Friday, September 30, 2016

श्राद्ध पक्षः जब ब्राह्मणों में राजा दशरथ को देखा सीता ने

श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया हुआ भोजन हमारे पितरों को प्राप्त होता है। ऐसी ही एक कथा का वर्णन हमारे पद्म पुराण में भी मिलता है उसके अनुसार-

जब भगवान राम वनवास में थे, तब श्राद्ध पक्ष में उन्होंने अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध किया। सीताजी ने अपने हाथों से सब सामग्री तैयार की, परंतु जब निमंत्रित ब्राह्मण भोजन के लिए आए तो सीताजी उनको देखकर कुटिया में चली गईं। भोजन के बाद जब ब्राह्मण चले गए तो श्रीराम ने इसका कारण पूछा। तब सीताजी ने कहा कि-

पिता तव मया दृष्यो ब्राह्मणंगेषु राघव।
दृष्टवा त्रपान्विता चाहमपक्रान्ता तवान्तिकात्।।
याहं राज्ञा पुरा दृष्टा सर्वालंकारभूषिता।
सा स्वेदमलदिग्धांगी कथं पश्यामि भूमिपम्।।

(पद्म पुराण सृष्टि 33/74/110)

अर्थात- हे राघव। मैंने निमंत्रित ब्राह्मणों के शरीर में आपके पिताजी का दर्शन किया। इसलिए लज्जित होकर मैं आपके निकट से दूर चली गई। मेरे श्वसुर ने पहले मुझे सब आभूषणों और अलंकारों से सुसज्जित देखा था, अब वे मुझे इस अवस्था में कैसे देख पाते।

Thursday, September 29, 2016

कैसे निकलती है शरीर से आत्मा, क्या होता है मौत के बाद?

हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद ब्राह्मण द्वारा गरुड़ पुराण सुनने की परंपरा है। इस पुराण में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को मृत्यु से संबंधित अनेक गुप्त बातें बताई हैं। मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में बताया गया है। आज हम आपको गरुड़ पुराण में लिखी कुछ ऐसी ही खास व रोचक बातें बता रहे हैं-
ऐसे निकलते हैं शरीर से प्राण
गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोलना चाहता है, लेकिन बोल नहीं पाता। अंत समय में उसकी सभी इंद्रियां (बोलने, सुनने आदि की शक्ति) नष्ट हो जाती हैं और वह जड़ अवस्था में हो जाता है, यानी हिल-डुल भी नहीं पाता। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है।
उस समय दो यमदूत आते हैं। उनका चेहरा बहुत भयानक होता है, नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। उनकी आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। उनके हाथ में दंड रहता है। यमराज के दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मल-मूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठ मात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है, जिसे यमदूत पकड़ लेते हैं।

ऐसे डराते हैं यमदूत

यमराज के दूत उस शरीर को पकड़कर उसी समय यमलोक ले जाते हैं, जैसे- राजा के सैनिक अपराध करने वाले को पकड़ कर ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराज के दूत डराते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बार-बार बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते।

इतना कष्ट सहती है आत्मा

इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी हो, अपने पापों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है और वह भूख-प्यास से तड़पता है। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। फिर उठ कर चलने लगता है। इस प्रकार यमदूत जीवात्मा को अंधकार वाले रास्ते से यमलोक ले जाते हैं।

इतनी दूर है यमलोक

गरुड़ पुराण के अनुसार, यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है चार कोस यानी 13-16 कि.मी) है। वहां यमदूत पापी जीव को थोड़ी ही देर में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे सजा देते हैं। इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से यमदूतों के साथ फिर से अपने घर आती है।

 
तृप्त नहीं होती आत्मा
घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा करती है परंतु यमदूत के बंधन से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी को तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी लोग को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से युक्त होकर वह जीव यमलोक जाता है।

इसलिए करते हैं पिंडदान

इसके बाद पापात्मा के पुत्र आदि परिजन यदि पिंडदान नहीं देते हैं, तो वह प्रेत रूप हो जाती है और लंबे समय तक सुनसान जंगल में रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत (आत्मा) खाता है। नौवें दिन पिंडदान करने से प्रेत (आत्मा) का शरीर बनता है, दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।

ऐसे बनता है आत्मा का शरीर

शव को जलाने के बाद पिंड से अंगूठे के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही, यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल को भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है। ऐसे पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेत ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है।

47 दिन में आत्मा पहुचंती है यमलोक

यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत (आत्मा) को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। 47 दिन लगातार चलकर आत्मा यमलोक पहुंचती है। इस प्रकार मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है।

ये हैं 16 पुरियों के नाम

इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार हैं- सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति। इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद आगे यमराज पुरी आती है। पापी प्राणी यम, पाश में बंधे हुए मार्ग में हाहाकार करते हुए अपने घर को छोड़कर यमराज पुरी जाते हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-garud-puran-what-happens-after-death-know-news-hindi-5426085-PHO.html

