Saturday, June 24, 2017

बड़ों का करते हैं सम्मान, उन्हें मिलता है जीवन का हर सुख

महाभारत में ऐसी कई बातें बताई गई हैं, जिनका पालन करके जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में पांच ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान करने से मनुष्य को जीवन का हर सुख मिलता है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस बात को महाभारत में दिए गए श्लोक से अच्छी तरह समझा जा सकता है-

शुश्रूषते यः पितरं न चासूयेत् कदाचन,
मातरं भ्रातरं वापि गुरुमाचार्यमेव च।
तस्य राजन् फलं विद्धि स्वर्लोके स्थानमर्चितम्,
न च पश्येत नरकं गुरुशुश्रूषयात्मवान्।।

1. माता और पिता
जो मनुष्य हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है वह जीवन में निश्चित ही हर सफलता पाता है, जैसे भगवान राम। भगवान राम अपने पिता के वचन की रक्षा करने के लिए 14 साल के लिए वनवास चले गए। उसी तरह मनुष्य को अपने माता-पिता की हर इच्छा का सम्मान करना चाहिए। इससे निश्चित ही उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

2. बड़ा भाई
बड़ा भाई भी पिता जैसा ही माना जाता है। जिस प्रकार पांडवों ने अपने बड़े भाई युधिष्ठिर की हर आज्ञा का पालन किया। कभी उनकी इच्छा के विरुद्ध नहीं गए। उसी तरह मनुष्य को भी अपने बड़े भाई को पिता के समान ही मान कर उसका सम्मान करना चाहिए।

3. गुरु
जिस व्यक्ति से मनुष्य जीवन में कभी भी कोई ज्ञान की बात या कला सीखने को मिल जाए, वह उस मनुष्य के लिए गुरु कहलाता है। एकलव्य ने द्रोणाचार्य को दूर से देखकर ही उनसे धनुष विद्या सीख ली और द्रोणाचार्य को गुरु की तरह सम्मान दिया। द्रोणाचार्य के गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांगने पर भी उनमें दोष नहीं देखा और द्रोणाचार्य की मांगी हुई दक्षिणा उन्हें दे दी। उसी प्रकार हमें भी जिससे कुछ भी सीखने को मिल जाए, उसे गुरु की तरह ही सम्मान करना चाहिए।

4. आचार्य
जो मनुष्य को विद्या देता है, वह आचार्य कहलाता है। जो मनुष्य हमेशा अपने आचार्य की आज्ञा का पालन करता है। कभी उसकी दी हुई विद्या पर शंका नहीं करता, वह मनुष्य जीवन में आने वाली हर कठिनाई को आसानी से पार कर जाता है। आचार्य का सम्मान करने वाले को धरती पर ही स्वर्ग के समान सुख मिलता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा अपने आचार्य का सम्मान करना ही चाहिए।

Friday, June 23, 2017

कैसे उतारें आरती

आरती किसी भी देवी-देवता या कहें अपने आराध्य की पूजा पद्धति का एक अभिन्न हिस्सा है। बिना आरती के पूजा को संपन्न नहीं माना जाता। मंदिरों में सुबह द्वार खुलने के साथ ही लोग आरती में शामिल होने के लिए पंहुचते हैं। रात के समय भी आरती के बाद ही मंदिरों के पट बंद भी होते हैं। आरती सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि पवित्र नदियों और सरोवर पर भी की जाती है।

जो लोग अज्ञानतावश पूजा की विधियों से अंजान होते हैं वो भी अपने आराध्य की आरती तो उतार ही लेते हैं, लेकिन आरती उतारने की भी अपनी एक खास विधि होती है जिसका अपना महत्व है तो आइए आपको बताते हैं आरती के महत्व के बारे में और जानते हैं कैसे करनी चाहिए आरती। क्या है आरती उतारने की सही विधि....
कैसे उतारें आरती

आरती पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग होती है इस शास्त्रानुसार आरक्तिका, आर्रतिका या नीराजन भी कहा जाता है। किसी भी तरह की पूजा हो या फिर कोई यज्ञ-हवन अथवा पंचोपचार-षोडशोपचार पूजा सबमें पूजा के अंत में आरती की जाती है। आमतौर पर आरती पांच बातियों से की जाती है जिस कारण इसे पंचप्रदीप भी कहा जाता है। हालांकि यह जरुरी नहीं है एक, सात या उससे अधिक बत्तियों से भी आरती उतारी जा सकती है।

