Saturday, July 15, 2017

महामत्युंजय मंत्र

धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि अमर हैं। आठ अमर लोगों में मार्कण्डेय ऋषि का भी नाम आता है। इनके पिता मर्कण्डु ऋषि थे। मर्कण्डु ऋषि को जब कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने सपत्नीक भगवान शिव की आराधना की। तपस्या से प्रकट हुए शिव ने उनसे पूछा कि वे गुणहीन दीर्घायु पुत्र चाहते हैं या गुणवान 16 साल का अल्पायु पुत्र। तब मर्कण्डु ऋषि ने दूसरी बात को चुना, यानी गुणी अल्पायु पुत्र।
बड़ा होने पर मार्कण्डेय को जब यह बात पता चली तो वे शिव भक्ति में लीन हो गए। इस दौरान सप्तऋषियों की सहायता से ब्रह्मदेव से उनको महामृत्युंजय मंत्र की दीक्षा मिली। इस मंत्र का प्रभाव यह हुआ कि जब यमराज उनकी मृत्यु के नियत दिन उन्हें लेने आए तो स्वयं भगवान शिव ने यमराज के वार को बेअसर कर दिया और बालक मार्कण्डेय को दीर्घायु होने का वरदान दिया।
मंत्र-
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ||
इस मंत्र को संपुट-युक्त बनाने के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है 
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ 
त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात || 
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
मंत्र के लाभ- रूद्राक्ष माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। रोजाना सुबह और शाम इस मंत्र का जप करने से सेहत बनी रहती है। किसी को यदि कोई गंभीर असाध्य बीमारी हो जाए तो उसके लिए महामृत्युंजय जप किया या करवाया जाता है। किसी भी तरह की अकास्मिक दुर्घटना का भय होने या घर में किसी भी तरह का दोष होने पर भी महामृत्युंजय मंत्र का जप लाभदायक होता है।
https://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-mahamratumjay-mantra-5646106-PHO.html?seq=1

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