Monday, July 31, 2017

हर देवी-देवता की आरती में बोला जाता है ये एक मंत्र, जानिए क्या है इसका मतलब

किसी भी मंदिर में या हमारे घर में जब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्य रूप से किया जाता है। सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

ये है इस मंत्र का अर्थ
इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-

कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।

संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि

- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।
मंत्र का पूरा अर्थ- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

Saturday, July 29, 2017

खाने से पहले जरूर करना चाहिए ये 1 काम, इससे जल्दी पचता है खाना

कहते हैं स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य दिमाग निवास करता है और जिसका शरीर स्वस्थ्य रहता है वह जीवन का हर दिन पूरी ऊर्जा व खुशी के साथ जीता है और उसे अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। हमारे यहां दैनिक जीवन से जुड़ी कई परंपराएं हैं। उन्ही में से कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो हमारे स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने में मदद करती है।
ऐसी ही एक परंपरा है भोजन के समय आचमन की। भोजन से पहले आचमन किया जाता है। आचमन करते समय हाथ में जल लेकर पहले तीन बार उसे खाने की प्लेट की चारों तरफ घुमाते हैं। उसके बाद मन ही मन ईश्वर का स्मरण किया जाता है और ईश्वर को नैवेद्य ग्रहण करने की प्रार्थना की जाती है। साथ ही उन्हें भोजन प्रदान करने के लिए धन्यवाद दिया जाता है। उसके बाद तीन बार आचमन यानी सीधे हाथ में पानी लेकर उसे ग्रहण किया जाता है।
माना जाता है कि ऐसा करने से ईश्वर का आर्शीवाद तो मिलता ही है। साथ ही, भोजन भी बहुत जल्दी व अच्छे से पच जाता है और भोजन से पूरी तरह से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है वाे ये कि भोजन से पहले थोड़ा पानी पी लेने से आहार नलिका जो थोड़ी सिकुड़ी हुई होती है खुल जाती है। इससे भूख तो बढ़ती ही है साथ ही डायजेशन से जुड़ी कोई समस्या भी नहीं होती है।
https://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-remedy-to-treat-digestive-problems-5656209-PHO.html?seq=1

Friday, July 28, 2017

पूजा में पंचामृत चढ़ाने के पीछे ये हैं वैज्ञानिक कारण, इससे होने वाले फायदे

हिंदू धर्म में पूजा के समय पंचामृत चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है। जैसे चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत । उसी तरह पंचामृत का अर्थ होता है पांच अमृत यानि पांच पवित्र वस्तुओं से बना। दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है। पंचामृत : का अर्थ है पांच अमृत। दूध, दही, घी, शहद, चीनी को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। पांचों प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभदायक और मन को शांति प्रदान करने वाला होता है।
इसका एक आध्यात्मिक पहलू भी है। वह यह कि पंचामृत आत्मोन्नति के 5 प्रतीक हैं।

दूध-दूध पंचामृत का पहला भाग है। यह शुभता का प्रतीक है यानी हमारा जीवन दूध की तरह साफ और सुंदर होना चाहिए।

दही- दही का गुण है कि यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं और दूसरों को भी अपने जैसा बनाएं।

घी-घी प्रेम का प्रतीक है। सभी से हमारे प्रेमयुक्त संबंध हो, यही भावना है।

शहद-शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिशाली भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है।

चीनी-चीनी का गुण है मिठास, चीनी चढ़ाने का अर्थ है जीवन में मिठास घोलें। मीठा बोलना सभी को अच्छा लगता है और इससे मधुर व्यवहार बनता है। गुणों से हमारे जीवन में सफलता हमारे कदम चूमती है।
लाभ -1.पंचामृत का सेवन करने से शरीर ताकतवर और बीमारियों से मुक्त रहता है।

2. 
पंचामृत से जिस तरह हम भगवान को स्नान कराते हैं ऐसा ही खुद स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है। पंचामृत उसी मात्रा में सेवन करना चाहिए जिस मात्रा में किया जाता है। उससे ज्यादा नहीं।

