Friday, June 23, 2017

कैसे उतारें आरती

आरती किसी भी देवी-देवता या कहें अपने आराध्य की पूजा पद्धति का एक अभिन्न हिस्सा है। बिना आरती के पूजा को संपन्न नहीं माना जाता। मंदिरों में सुबह द्वार खुलने के साथ ही लोग आरती में शामिल होने के लिए पंहुचते हैं। रात के समय भी आरती के बाद ही मंदिरों के पट बंद भी होते हैं। आरती सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि पवित्र नदियों और सरोवर पर भी की जाती है।

जो लोग अज्ञानतावश पूजा की विधियों से अंजान होते हैं वो भी अपने आराध्य की आरती तो उतार ही लेते हैं, लेकिन आरती उतारने की भी अपनी एक खास विधि होती है जिसका अपना महत्व है तो आइए आपको बताते हैं आरती के महत्व के बारे में और जानते हैं कैसे करनी चाहिए आरती। क्या है आरती उतारने की सही विधि....
कैसे उतारें आरती

आरती पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग होती है इस शास्त्रानुसार आरक्तिका, आर्रतिका या नीराजन भी कहा जाता है। किसी भी तरह की पूजा हो या फिर कोई यज्ञ-हवन अथवा पंचोपचार-षोडशोपचार पूजा सबमें पूजा के अंत में आरती की जाती है। आमतौर पर आरती पांच बातियों से की जाती है जिस कारण इसे पंचप्रदीप भी कहा जाता है। हालांकि यह जरुरी नहीं है एक, सात या उससे अधिक बत्तियों से भी आरती उतारी जा सकती है।

आरती के लिए जरूरी सामान
आरती करने के लिए चांदी, पीतल या फिर तांबे की थाली का इस्तेमाल किया जाता है। इस थाली में धातु या आटे से बना दीपक रखा जाता है। उसमें घी या तेल डालकर रूई की बत्तियों को बनाकर रखा जाता है। यदि रूई की बत्ती उपलब्ध न हो तो कर्पूर से भी काम चलाया जा सकता है। थाली में थोड़े फूल, अक्षत और मिठाईयां भी रखनी चाहिए। हालांकि बहुत सारे मंदिरों में पुजारी केवल घी का दीपक जलाकर ही आरती करते हैं। आरती सुबह और शाम दोनों समय करनी चाहिए।

आरती का महत्व
आरती में जो पांच बत्तियां जलाई जाती हैं उसके पीछे मान्यता है कि ये पांच बत्तियां ब्रह्मांड में मौजूद पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनसे मिलकर हमारे शरीर की रचना भी होती है। ये पांच तत्त्व हैं आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि। यह भी मान्यता है आरती करते समय दिए की लौ आरती करने वाले के चारों और प्रकाश का एक सुरक्षाकवच बनाती है। जो जितनी श्रद्धा के साथ लीन होकर आरती करता है उसका कवच उतना ही मजबूत होता है। आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है।
आरती ईश्वर के दक्षिणावर्त तरीके से वामावर्त की ओर की जाती है, इसे पहले 3 से 5 बार दक्षिणावर्त की दिखा में घुमय जाता है फिर 1 बार वामावर्त की दिशा में घुमाया जाता है। यह दर्शाता है कि भगवान हमारी सारी गतिविधियों का केंद्र है। यह हमे यह याद दिलाता है कि ईश्वर पहले है और सब बाद में। आरती सिर्फ पूजा का अंग नहीं है बल्कि, यह हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने को भी दिखता है जैसे आरती करने के बाद यह आरती, पूजा में शामिल और लोगों को भी दी जाती है। यह दिखा ता है कि ईश्वर हम सब के अंदर है, और हम सब इनके सामने नतमस्तक रहें।

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