आरती के लिए जरूरी सामान
आरती करने के लिए चांदी, पीतल या फिर तांबे की थाली का इस्तेमाल किया जाता है। इस थाली में धातु या आटे से बना दीपक रखा जाता है। उसमें घी या तेल डालकर रूई की बत्तियों को बनाकर रखा जाता है। यदि रूई की बत्ती उपलब्ध न हो तो कर्पूर से भी काम चलाया जा सकता है। थाली में थोड़े फूल, अक्षत और मिठाईयां भी रखनी चाहिए। हालांकि बहुत सारे मंदिरों में पुजारी केवल घी का दीपक जलाकर ही आरती करते हैं। आरती सुबह और शाम दोनों समय करनी चाहिए।

आरती का महत्व
आरती में जो पांच बत्तियां जलाई जाती हैं उसके पीछे मान्यता है कि ये पांच बत्तियां ब्रह्मांड में मौजूद पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनसे मिलकर हमारे शरीर की रचना भी होती है। ये पांच तत्त्व हैं आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि। यह भी मान्यता है आरती करते समय दिए की लौ आरती करने वाले के चारों और प्रकाश का एक सुरक्षाकवच बनाती है। जो जितनी श्रद्धा के साथ लीन होकर आरती करता है उसका कवच उतना ही मजबूत होता है। आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है।
आरती ईश्वर के दक्षिणावर्त तरीके से वामावर्त की ओर की जाती है, इसे पहले 3 से 5 बार दक्षिणावर्त की दिखा में घुमय जाता है फिर 1 बार वामावर्त की दिशा में घुमाया जाता है। यह दर्शाता है कि भगवान हमारी सारी गतिविधियों का केंद्र है। यह हमे यह याद दिलाता है कि ईश्वर पहले है और सब बाद में। आरती सिर्फ पूजा का अंग नहीं है बल्कि, यह हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने को भी दिखता है जैसे आरती करने के बाद यह आरती, पूजा में शामिल और लोगों को भी दी जाती है। यह दिखा ता है कि ईश्वर हम सब के अंदर है, और हम सब इनके सामने नतमस्तक रहें।

Thursday, June 22, 2017

महर्षि मार्कण्डेय के बताएं हैं 3 काम, जरूर करें

महर्षि मार्कण्डेय प्राचीन भारत के महान ऋषियों में से एक थे। इनका जन्म महर्षि भृगु के वंश में हुआ था। महर्षि मार्कण्डेय भगवान विष्णु और भगवान शिव के परम भक्त थे। इनका वर्णन कई पुराणों और ग्रंथों में मिलता है।
इन्होंने जीवन को सही ढंग से चलाने और पुण्य पाने के लिए कई नीतियां बताई हैं, जिनका पालन करके जीवन में कई लाभ पाए जा सकते हैं। महर्षि मार्कण्डेय ने 3 ऐसे काम बताए हैं, जिन्हें करना सबसे अच्छा माना गया है। इन कामों को करने से मनुष्य किसी भी मुसीबत का सामना बड़ी ही आसानी से कर लेता है और उसे शुभ फल की प्राप्ति होती है।

महर्षि मार्कण्डेय द्वार कहा गया श्लोक-
पुण्यतीर्थाभिषेकं च पवित्राणां च कीर्तनम्।
सद्धिः सम्भाषणं चैव प्रशस्तं कीत्यते बुधैः।।
1. तीर्थों में स्नान
तीर्थ स्थानों पर स्वयं देवताओं का निवास माना जाता है। तीर्थ स्थानों पर जाना, वहां पूजा करना और वहां के कुंड या नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। कई तीर्थों पर स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष भी मिलता है। तीर्थों पर स्नान सभी कामों में से सबसे अच्छा बताया गया है।

2. पवित्र वस्तुओं का नाम लेना
गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध ( गाय का दूध), गोशाला हवन, पूजन, तुलसी, मंदिर, अग्नि, पुराण, ग्रंथ ऐसी कई वस्तुओं को पवित्र माना जाता है। इनमें में खाने योग्य चीजों का सेवन व ग्रंथों को पढ़ना महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति ऐसा न कर सके तो केवल उनका नाम लेने से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। हर मनुष्य को हिंदू धर्म में पवित्र मानी गई इन चीजों का नाम पवित्र भाव से लेते रहना चाहिए। इससे निश्चित ही शुभ फल मिलता है।

3. सत्पुरुषों के साथ बातें करना
सत्पुरुष यानी विद्वान, ज्ञानी, चरित्रवान और सत्यवादी इंसान। हर मनुष्य को अपने जीवन में सफलता पाने के लिए सही राह की जरुरत होती है। मनुष्य को सही राह विद्वान या ज्ञानी पुरुषों के द्वारा दिखाई जा सकती है। जिस व्यक्ति को सही-गलत, अच्छे-बुरे, धर्म-अधर्म का ज्ञान होता है, हमें उसका आदर करना चाहिए। ऐसे लोगों से बातें करके हम अपने हित की बात जान सकते हैं। मनुष्य को हमेशा ही विद्वान और ज्ञानी लोगों का सम्मान करना चाहिए और उनकी बताई हुई राह पर चलना चाहिए।

