Thursday, December 29, 2016

भारत के 7 मंदिर, जिनके रहस्य आज भी कोई नहीं जान पाया

भारत आस्था और विश्वास का देश है। हिंदू धर्म में मंदिर और पूजन का विशेष महत्व माना गया है। कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जो सिर्फ मनोकामना पूरी करने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी किसी अनोखी या चमत्कारिक विशेषता के कारण भी जाने जाते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के कुछ ऐसे ही प्राचीन मंदिरों के बारे में जिन से जुड़ी चमत्कारिक बातों को कोई माने या न माने, लेकिन इनकी ये खास विशेषताएं किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देती है।

1. मेहंदीपुर बालाजी


राजस्थान में मेंहदीपुर बालाजी का मंदिर श्री हनुमान का बहुत जाग्रत स्थान माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में विराजित श्री बालाजी अपनी दैवीय शक्ति से बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाते हैं। मंदिर में हजारों भूत-पिशाच से त्रस्त लोग रोज दर्शन और प्रार्थना के लिए यहां आते हैं, जिन्हें स्थानीय लोग संकटवाला कहते हैं। भूतबाधा से पीड़ित के लिए यह मंदिर अपने ही घर के समान हो जाता है और श्री बालाजी ही उसकी अंतिम उम्मीद होते हैं।

यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उलटे लटके देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूत-प्रेत से पीड़ित लोगों को जुझते देखा जाता है और आरती के बाद लोग मंदिर के गर्भ गृह में जाते हैं। वहां के पुरोहित कुछ उपाय करते हैं और कहा जाता है इसके बाद पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।

2.काल भैरव मंदिर


मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब 8 कि.मी. दूर कालभैरव मंदिर है। यहां भगवान कालभैरव को प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाई जाती है। शराब से भरे प्याले कालभैरव की मूर्ति के मुंह से लगाने पर वह देखते ही देखते खाली हो जाते हैं। मंदिर के बाहर भगवान कालभैरव को चढ़ाने के लिए देसी शराब की कई दुकानें हैं।

पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव का अपमान कर दिया था, इस बात से भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए और उनके नेत्रों से कालभैरव प्रकट हुए। क्रोधित कालभैरव ने भगवान ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया था, जिसकी वजह से उन्हें ब्रह्म-हत्या का पाप लगा। इस पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है। कालांतर में यहां एक बड़ा मंदिर बन गया। कहा जाता है मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।

3. कामाख्या मंदिर


कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया।
इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघोरी हिस्सा लेते हैं। माना जाता है कि सालभर में एक बार अम्बुबाची मेले के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं और इन तीन दिन में योनि कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है। इसलिए अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।

4. तवानी मंदिर


हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से 25 कि.मी. दूर तवानी मंदिर स्थित है। धर्मशाला को गर्म पानी के झरनों और कुंडों के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के बाहर एक गर्म पानी का कुंड है। इस कुंड में स्नान के बाद ही कोई भी दर्शनार्थी मंदिर में प्रवेश कर सकता है। इस कुंड में पानी गर्म कैसे होता है, ये बात आज तक रहस्य बनी हुई है। माना जाता है कि इस पानी में शरीर के लिए कई लाभदायक तत्व मौजूद हैं।

5.करणी माता मंदिर


करणी माता मंदिर राजस्थान में बीकानेर से कुछ दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर है। यह स्थान मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं। इनके बीच अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही यहां की मान्यता है।
इसे चूहों को काबा भी कहा जाता है। चूहों को भक्त दूध, लड्डू आदि देते हैं। आश्चर्यजनक बात यह भी है कि असंख्य चूहों से पटे मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता। इस मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश नहीं करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था, तब यह मंदिर ही नहीं, बल्कि यह पूरा इलाका इस बीमारी से महफूज था।

6. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर


कई पुराणों में इस तीर्थ स्थल के बारे में बताया गया है। महिसागर संगम तीर्थ की पावन भूमि पर भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय ने एक शिवलिंग की स्थापित की थी, जिसे श्री स्तंभेश्वर महादेव कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से व्यक्ति सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। यह स्तंभेश्वरतीर्थ गुजरात के भरूच जिला के जंबुसर तहसील में कावी-कंबोई समुद्र तट पर है। मंदिर की विशेषता यह है कि समुद्र दिन में दो बार श्री स्तंभेश्वर शिवलिंग का स्वयं अभिषेक करता है। समुद्र का पानी बढ़ने पर मंदिर पानी में डूब जाता है और थोड़ी ही देर में पानी उतर भी जाता है।

7.ज्वाला देवी मंदिर


हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर। शास्त्रों के अनुसार, यहां सती की जिह्वा गिरी थी। मान्यता है कि सभी शक्तिपीठों में देवी हमेशा निवास करती हैं। शक्तिपीठ में माता की आराधना करने से माता जल्दी प्रसन्न होती है। ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल-बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला चांदी के जाला के बीच स्थित है, उसे महाकाली कहते हैं। अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं।
कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी की शक्ति का अनादर किया और मां की प्राकृतिक ज्वाला को बुझाने की बहुत कोशिस की, लेकिन वह अपने प्रयास में असफल रहा। अकबर को जब ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ, तो क्षमा मांगने के लिए उसने ज्वाला देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-TID-7-mysterious-temples-of-india-in-hindi-news-hindi-5491205-PHO.html

Wednesday, December 28, 2016

लड़कों को जनेऊ पहनना चाहिए, इससे होते हैं ये हेल्थ बेनीफिट्स

हिंदू धर्म में 16 संस्कारों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, इन्हीं संस्कारों में से एक है जनेऊ संस्कार। क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा का सिर्फ धार्मिक लिहाज से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक लिहाज से भी बहुत महत्व है। साधारण भाषा में जनेऊ एक ऐसी परंपरा है, जिसके बाद ही कोई भी पुरुष पारंपरिक तौर से पूजा या धार्मिक कामों में भाग ले सकता है। प्राचीन काल में जनेऊ पहनने के बाद ही बालक को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता था।

जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं। वेदों में भी जनेऊ धारण करने की हिदायत दी गई है। इसे उपनयन संस्कार कहते हैं। 'उपनयन' का अर्थ है, पास या निकट ले जाना। यहां पास ले जाने से तात्पर्य ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाने से है।

धार्मिक कारण


जनेऊ क्या है-आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। इसे संस्कृत भाषा में 'यज्ञोपवीत' कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहनता है यानी इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।

तीन सूत्र क्यों- जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन सूत्र होते हैं हर सूत्र में तीन धागे होते हैं। पहला धागा इसमें उपस्थित तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। दूसरा धागा देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण को दर्शाता हैं और तीसरा यह सत्व, रज और तम का रूप है। चौथा यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों को बताता है। पांंचवा यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है। 
नौ तार-यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। ये नौ धागे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो दरवाजे इन सभी को विकार रहित रखने के लिए होते हैं। 

पांच गांठ- यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक हैं। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों काे भी बताती हैं।

जनेऊ की लंबाई-यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विधाओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विधाएं होती हैं।

वैज्ञानिक लाभ


वैज्ञानिक रूप से जनेऊ धारण करने के कई लाभ हैं। धार्मिक रूप से नित्यकर्म से पहले जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना अनिवार्य है। दरअसल, ऐसा करने से कान के पीछे की दो नसें, जिनका संबंध पेट की आंतों से होता है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे कब्ज की समस्या नहीं होती और शरीर स्वस्थ रहता है। कान के पास ही एक नस से मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य निकलता है।जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसिडिटी, पेट से संबंधित रोग, ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज सहित अन्य संक्रमण नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति नियमों में बंधा होता है। वह नित्यकर्म के बाद अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। इसलिए वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट के रोगों सहित जीवाणुओं से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हार्ट पेशेंट्स को होता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-what-are-the-rules-of-wearing-janeu-upnayan-thread-news-hindi-5490345-PHO.html