3. 
इसमें तुलसी का एक पत्ता डालकर इसका नियमित सेवन करते रहने से आजीवन किसी भी तरह का बड़ा रोग और शोक नहीं होता।


4. 
इसके सेवन से कैंसर, हार्ट अटैक, कब्ज और ब्लड प्रेशर जैसी रोगों से बचा जा सकता है। पंचामृत के और भी कई लाभ होते हैं।

Thursday, July 27, 2017

नागपंचमी पूजा इस विधि से करें

धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर प्रमुख नाग मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजा करते हैं। सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नागदेवता की पूजा करने का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व 28 जुलाई, शुक्रवार को है। इस दिन नागदेवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि इस प्रकार है-
पूजन विधि
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

इसके बाद पूजा व उपवास का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, फूल, धूप, दीप से पूजा करें व सफेद मिठाई का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करें-

सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।

प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।

इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें-
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।

नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बांट दें। इस प्रकार पूजा करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।

ये है नागपंचमी की कथा
किसी नगर में एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था। एक दिन वह किसान अपने खेत में हल चलाने गया। हल जोतते समय नागिन के बच्चे हल से कुचल कर मर गए। नागिन बच्चों को मरा देखकर दु:खी हुई। उसने क्रोध में आकर किसान, उसकी पत्नी और लड़कों को डस लिया। जब वह किसान की कन्या को डसने गई। तब उसने देखा किसान की कन्या दूध का कटोरा रखकर नागपंचमी का व्रत कर रही है। यह देख नागिन प्रसन्न हो गई। उसने कन्या से वर मांगने को कहा। किसान कन्या ने अपने माता-पिता और भाइयों को जीवित करने का वर मांगा। नागिन ने प्रसन्न होकर किसान परिवार को जीवित कर दिया। तभी से ऐसी मान्यता है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को नागदेवता की पूजा करने से नागों द्वारा किसी प्रकार का कष्ट और भय नहीं रहता।

ये है नागपंचमी से जुड़ा लाइफ मैनेजमेंट
हिंदू धर्म के अंतर्गत प्रकृति में शामिल प्रत्येक प्राणी, वनस्पति आदि को भगवान के रूप में देखा जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने उनमें धर्म भाव पैदा करने के लिए धर्म से जोड़कर किसी विशेष तिथि, दिवस या अवसर का निर्धारण किया है। इसी क्रम में नाग को देव प्राणी माना गया है इसलिए श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है।
नागपंचमी का यह पर्व यह संदेश देता है कि स्वाभाविक रूप से नाग जाति की उत्पत्ति मानव को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई है। जबकि वह पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है एवं नाग खेती को नुकसान करने वाले चूहे एवं अन्य कीट आदि का भक्षण कर फसल की रक्षा ही करते हैं। इस प्रकार यह हम पर नाग-जाति का उपकार होता है। अत: नाग को मारना या उनके प्रति हिंसा नहीं करना चाहिए ।
मूलत: नागपंचमी नाग जाति के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का पर्व है । यह पर्व नाग के साथ प्राणी जगत की सुरक्षा, प्रेम, अहिंसा, करुणा, सहनशीलता के भाव जगाता है। साथ ही प्राणियों के प्रति संवेदना का संदेश देता है।