Wednesday, June 21, 2017

परेशानियां दूर कर हर इच्छा पूरी करते हैंं, हनुमानजी से जुड़े ये उपाय

हनुमानजी को कलियुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाला देवता माना गया है। हनुमान चालीसा की कुछ चौपाईयां ऐसी हैं जिनका जप यदि नियमिल रूप से 108 बार किया जाए तो जीवन से हर तरह की परेशानियां दूर हो सकती हैं साथ ही मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। आइए जानते हैं 5 ऐसी ही चौपाईयों को
विद्यावान गुनी अति चातुर। रामकाज करिबे को आतुर।।
यदि किसी व्यक्ति को विद्या और धन चाहिए तो इन पंक्तियों के जप से हनुमान जी का आशीर्वाद मिल जाता है। रोजाना 108 बार जप करने से व्यक्ति का पैसों से जुड़ा दुख दूर हो जाता है।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्रजी के काज संवारे।।
जीवन में ऐसा कई बार होता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद कामों में रुकावट आती हैं। यदि आपके साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है तो यहां बताई चौपाई का108 बार जप करें, लाभ होगा।
भूत-पिशाच निकट नहीं आवे। महावीर जब नाम सुनावे।।
इस चौपाई का निरंतर जप उस व्यक्ति को करना चाहिए जिसे किसी का डर सताता हो। इस चौपाइ को रोजाना 108 बार बोलने से हर तरह के डर से मुक्ति मिलती है।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
यदि कोई व्यक्ति बीमारियों से घिरा रहता है, अनेक इलाज कराने के बाद भी वह ठीक नही हो पा रहा, तो उसे इस चौपाई का जप करना चाहिए। इस चौपाइ का जप निरंतर सुबह-शाम 108 बार करना चाहिए।
अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
यह चौपाइ व्यक्ति को समस्याओं से लड़ने की शक्ति देती है। यदि किसी को भी जीवन में शक्तियों को पाना हो तो रोज, ब्रह्म मुहूर्त में आधा घंटा इन पंक्तियों का जप करे, लाभ मिलेगा।

Tuesday, June 20, 2017

बालि ने मरते समय अंगद को बताई थीं ये बातें

रामायण में जब श्रीराम ने बालि को बाण मारा तो वह घायल होकर गिर पड़ा था। इस हालत में जब उसका पुत्र अंगद उसके पास आया तब बालि ने उसे ज्ञान की कुछ बातें बताई थीं। ये बातें आज भी हमें कई परेशानियों से बचा सकती हैं। यहां जानिए ये बातें कौन सी हैं...
मरते समय बालि ने अंगद से कहा-

देशकालौ भजस्वाद्य क्षममाण: प्रियाप्रिये।
सुखदु:खसह: काले सुग्रीववशगो भव।।

इस श्लोक में बालि ने अगंद को ज्ञान की तीन बातें बताई हैं...
1. देश काल और परिस्थितियों को समझो। इसके बाद ही आगे बढ़ना चाहिए।
2. किसके साथ कब, कहां और कैसा व्यवहार करें, इसका सही निर्णय लेना चाहिए।
3. पसंद-नापसंद, सुख-दुख को सहन करना चाहिए और क्षमाभाव के साथ जीना चाहिए।
बालि ने अंगद से कहा ये बातें ध्यान रखते हुए अब से सुग्रीव के साथ रहो।
ये है बालि वध का प्रसंग...

जब बालि श्रीराम के बाण से घायल होकर गिर पड़ा, तब बालि ने श्रीराम से कहा- आप धर्म की रक्षा करते हैं तो मुझे इस प्रकार बाण क्यों मारा?’
इस प्रश्न के जवाब में श्रीराम ने कहा- छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र की पत्नी और पुत्री, ये सब समान होती हैं और जो व्यक्ति इन्हें बुरी नजर से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता है। बालि, तूने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी पर बुरी नजर रखी और सुग्रीव को मारना चाहा। इस पाप के कारण तुझे बाण मारा है।
इस जवाब से बालि संतुष्ट हो गया और श्रीराम से अपने किए पापों की क्षमा याचना की। इसके बाद बालि ने अगंद को श्रीराम की सेवा में सौंप दिया।
इसके बाद बालि ने प्राण त्याग दिए। बाली की पत्नी तारा रोने लगी। तब श्रीराम ने तारा को ज्ञान दिया कि यह शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से मिलकर बना है। बालि का शरीर तुम्हारे सामने सोया है, लेकिन उसकी आत्मा अमर है तो रोना नहीं चाहिए। इस प्रकार समझाने के बाद तारा शांत हुई। श्रीराम में सुग्रीव को राज्य सौंप दिया।

