हिंदू पंचांग के भाद्रमास मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन
मास की अमावस्या तिथि तक के समय को पितृ व श्राद्ध
पक्ष कहते हैं। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ 16 सितंबर से हो रहा है, जिसका समापन 30 सितंबर को होगा। सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का
समय पूर्वजों को तृप्त करने और उनके प्रति आस्था प्रकट करने के लिए ही बनाया गया है।
हर धर्म का आधार श्रद्धा है। सभी धर्मों में पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा के भाव का महत्व बताया गया है। सनातन धर्म में श्रद्धा प्रकट करने का
ही एक धार्मिक कर्म श्राद्ध है। श्राद्ध में हम अपने
पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। अपने मृत
पितृगण यानी पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक कर्म विशेष किए जाने के कारण इसका नाम श्राद्ध पड़ा। इसे ही पितृयज्ञ भी कहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, विभिन्न तिथियों पर किए गए श्राद्ध से मिलने वाले फल भी अलग-अलग होते हैं। शास्त्रों में श्राद्ध को महालय भी कहलाते हैं। मह का अर्थ होता है 'उत्सव का दिन' और आलय यानी 'घर'। इस कृष्ण पक्ष में पितरों का निवास माना गया है इसलिए इस काल में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। पितरों के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक तिल, कुश तथा जल आदि पदार्थों के त्याग एवं दान कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। इस प्रकार पितरों के प्रति श्रद्धा ही श्राद्ध का मुख्य भाव है यानी श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा जगाता है।
शास्त्रों के अनुसार, विभिन्न तिथियों पर किए गए श्राद्ध से मिलने वाले फल भी अलग-अलग होते हैं। शास्त्रों में श्राद्ध को महालय भी कहलाते हैं। मह का अर्थ होता है 'उत्सव का दिन' और आलय यानी 'घर'। इस कृष्ण पक्ष में पितरों का निवास माना गया है इसलिए इस काल में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। पितरों के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक तिल, कुश तथा जल आदि पदार्थों के त्याग एवं दान कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। इस प्रकार पितरों के प्रति श्रद्धा ही श्राद्ध का मुख्य भाव है यानी श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा जगाता है।
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