Wednesday, July 26, 2017

कर्नाटक के एक शहर सिरसी में शलमाला नाम की नदी बहती है। यह नदी अपने आप में खास है क्योंकि इस नदी में एक साथ हजारों शिवलिंग बने हुए हैं। ये सभी शिवलिंग नदी की चट्टानों पर बने हुए हैं। यहां की चट्टानों में शिवलिंगो के साथ-साथ नंदी, सांप आदी भगवान शिव के प्रियजनों की भी आकृतियां भी बनी हुई हैं। हजारों शिवलिंग एक साथ होने की वजह से इस स्थान का नाम सहस्त्रलिंग पड़ा।
राजा सदाशिवाराय ने करवाया था इनका निर्माण
मान्यताओं के अनुसार, 16वीं सदी में सदाशिवाराय नाम के एक राजा थे। वे भगवान शिव के बड़े भक्त थे। शिव भक्ति में डूबे रहने की वजह से वे भगवान शिव की अद्भुत रचना का निर्माण करवाना चाहते थे। इसलिए राजा सदाशिवाराय ने शलमाला नदी के बीच में भगवान शिव और उनके प्रियजनों की हजारों आकृतियां बनवा दीं। नदी के बीच में स्थित होने की वजह से सभी शिवलिंगों का अभिषेक और कोई नहीं बल्कि खुद शलमाला नदी के द्वारा किया जाता है।
शिवरात्रि व श्रावण के सोमवार को उमड़ता है भक्तों का सेलाब
वैसे तो इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए यहां पर रोज ही अनेक भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शिवरात्रि व श्रावण के सोमवार पर यहां भक्त विशेष रूप आते हैं। यहां पर आकर भक्त एक साथ हजारों शिवलिंगों के दर्शन और अभिषेक का लाभ उठाते हैं।

Tuesday, July 25, 2017

ठाकुर जी की पूजा के समय ध्यान रखें ये नियम, नहीं होगी घर में कभी कोई कमी

भगवान विष्णु ने वैसे तो कई अवतार लिए हैं, लेकिन इनमें से सबसे अधिक लोकप्रिय अवतार है श्री कृष्ण। माना जाता है कि ठाकुरजी की सेवा यदि मन लगाकर की जाए तो घर में कभी धन-धान्य व सुख समृद्धि की कमी नहीं होती आइए जानते हैं ठाकुरजी की पूजा के लिए कौन सी चीजें जरूरी मानी गई हैं। काैन से हैं वो खास नियम जिन्हें उनकी पूजा के दौरान कभी नहीं भूलना चाहिए।

आचमन
आचमन, यानि पूजा से पूर्व हाथों को जल धोने की क्रिया, में उपयोग किए जाने वाले जल को आचमनीय कहा जाता है। यह शुद्ध जल और सुगंधित फूलों का मिश्रण होता है।

आसन
कृष्ण पूजा में सबसे जरूरी होता है आसन, जिस पर भगवान कृष्ण की स्थापना की जाती है। इसका रंग तेज और चमकीला, जैसे लाल, पीला, नारंगी, हो तो बेहतर रहेगा।

पाघ
जिस बर्तन में भगवान कृष्ण के पांव धोए जाते हैं उसे पाघ कहा जाता है। पूजा करने से पहले पाघ में स्वच्छ जल और फूलों की पंखुड़ियां डालें और उससे भगवान कृष्ण के चरणों को धोएं।
पंचामृत
दूध, दही, घी, शहद और चीनी के मिश्रण से पंचामृत बनाकर उसे किसी शुद्ध बर्तन में भरें और फिर उस पंचामृत से भगवान कृष्ण को भोग लगाएं। याद रहे कृष्ण बिना तुलसी के भोग ग्रहण नहीं करते हैं।

पंचोपचार
पूजा में उपयोग होने वाली दूर्वा घास, कुमकुम, चावल, अबीर, सुगंधित फूल और शुद्ध जल को पंचोपचार या अनुलेपन नाम दिया गया है। श्रीकृष्ण पूजन में इन सभी का होना आवश्यक होता है।

भोग
अगर घर में श्रीकृष्ण की पूजा रखवाई गई है तो पूजा के दौरान श्रीकृष्ण को जो भोग लगाया जाता है उसमें ताजे फल, मिठाइयां, लड्डू, मिश्री, खीर, तुलसी के पत्ते और फल शामिल होते हैं।

सुगंधित धूप व दीप
सुगंधित धूप भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय होती है, उनकी पूजा में धूप अवश्य जलाएं।चांदी, तांबे, मिट्टी या फिर अन्य किसी धातु से बने दीए में गाय का शुद्ध देसी घी डालकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने प्रज्वलित करना चाहिए।