सनातन धर्म में ऐसे कई राक्षसों और असुरों का वर्णन मिलता है, जिन्होंने मनुष्यों, ऋषि-मुनियों यहां तक की देवताओं
के लिए भी कई बार परेशानियों का कारण बने। ऐसे में देवी-देवताओं ने उन असुरों का
वध करके सुख-शांति और धर्म की स्थापना की।
देवी-देवताओं के मंदिर तो पूरी दुनिया में पाए जाते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते
होंगे की भारत में कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां
देवताओं के नहीं बल्कि असुरों के मंदिर बने हुए हैं और उनकी पूजा-अर्चना की जाती
है। आज हम आपके ऐसे ही कुछ मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं-
1. दुर्योधन
मंदिर (नेटवार, उत्तराखंड)
उत्तराखंड की नेटवार नामक जगह से लगभग 12 किमी की दूरी पर महाभारत के
दुर्योधन का एक मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में दुर्योधन को देवता की तरह पूजा
जाता है और यहां दुर्योधन की पूजा करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर
से कुछ दूरी पर एक और मंदिर बना हुआ है। वह मंदिर दुर्योधन के प्रिय मित्र कर्ण का
है।
2. पुतना
का मंदिर (गोकुल, उत्तरप्रदेश)
उत्तरप्रदेश के प्रसिद्ध नगर गोकुल में भगवान कृष्ण को दूध
पिलाने के बहाने मारने का प्रयास करने वाली पूतना का भी मंदिर है। यहां पूतना की
लेटी हुई मूर्ति है और उसकी छाती पर चढ़कर उसका दूध पीते भगवान कृष्ण भी हैं। यहां
मान्यता है कि पूतना ने श्रीकृष्ण को मारने के उद्देश्य से ही सही लेकिन एक मां का
रूप धारण करके श्रीकृष्ण को अपना दूध पिलाया था, इसलिए
यहां पूतना को एक मां के रूप में पूजा जाता है।
3. अहिरावण
मंदिर (झांसी, उत्तरप्रदेश)
झांसी के पचकुइंया में भगवान हनुमान का एक मंदिर हैं, जहां हनुमान जी के साथ अहिरावण
की भी पूजा की जाती है। अहिरावण रावण के भाई था और रामायम के युद्ध के दौरान उसने
भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया था। लगभग 300 साल
पुराने इस मंदिर में हनुमान जी की विशाल मूर्ति के साथ साथ अहिरावण और उसके भाई
महिरावण की भी प्रतिमा की पूजा की जाती है।
4. दशानन
मंदिर (कानपुर, उत्तरप्रदेश)
उत्तरप्रदेश के कानपुर शहर के शिवाला इलाके में दशानन मंदिर
है, जहां रावण की पूजा होती है।
यहां रावण को शक्ति का प्रतीक और महान पंडित मानने वाले श्रध्दालु उसकी पूजा करते
हैं और मन्नतें मांगते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1890 में हुआ था।
ये मंदिर साल में केवल एक बार दशहरे के दिन खुलता है। दशहरे पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और दशानन की मूर्ति को नहला धुला कर उसका श्रृंगार किया जाता है। दोपहर को दशानन की आरती और पूजा अर्चना की जाती है और शाम को मंदिर के कपाट सालभर के लिए फिर से बंद कर दिए जाते हैं।
ये मंदिर साल में केवल एक बार दशहरे के दिन खुलता है। दशहरे पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और दशानन की मूर्ति को नहला धुला कर उसका श्रृंगार किया जाता है। दोपहर को दशानन की आरती और पूजा अर्चना की जाती है और शाम को मंदिर के कपाट सालभर के लिए फिर से बंद कर दिए जाते हैं।
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