धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रावण
मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर
प्रमुख नाग मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त नागदेवता के दर्शन व
पूजा करते हैं। सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नागदेवता की
पूजा करने का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व 28 जुलाई, शुक्रवार को है। इस दिन नागदेवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि इस प्रकार है-
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व 28 जुलाई, शुक्रवार को है। इस दिन नागदेवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि इस प्रकार है-
पूजन विधि
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे
पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के
सामने यह मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
शंखपाल धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
इसके बाद पूजा व उपवास का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की
प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, फूल, धूप, दीप से पूजा करें व सफेद मिठाई
का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें-
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बांट दें। इस प्रकार पूजा
करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।
ये है नागपंचमी की कथा
किसी नगर में एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था। एक दिन
वह किसान अपने खेत में हल चलाने गया। हल जोतते समय नागिन के बच्चे हल से कुचल कर
मर गए। नागिन बच्चों को मरा देखकर दु:खी हुई। उसने क्रोध में आकर किसान, उसकी पत्नी और लड़कों को डस
लिया। जब वह किसान की कन्या को डसने गई। तब उसने देखा किसान की कन्या दूध का कटोरा
रखकर नागपंचमी का व्रत कर रही है। यह देख नागिन प्रसन्न हो गई। उसने कन्या से वर
मांगने को कहा। किसान कन्या ने अपने माता-पिता और भाइयों को जीवित करने का वर
मांगा। नागिन ने प्रसन्न होकर किसान परिवार को जीवित कर दिया। तभी से ऐसी मान्यता
है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को नागदेवता की पूजा करने से नागों द्वारा किसी प्रकार
का कष्ट और भय नहीं रहता।
ये है नागपंचमी से जुड़ा लाइफ
मैनेजमेंट
हिंदू धर्म के अंतर्गत प्रकृति में शामिल प्रत्येक प्राणी, वनस्पति आदि को भगवान के रूप
में देखा जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने उनमें धर्म भाव पैदा करने के लिए धर्म से
जोड़कर किसी विशेष तिथि, दिवस
या अवसर का निर्धारण किया है। इसी क्रम में नाग को देव प्राणी माना गया है इसलिए
श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है।
नागपंचमी का यह पर्व यह संदेश देता है कि स्वाभाविक रूप से नाग जाति की उत्पत्ति मानव को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई है। जबकि वह पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है एवं नाग खेती को नुकसान करने वाले चूहे एवं अन्य कीट आदि का भक्षण कर फसल की रक्षा ही करते हैं। इस प्रकार यह हम पर नाग-जाति का उपकार होता है। अत: नाग को मारना या उनके प्रति हिंसा नहीं करना चाहिए ।
मूलत: नागपंचमी नाग जाति के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का पर्व है । यह पर्व नाग के साथ प्राणी जगत की सुरक्षा, प्रेम, अहिंसा, करुणा, सहनशीलता के भाव जगाता है। साथ ही प्राणियों के प्रति संवेदना का संदेश देता है।
नागपंचमी का यह पर्व यह संदेश देता है कि स्वाभाविक रूप से नाग जाति की उत्पत्ति मानव को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई है। जबकि वह पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है एवं नाग खेती को नुकसान करने वाले चूहे एवं अन्य कीट आदि का भक्षण कर फसल की रक्षा ही करते हैं। इस प्रकार यह हम पर नाग-जाति का उपकार होता है। अत: नाग को मारना या उनके प्रति हिंसा नहीं करना चाहिए ।
मूलत: नागपंचमी नाग जाति के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का पर्व है । यह पर्व नाग के साथ प्राणी जगत की सुरक्षा, प्रेम, अहिंसा, करुणा, सहनशीलता के भाव जगाता है। साथ ही प्राणियों के प्रति संवेदना का संदेश देता है।
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