श्राद्ध पितरों को प्रसन्न करने
का एक माध्यम होता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध स्वयं की भूमि या घर पर ही करना श्रेष्ठ होता है, किसी दूसरे के घर में या भूमि पर श्राद्ध कभी नहीं करना
चाहिए। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्रीय निर्देश
हैं कि दूसरे के घर में जो श्राद्ध किया जाता है, उसमें श्राद्ध करने वाले के पितरों को कुछ नहीं मिलता। गृह
स्वामी के पितर बलपूर्वक सब छीन लेते हैं-
परकीय प्रदेशेषु पितृणां
निवषयेत्तुय: तद्भूमि स्वामि पितृभि: श्राद्ध कर्म विहन्यते।
तीर्थ में किए गए श्राद्ध से भी आठ गुना पुण्य श्राद्ध अपने घर में करने से होता है-
श्राद्ध
के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-
3. वस्त्र दान- श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद वस्त्र दान अवश्य करना चाहिए।
4. दक्षिणादान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है, जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती, उसका फल नहीं मिलता।
तीर्थ में किए गए श्राद्ध से भी आठ गुना पुण्य श्राद्ध अपने घर में करने से होता है-
तीर्थदृष्टगुणं पुण्यं स्वगृहे ददत: शुभे।
पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टिबल, लक्ष्मी, पशु व धान्य प्राप्त होते हैं-
पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टिबल, लक्ष्मी, पशु व धान्य प्राप्त होते हैं-
आयु: पुत्रान्यश: स्वर्ग कीर्तिपुष्टि बलंश्रियम्।
पशूनसौख्यम् धनं धान्यं प्राप्तुयात्पित् पूजनात्।।
पशूनसौख्यम् धनं धान्यं प्राप्तुयात्पित् पूजनात्।।
1. तर्पण-इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध
मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य
करने का विधान है।
2. भोजन
व पिंडदान- पितरों के
निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिंडदान
भी किए जाते हैं।
3. वस्त्र दान- श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद वस्त्र दान अवश्य करना चाहिए।
4. दक्षिणादान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है, जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती, उसका फल नहीं मिलता।
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