Monday, June 19, 2017

किसी को खाना खिलाते समय ध्यान रखें 4 बातें, मिलेगा पुण्य, होंगे लाभ

धर्म ग्रंथों में मेहमान के महत्व के बारे में कई बातें बताई गई हैं। घर आए मेहमान को भगवान के समान माना जाता है। हिंदू धर्म में भगवान के हवन या कई त्यौहारों पर घर आए अतिथियों को भोजन करना का महत्व है। अतिथि के सत्कार को लेकर शिवपुराण में 4 ऐसी बातें बताई गई हैं, जिनका पालन किया जाए तो मनुष्य को अतिथि को भोजन करवाने का फल जरूर मिलता है।
घर आए मेहमान को भोजन करवाते समय ध्यान रखें इन 4 बातों का-
1. साफ हो मन
कहा जाता है कि जिस मनुष्य का मन शुद्ध नहीं होता, उसे कभी भी अपने शुभ कर्मों का फल नहीं मिलता है। घर आए अतिथि का सत्कार करते समय या उन्हें भोजन करवाते समय कोई भी गलत भावों को मन में नहीं आने देना चाहिए। अतिथि सत्कार के समय जिस मनुष्य के मन में जलन, क्रोध, हिंसा जैसे बातें चलती रहती है, उसे कभी अपने कर्मों का फल नहीं मिलता है। इसलिए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
2. शुद्ध हो शरीर
मेहमान को भगवान के समान माना जाता है। अपवित्र शरीर से न भगवान की सेवा की जाती है और न ही मेहमान की। किसी को भी भोजन करवाने से पहले मनुष्य को शुद्ध जल से स्नान करके, साफ कपड़े धारण करना चाहिए। अपवित्र या बासी शरीर से की गई सेवा का फल कभी नहीं मिलता है।
3. उपहार जरुर दें...
घर आए मेहमान को भोजन करवाने के बाद कुछ न कुछ उपहार में देने का भी विधान है। अपनी श्रद्धा के अनुसार मेहमान को उपहार के रूप में कुछ जरूर देनी चाहिए। अच्छी भावनाओं से दिया गया उपहार हमेशा ही शुभ फल देने वाला होता है।
4. आपकी वाणी हो मधुर
मनुष्य को कभी भी घर आए अतिथि का अपमान नहीं करना चाहिए। कई बार मनुष्य क्रोध में आकर या किसी भी अन्य कारणों से घर आए मेहमान का अपमान कर देता है। ऐसा करने पर मनुष्य पाप का भागी बन जाता है। हर मनुष्य को अपने घर आए मेहमान का अच्छे भोजन से साथ-साथ पवित्र और मीठी वाणी के साथ स्वागत-सत्कार करना चाहिए।

Saturday, June 17, 2017

नए काम की शुरुआत मुहूर्त देख कर ही करें होगा है लाभ

कहते हैं कोई भी शुभ काम करने के पहले हमें भगवान का आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए और साथ ही काम की शुरुआत शुभ मुहूर्त देख कर ही कि जानी चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथ मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार दिन में अलग-अलग चौघड़िए और नक्षत्र व लग्न हाेते हैं। इनमें शुभ फल देने वाले और अशुभ फल देने वाले दोनों ही शामिल हैं।

जानकारों के अनुसार अशुभ चौघड़िए में शुरू किए गए काम बड़ी समस्याओं के साथ पूरे होते हैं या अधूरे ही रह जाते हैं। जबकि शुभ मुहूर्त (चौघडिय़ा) या नक्षत्र व लग्न में शुरू किए गए काम बिना किसी विघ्न या बाधा के पूरे हो जाते हैं और इसका शुभ फल भी मिलता है। शुभ मुहूर्त में शुरू किए गए काम हमें अच्छे फल प्रदान करते हैं साथ ही इसका हमारे परिवार और सभी संबंधित व्यक्तियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए किसी भी नए काम से पहले पंडित से मुहूर्त जरूर निकलवाना चाहिए।
शुभ समय में ग्रह स्थिति कुछ इस प्रकार रहती है जो कि हमारे मांगलिक काम को पूरा करने में सहयोग प्रदान करती है। इसके अलावा इन मूहूर्त में शुरू किए गए कामों को दैवीय शक्तियों की कृपा भी मिलती है। इसी वजह से शुभ काम को शुभ मुहूर्त में किया जाता है। ताकि हमारा काम बिना किसी बाधा के पूरा हो और जीवनभर इसका शुभ फल हमें मिल सके।