Wednesday, September 28, 2016

भगवान विष्णु का चरणामृत पीने से मिलते हैं ये 3 लाभ: नारदपुराण

नारद पुराण में महर्षि नारद और ऋषि सनक के बीच के संवाद बताए गए हैं। यह मुख्यतः भगवान विष्णु के लीलाओं और गुणों पर आधारित ग्रंथ है। ग्रंथ के अनुसार भगवान विष्णु का चरणामृत पूरी आस्था और विश्वास के साथ लेने से मनुष्य की इन 3 परेशानियों के हल निकल जाते हैं।

1. सभी रोगों का इलाज

किसी के भय से या लालच से की गई पूजा का फल कभी नहीं मिलता है। जब भी भक्ति की जाए पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ की जाए। भगवान विष्णु की ऐसी ही पूजा करनी चाहिए। नियमित पूजा करने से और फिर भगवान का चरणामृत लेने से निरोगी शरीर का वरदान मिलता है, अगर पहले से कोई रोग है तो उसका इलाज भी मिल जाता है।

2. अकाल मृत्यु का निवारण

नारदपुराण के अनुसार, भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से और उनका प्रसाद ग्रहण करने से मनुष्य की सभी परेशानियों का हल निकलने लगता है। जिस मनुष्य को अकाल मृत्यु का भय रहता है या जिसे अकाल मृत्यु के सपने सताते हैं, उसे भगवान विष्णु का चरणामृत लेना चाहिए। ऐसा करने से उसका डर खत्म हो जाता है और लम्बी आयु प्राप्त होती है।

3. सभी दुःखों की शांति  

जिस घर में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का वास होता है, वहां पर दुःख और दरिद्रता कभी नहीं आते। जिस जगह पर रोज विष्णु-लक्ष्मी की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है, वहां के सभी दुःखों का नाश हो जाता है और सुख-समृद्धि बढ़ती है
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-benefits-of-lord-vishnus-charnamrat-in-hindi-news-hindi-5426137-PHO.html

Tuesday, September 27, 2016

श्राद्ध अपने घर या तीर्थ स्थान पर ही करना चाहिए, जानिए क्यों?

श्राद्ध पितरों को प्रसन्न करने का एक माध्यम होता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध स्वयं की भूमि या घर पर ही करना श्रेष्ठ होता है, किसी दूसरे के घर में या भूमि पर श्राद्ध कभी नहीं करना चाहिए। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्रीय निर्देश हैं कि दूसरे के घर में जो श्राद्ध किया जाता है, उसमें श्राद्ध करने वाले के पितरों को कुछ नहीं मिलता। गृह स्वामी के पितर बलपूर्वक सब छीन लेते हैं-

परकीय प्रदेशेषु पितृणां निवषयेत्तुय: तद्भूमि स्वामि पितृभि: श्राद्ध कर्म विहन्यते।
तीर्थ में किए गए श्राद्ध से भी आठ गुना पुण्य श्राद्ध अपने घर में करने से होता है-
तीर्थदृष्टगुणं पुण्यं स्वगृहे ददत: शुभे।
पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टिबल, लक्ष्मी, पशु व धान्य प्राप्त होते हैं-
आयु: पुत्रान्यश: स्वर्ग कीर्तिपुष्टि बलंश्रियम्।
पशूनसौख्यम् धनं धान्यं प्राप्तुयात्पित् पूजनात्।।
 श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-
1. तर्पण-इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
2. भोजन व पिंडदान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिंडदान भी किए जाते हैं।

3. वस्त्र दान- श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद वस्त्र दान अवश्य करना चाहिए।

4. दक्षिणादान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है, जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती, उसका फल नहीं मिलता।

Monday, September 26, 2016

क्या आप जानते हैं श्राद्ध से जुड़ी हैं ये 6 परंपराएं, ?


भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध व पितृ पक्ष कहलाता है। हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष को बहुत ही पवित्र समय माना गया है। इन 16 दिनों में पितरों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों का भोजन करवाया जाता है, साथ ही तर्पण व पिंडदान भी किया जाता है। श्राद्ध पक्ष से कई परंपराएं भी जुड़ी हैं।
वर्तमान समय में जब बच्चे श्राद्ध पक्ष की परंपराओं को देखते हैं तो उनके मन में सहज ही इन परंपराओं के पीछे छिपे भाव व मनोवैज्ञानिक पक्ष को जानने की उत्सुकता जाग उठती है, लेकिन कई बार संकोचवश बच्चे इन परंपराओं के बारे में अपने माता-पिता से पूछ नहीं पाते। बच्चों के मन की जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से आज हम श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कुछ खास परंपराओं के बारे में बता रहे हैं। ये परंपराएं इस प्रकार हैं-

परंपरा 1. श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन क्यों करवाया जाता है?

