अतिथि को पूर्ण तृप्ति का
अनुभव होता है। इसी भावना के साथ श्राद्ध में भी पितरों की पूर्ण तृप्ति के लिए
खीर बनाई जाती है। मनोवैज्ञानिक भाव यह भी है कि श्राद्ध के भोजन में खीर बनाकर हम
अपने पितरों के प्रति आदर-सत्कार प्रदर्शित करते हैं।
श्राद्ध में खीर बनाने के पीछे एक पक्ष यह भी है कि श्राद्ध पक्ष से पहले का समय बारिश का होता है। पहले के समय में लोग बारिश के कारण अधिकांश समय घरों में ही व्रत-उपवास करके बिताते थे। अत्यधिक व्रत-उपवास के कारण शरीर कमजोर हो जाता था। इसलिए श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों तक खीर-पूड़ी खाकर व्रती अपने आप को पुष्ट करते थे। इसलिए श्राद्ध में खीर बनाने की परंपरा है।
श्राद्ध में खीर बनाने के पीछे एक पक्ष यह भी है कि श्राद्ध पक्ष से पहले का समय बारिश का होता है। पहले के समय में लोग बारिश के कारण अधिकांश समय घरों में ही व्रत-उपवास करके बिताते थे। अत्यधिक व्रत-उपवास के कारण शरीर कमजोर हो जाता था। इसलिए श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों तक खीर-पूड़ी खाकर व्रती अपने आप को पुष्ट करते थे। इसलिए श्राद्ध में खीर बनाने की परंपरा है।
परंपरा 3. श्राद्ध में कौओं, गाय व कुत्तों को भोजन क्यों
दिया जाता है?
उत्तर. ग्रंथों के अनुसार, कौवा यम का प्रतीक है, जो दिशाओं का फलित (शुभ-अशुभ संकेत
बताने वाला) बताता है। इसलिए श्राद्ध का एक अंश इसे भी दिया जाता है। कौओं को
पितरों का स्वरूप भी माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध का भोजन कौओं को खिलाने
से पितृ देवता प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वाले को आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध के भोजन का एक अंश गाय को भी दिया जाता है क्योंकि धर्म ग्रंथों में गाय को वैतरणी से पार लगाने वाली कहा गया है। गाय में ही सभी देवता निवास करते हैं। गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं इसलिए श्राद्ध का भोजन गाय को भी देना चाहिए।
कुत्ता यमराज का पशु माना गया है, श्राद्ध का एक अंश इसको देने से यमराज प्रसन्न होते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, कुत्ते को रोटी खिलाते समय बोलना चाहिए कि- यमराज के मार्ग का अनुसरण करने वाले जो श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते हैं, मैं उनके लिए यह अन्न का भाग देता हूं। वे इस बलि (भोजन) को ग्रहण करें। इसे कुक्करबलि कहते हैं।
श्राद्ध के भोजन का एक अंश गाय को भी दिया जाता है क्योंकि धर्म ग्रंथों में गाय को वैतरणी से पार लगाने वाली कहा गया है। गाय में ही सभी देवता निवास करते हैं। गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं इसलिए श्राद्ध का भोजन गाय को भी देना चाहिए।
कुत्ता यमराज का पशु माना गया है, श्राद्ध का एक अंश इसको देने से यमराज प्रसन्न होते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, कुत्ते को रोटी खिलाते समय बोलना चाहिए कि- यमराज के मार्ग का अनुसरण करने वाले जो श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते हैं, मैं उनके लिए यह अन्न का भाग देता हूं। वे इस बलि (भोजन) को ग्रहण करें। इसे कुक्करबलि कहते हैं।
परंपरा 4. श्राद्ध करते समय अनामिका उंगली
में कुशा की अंगूठी क्यों पहनी जाती है?
उत्तर. हिंदू धर्म में कुशा (एक विशेष
प्रकार की घास) को बहुत ही पवित्र माना गया है। अनेक कामों में कुशा का उपयोग किया
जाता है। श्राद्ध करते समय कुशा से बनी अंगूठी (पवित्री) अनामिका उंगली में धारण
करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में
भगवान शंकर निवास करते हैं।
श्राद्ध कर्म में कुशा की अंगूठी धारण करने से अभिप्राय है कि हमने पवित्र होकर अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म व पिंडदान किया है। महाभारत के अन्य प्रसंग के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा।
श्राद्ध कर्म में कुशा की अंगूठी धारण करने से अभिप्राय है कि हमने पवित्र होकर अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म व पिंडदान किया है। महाभारत के अन्य प्रसंग के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा।
परंपरा 5. पितरों का तर्पण करते समय
अंगूठे से ही पानी क्यों दिया जाता है?
उत्तर.श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का
तर्पण भी किया जाता है यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है।
ऐसी मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
इसके पीछे का कारण हस्त रेखा से जुड़ा है।
हस्त रेखा शास्त्र के अनुसार, पंजे के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है। इस प्रकार अंगूठे से चढ़ाया गया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है।
हस्त रेखा शास्त्र के अनुसार, पंजे के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है। इस प्रकार अंगूठे से चढ़ाया गया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है।
परंपरा 6. श्राद्ध में चतुर्दशी तिथि के
दिन श्राद्ध क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर.महाभारत के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में चतुर्दशी तिथि के
दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए,
क्योंकि इस
दिन जो लोग तिथि के अनुसार अपने परिजनों का श्राद्ध करते हैं, वे विवादों में घिर जाते हैं। उसके
घर वाले जवानी में ही मर जाते हैं और श्राद्धकर्ता को भी शीघ्र ही लड़ाई में जाना
पड़ता है। इस दिन केवल उन्हीं परिजनों का श्राद्ध करना चाहिए जिनकी अकाल मृत्यु हुई
हो।
अकाल मृत्यु से अर्थ है जिसकी मृत्यु हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना आदि कारणों से हुई है। इसलिए इस श्राद्ध को शस्त्राघात मृतका श्राद्ध भी कहते हैं। इस तिथि के दिन जिन लोगों की सामान्य रूप से मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना उचित रहता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-know-the-traditions-of-shradha-news-hindi-5424093-PHO.htmlअकाल मृत्यु से अर्थ है जिसकी मृत्यु हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना आदि कारणों से हुई है। इसलिए इस श्राद्ध को शस्त्राघात मृतका श्राद्ध भी कहते हैं। इस तिथि के दिन जिन लोगों की सामान्य रूप से मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना उचित रहता है।
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