भगवान शिव आदि और अनंत है यानी न कोई इनकी उत्पत्ति के बारे
में जानता है और न कोई अंत के बारे में। अनेक ग्रंथों में भगवान शिव की महिमा का
वर्णन किया गया है। शिव से जुड़ी अनेक कथाएं में पुराणों में बताई गई हैं। सावन के
पवित्र महीने में हम आपको भगवान शिव की वही रोचक कथाएं बता रहे हैं-
शिवजी को इसलिए नहीं चढ़ाते केतकी का फूल
शिवपुराण के अनुसार, एक
बार ब्रह्मा व विष्णु में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता
होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के
पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट ज्योतिर्मय
लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सर्वानुमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग
के छोर का पहले पता लगाएगा, उसे
ही श्रेष्ठ माना जाएगा।
अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णु लौट आए। ब्रह्माजी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णु से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्माजी के असत्य कहने पर स्वयं भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की आलोचना की।
दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की तब शिवजी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूं। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है। शिव ने केतकी पुष्प को झूठा साक्ष्य देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह फूल मेरी पूजा में उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इसीलिए शिव के पूजन में कभी केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता।
अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णु लौट आए। ब्रह्माजी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णु से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्माजी के असत्य कहने पर स्वयं भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की आलोचना की।
दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की तब शिवजी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूं। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है। शिव ने केतकी पुष्प को झूठा साक्ष्य देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह फूल मेरी पूजा में उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इसीलिए शिव के पूजन में कभी केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता।
इसलिए शिव ने दिया था विष्णु को
सुदर्शन चक्र
भगवान विष्णु को हर चित्र व मूर्ति में सुदर्शन चक्र धारण
किए दिखाया जाता है। यह सुदर्शन चक्र भगवान शंकर ने ही जगत कल्याण के लिए विष्णु
को दिया था। इस संबंध में शिवपुराण की कोटिरुद्र संहिता में एक कथा है। उसके
अनुसार-
एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। वे प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला।
तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।
एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। वे प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया। शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला।
तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।
ये हैं भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार
शिवपुराण के अनुसार, एक
बार देवताओं और दानवों में लड़ाई छिड़ गई। इसमें दानव जीत गए और उन्होंने देवताओं को
स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। सभी देवता बड़े दु:खी मन से अपने पिता कश्यप मुनि के
पास गए। उन्होंने पिता को अपने दु:ख का कारण बताया। कश्यप मुनि परम शिवभक्त थे।
उन्होंने अपने पुत्रों को आश्वासन दिया और काशी जाकर भगवान शिव की पूजा की। उनकी
सच्ची भक्ति देखकर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और दर्शन देकर वर मांगने को कहा।
कश्यप मुनि ने देवताओं की भलाई के लिए उनके यहां पुत्र रूप में आने का वरदान मांगा। शिव भगवान ने कश्यप को वर दिया और वे उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रूपों में प्रकट हुए। यही ग्यारह रुद्र कहलाए। ये देवताओं के दु:ख को दूर करने के लिए प्रकट हुए थे। इसीलिए इन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग का राज्य दिलाया। यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।
कश्यप मुनि ने देवताओं की भलाई के लिए उनके यहां पुत्र रूप में आने का वरदान मांगा। शिव भगवान ने कश्यप को वर दिया और वे उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रूपों में प्रकट हुए। यही ग्यारह रुद्र कहलाए। ये देवताओं के दु:ख को दूर करने के लिए प्रकट हुए थे। इसीलिए इन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग का राज्य दिलाया। यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।
इनके नाम इस प्रकार हैं-
1- कपाली 2- पिंगल
3- भीम
4- विरुपाक्ष
5- विलोहित
6- शास्ता
7- अजपाद
8- अहिर्बुधन्य
9- शंभु
10- चण्ड
11- भव
शिव के वरदान से द्रोपदी बनीं
पांडवों की पत्नी
द्रौपदी महाभारत के सबसे अहम पात्रों में से एक थी। द्रौपदी
को स्वयंवर में अर्जुन ने अपने पराक्रम से प्राप्त किया था फिर भी वह पांचों
भाइयों (पांडवों) की पत्नी बनी। इसका कारण द्रौपदी के पिछले जन्म में शंकर भगवान
द्वारा दिया गया वरदान था। महाभारत के आदि पर्व में श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने
इस कथा का वर्णन किया है। कथा के अनुसार-
द्रौपदी पूर्व जन्म में महात्मा ऋषि की कन्या थी। सर्वगुण संपन्न होने पर भी पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप किसी ने उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं किया। इससे दु:खी होकर उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की। भगवान शंकर उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए तथा वरदान मांगने को कहा। ऋषि पुत्री ने पांच बार कहा- मैं सर्वगुण युक्त पति चाहती हूं। ऐसा उसने पांच बार कहा।
शंकर भागवान ने कहा- तुझे पांच भरतवंशी पति प्राप्त होंगे। ऋषि कन्या बोली- मैंने तो एक ही पति का कामना की थी। भगवान शंकर ने कहा- तूने पति प्राप्त करने के लिए मुझसे पांच बार प्रार्थना की, इसीलिए अगले जन्म में तुझे पांच ही पति प्राप्त होंगे। भगवान शंकर के इसी वरदान के रूप में द्रौपदी पांडवों की पत्नी बनी।
द्रौपदी पूर्व जन्म में महात्मा ऋषि की कन्या थी। सर्वगुण संपन्न होने पर भी पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप किसी ने उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं किया। इससे दु:खी होकर उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की। भगवान शंकर उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए तथा वरदान मांगने को कहा। ऋषि पुत्री ने पांच बार कहा- मैं सर्वगुण युक्त पति चाहती हूं। ऐसा उसने पांच बार कहा।
शंकर भागवान ने कहा- तुझे पांच भरतवंशी पति प्राप्त होंगे। ऋषि कन्या बोली- मैंने तो एक ही पति का कामना की थी। भगवान शंकर ने कहा- तूने पति प्राप्त करने के लिए मुझसे पांच बार प्रार्थना की, इसीलिए अगले जन्म में तुझे पांच ही पति प्राप्त होंगे। भगवान शंकर के इसी वरदान के रूप में द्रौपदी पांडवों की पत्नी बनी।
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