उत्तर. श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाना एक जरूरी परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाए बिना श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है।
इसलिए विद्वान ब्राह्मणों को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन कराने पर पितृ भी तृप्त होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितृ भी चलते हैं।

परंपरा 2. श्राद्ध के भोजन में खीर क्यों बनाई जाती है?


उत्तर. जब भी कोई अतिथि हमारे घर आता है तो हम उसे स्वादिष्ट भोजन कराते हैं, उस भोजन में मिठाई भी अवश्य होती है। मिठाई के साथ भोजन करने पर अतिथि को पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है। इसी भावना के साथ श्राद्ध में भी पितरों की पूर्ण तृप्ति के लिए खीर बनाई जाती है। मनोवैज्ञानिक भाव यह भी है कि श्राद्ध के भोजन में खीर बनाकर हम अपने पितरों के प्रति आदर-सत्कार प्रदर्शित करते हैं।
श्राद्ध में खीर बनाने के पीछे एक पक्ष यह भी है कि श्राद्ध पक्ष से पहले का समय बारिश का होता है। पहले के समय में लोग बारिश के कारण अधिकांश समय घरों में ही व्रत-उपवास करके बिताते थे। अत्यधिक व्रत-उपवास के कारण शरीर कमजोर हो जाता था। इसलिए श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों तक खीर-पूड़ी खाकर व्रती अपने आप को पुष्ट करते थे। इसलिए श्राद्ध में खीर बनाने की परंपरा है।

परंपरा 3. श्राद्ध में कौओं, गाय व कुत्तों को भोजन क्यों दिया जाता है?


उत्तर. ग्रंथों के अनुसार, कौवा यम का प्रतीक है, जो दिशाओं का फलित (शुभ-अशुभ संकेत बताने वाला) बताता है। इसलिए श्राद्ध का एक अंश इसे भी दिया जाता है। कौओं को पितरों का स्वरूप भी माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध का भोजन कौओं को खिलाने से पितृ देवता प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वाले को आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध के भोजन का एक अंश गाय को भी दिया जाता है क्योंकि धर्म ग्रंथों में गाय को वैतरणी से पार लगाने वाली कहा गया है। गाय में ही सभी देवता निवास करते हैं। गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं इसलिए श्राद्ध का भोजन गाय को भी देना चाहिए।
कुत्ता यमराज का पशु माना गया है, श्राद्ध का एक अंश इसको देने से यमराज प्रसन्न होते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, कुत्ते को रोटी खिलाते समय बोलना चाहिए कि- यमराज के मार्ग का अनुसरण करने वाले जो श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते हैं, मैं उनके लिए यह अन्न का भाग देता हूं। वे इस बलि (भोजन) को ग्रहण करें। इसे कुक्करबलि कहते हैं।

परंपरा 4. श्राद्ध करते समय अनामिका उंगली में कुशा की अंगूठी क्यों पहनी जाती है?


उत्तर. हिंदू धर्म में कुशा (एक विशेष प्रकार की घास) को बहुत ही पवित्र माना गया है। अनेक कामों में कुशा का उपयोग किया जाता है। श्राद्ध करते समय कुशा से बनी अंगूठी (पवित्री) अनामिका उंगली में धारण करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शंकर निवास करते हैं।
श्राद्ध कर्म में कुशा की अंगूठी धारण करने से अभिप्राय है कि हमने पवित्र होकर अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म व पिंडदान किया है। महाभारत के अन्य प्रसंग के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा।

परंपरा 5. पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे से ही पानी क्यों दिया जाता है?


उत्तर.श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इसके पीछे का कारण हस्त रेखा से जुड़ा है।
हस्त रेखा शास्त्र के अनुसार, पंजे के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है। इस प्रकार अंगूठे से चढ़ाया गया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है।

परंपरा 6. श्राद्ध में चतुर्दशी तिथि के दिन श्राद्ध क्यों नहीं करना चाहिए?


उत्तर.महाभारत के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में चतुर्दशी तिथि के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दिन जो लोग तिथि के अनुसार अपने परिजनों का श्राद्ध करते हैं, वे विवादों में घिर जाते हैं। उसके घर वाले जवानी में ही मर जाते हैं और श्राद्धकर्ता को भी शीघ्र ही लड़ाई में जाना पड़ता है। इस दिन केवल उन्हीं परिजनों का श्राद्ध करना चाहिए जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
अकाल मृत्यु से अर्थ है जिसकी मृत्यु हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना आदि कारणों से हुई है। इसलिए इस श्राद्ध को शस्त्राघात मृतका श्राद्ध भी कहते हैं। इस तिथि के दिन जिन लोगों की सामान्य रूप से मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना उचित रहता है। 
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-know-the-traditions-of-shradha-news-hindi-5424093-PHO.html