सनातन धर्म
में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले यज्ञ करवाया जाता है। मत्स्य पुराण में यज्ञ के
संबंध में कहा गया है कि जिस काम में देवता, हवनीय
द्रव्य, वेदमंत्र, ऋत्विक और दक्षिणा इन पांचों का
संयोग हो, उसे यज्ञ कहा जाता है। यज्ञ के
जरिए शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शांति, आत्मा शुद्धि, आत्मबल वृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और स्वास्थ्य
की रक्षा होती है।
हवन के दौरान जब आहुति दी जाती
है तो एक शब्द का बार-बार उच्चारण किया जाता है वो है स्वाहा, लेकिन क्या आपने सोचा है इस
शब्द का अर्थ क्या होता है और इसे क्यो बोला जाता है। दरअसल स्वाहा का अर्थ होता
है सही तरीके से पहुंचाना। हवन के दौरान स्वाहा बोलने से देवताओं को अग्नि के जरिए
भोग लगाया जाता है। कोई भी यज्ञ तक तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि भोग का
ग्रहण देवता न कर लें, पर
देवता ऐसा भोग को तभी स्वीकार करते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से
अपर्ण किया जाए।
दरअसल, कहानियों के अनुसार स्वाहा
अग्निदेव की पत्नी हैं। ऐसे में स्वाहा का उच्चारण कर निर्धारित हवन सामग्री का
भोग अग्नि के माध्यम से देवताओं को पहुंचाते हैं। आहुति देते समय अपने सीधे हाथ के
मध्यमा और अनामिक उंगलियों पर सामग्री लेना चाहिए और अंगूठे का सहारा लेकर मृगी
मुद्रा से उसे अग्नि में ही छोड़ा जाना चाहिए। आहुति हमेशा झुक कर डालाना चाहिए।
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