आश्विन
कृष्ण पक्ष में जिस दिन पूर्वजों की श्राद्ध तिथि आए, उस दिन पितरों की संतुष्टि के लिए
श्राद्ध विधि-विधान से करना चाहिए। किंतु अगर आप किसी कारणवश शास्त्रोक्त विधानों
से न कर पाएं तो यहां बताई श्राद्ध की सरल विधि से भी श्राद्ध कर सकते हैं-
श्राद्ध
विधि
सुबह
उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपकर व गंगाजल से पवित्र
करें। घर के आंगन में रांगोली बनाएं। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन
बनाएं। श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद या बहन
का पुत्र आदि) को न्योता देकर बुलाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि
करवाएं।
पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें। ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं। वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें। ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।
2. इसी प्रकार पत्नी गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरे पिंड खाती है, उससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं।
श्राद्ध
विधि
सुबह
उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपकर व गंगाजल से पवित्र
करें। घर के आंगन में रांगोली बनाएं। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन
बनाएं। श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद या बहन
का पुत्र आदि) को न्योता देकर बुलाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि
करवाएं।पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें। ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं। वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें। ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।
ऐसे करना चाहिए पिंडदान
महाभारत के अनुसार, श्राद्ध में जो तीन पिंडों का विधान है, उनमें से पहला जल
में डाल देना चाहिए। दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी को खिला देना चाहिए और
तीसरे पिंड की अग्नि में छोड़ देना चाहिए, यही श्राद्ध का
विधान है। जो इसका पालन करता है उसके पितर सदा प्रसन्नचित्त और संतुष्ट रहते हैं और उसका
दिया हुआ दान अक्षय होता है।
1. पहला पिंड जो
पानी के भीतर चला जाता है, वह चंद्रमा को
तृप्त करता है और चंद्रमा स्वयं देवता तथा पितरों को संतुष्ट करते हैं।
2. इसी प्रकार पत्नी गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरे पिंड खाती है, उससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं।
3. तीसरा पिंड अग्नि में डाला जाता है, उससे तृप्त होकर
पितर मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-this-is-the-easy-method-of-shradha-news-hindi-5422573-PHO.html
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