Tuesday, September 20, 2016

श्राद्ध कौन कर सकता है

स्कंदपुराण के अनुसार पुत्र के जन्म लेने के साथ ही उस पर तीन ऋण जुड़ जाते हैं- देवऋण, ऋषिऋण और पितर ऋण। पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए पुत्र को अपने घर के बुजुर्गों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए जिससे उनको पुत नामक नरक से मुक्ति प्राप्त हो सके। श्राद्ध करने का पहला अधिकार मृतक के बड़े पुत्र का होता है परंतु यदि बड़ा पुत्र न हो अथवा वह श्राद्ध आदि कर्म न करता हो तो छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है।
यदि किसी परिवार में सभी पुत्र अलग-अलग रहते हों तो सभी को अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। यदि किसी का कोई पुत्र न हो तो उसकी विधवा स्त्री श्राद्ध करवा सकती है तथा पत्नी के न होने पर उसका पति भी पितरों के निमित्त श्राद्ध करने का अधिकारी है।     
 
पौत्र को अपने दादा-दादी का श्राद्ध करवाने का हक है परंतु पौत्र भी न हो तो पड़पौत्र, पड़पौत्र भी न हो तो भाई-भतीजे व उनके पुत्र भी श्राद्ध करवाकर अपने पितरों का उद्धार करवा सकते हैं। यदि किसी का ऐसा कोई भी संबंधी न हो तो लड़की का पुत्र यानी दोहता श्राद्ध करवाकर अपने पूर्वजों को नरक से निजात दिलवा सकता है। 
 
श्राद्ध करते समय दिशा का भी रखें ध्यान
विविध प्रसंगों के समय विविध दिशाएं उपयुक्त रहती हैं। देवता स्थान और पुण्य संचय के लिए परमात्मा की पश्चिम दिशा, श्राद्ध के समय विप्रों की उत्तर एवं कर्ता की दक्षिण दिशा और स्वाध्याय, ऋषिकर्म व योगाभ्यास के लिए स्वयं की उत्तर दिशा होती है। जगत् का नियमन करने वाले ‘यम’ देवता का दक्षिण दिशा से संबंध है। पितरों का निवास दक्षिण की ओर होने से इनका आह्वान करते ही वे दक्षिण स्थित होकर उत्तर की तरफ मुंह करते हैं।


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