Tuesday, December 27, 2016

ज्योतिष उपायों में अनेक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। ये चीजें बहुत ही चमत्कारी होती हैं। यदि इनका विधि-विधान से सही प्रयोग किया जाए तो ये हर परेशानी दूर कर देती है तथा हर मनोकामना भी पूरी करती हैं। आज हम आपको ज्योतिष क्रियाओं में उपयोग की जाने वाली कुछ ऐसी ही चीजों तथा उनके कुछ उपायों के बारे में बता रहे हैं-

दक्षिणावर्ती शंख

ज्योतिषीय उपायों में दक्षिणावर्ती शंख का विशेष महत्व है। इस शंख को विधि-विधान पूर्वक घर में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती हैं और धन की भी कमी नहीं होती, लेकिन इसे घर में रखने से पहले इसका शुद्धिकरण अवश्य करना चाहिए।
इस विधि से करें शुद्धिकरण
लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश (एक विशेष प्रकार की घास) के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जाप करें- ऊं श्री लक्ष्मी सहोदराय नम:
इस मंत्र की कम से कम 5 माला जाप करें।

उपाय


1. दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भंडार में रखने से अन्न, धन भंडार में रखने से धन, वस्त्र भंडार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती। बेडरूम में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है।
2. इस शंख में शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
3.
इसे घर में रखने से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा अपने आप ही समाप्त हो जाती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।

मोती शंख

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मोती शंख एक विशेष प्रकार का शंख होता है। ये आम शंख से थोड़ा अलग दिखाई देता है और थोड़ा चमकीला भी होता है। इस शंख को विधि- विधान से पूजन कर यदि तिजोरी में रखा जाए तो घर, ऑफिस व दुकान में पैसा टिकने लगता है। आमदनी बढ़ने लगती है।

उपाय

किसी बुधवार को सुबह स्नान कर साफ कपड़े में अपने सामने मोती शंख को रखें और उस पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बना दें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जाप करें-

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:
मंत्र का जाप स्फटिक माला से ही करें। मंत्रोच्चार के साथ एक-एक चावल इस शंख में डालें। इस बात का ध्यान रखें कि चावल टूटे हुए ना हो। यह प्रयोग लगातार 11 दिनों तक करें।
इस प्रकार रोज एक माला जाप करें। उन चावलों को एक सफेद रंग के कपड़े की थैली में रखें और ग्यारह दिनों के बाद चावल के साथ शंख को भी उस थैली में रखकर तिजोरी में रखें। कुछ ही दिनों में धन वृद्धि के योग बनने लगेंगे।

कमलगट्टा

धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले ज्योतिषिय प्रयोगों में कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, कमल गट्टा भी उन्हीं में से एक है। कमल गट्टा कमल के पौधे में से निकलते हैं व काले रंग के होते हैं। यह बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। मंत्र जप के लिए इसकी माला भी बनती है। ये हैं इसके खास उपाय-

1. यदि रोज 108 कमल के बीजों से आहुति दें और ऐसा 21 दिन तक करें तो आने वाली कई पीढिय़ां सम्पन्न बनी रहती हैं।

2. यदि दुकान में कमल गट्टे की माला बिछाकर उसके ऊपर भगवती लक्ष्मी का चित्र स्थापित किया जाए तो व्यापार में कमी आ ही नहीं सकती। व्यापार निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर होता रहता है।

3. कमल गट्टे की माला भगवती लक्ष्मी के चित्र पर पहना कर किसी नदी या तालाब में विसर्जित करें तो घर में धन की कमी नहीं करती।

4. जो व्यक्ति प्रत्येक बुधवार को 108 कमलगटटे के बीज लेकर घी के साथ एक-एक करके अग्नि में 108 आहुतियां देता है। उसके घर से दरिद्रता हमेशा के लिए चली जाती है।

5. जो व्यक्ति कमल गट्टे की माला अपने गले में धारण करता है। उस पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।

Monday, December 26, 2016

क्या हैं कारण: शुभ काम में देवी-देवताओं के सामने नारियल क्यों तोड़ा जाता है ?

हिंदू धर्म के ज्यादातर धार्मिक संस्कारों में नारियल का विशेष महत्व है। कोई भी व्यक्ति जब कोई नया काम शुरू करता है तो भगवान के सामने नारियल फोड़ता है। चाहे शादी हो, त्योहार हो या फिर कोई महत्वपूर्ण पूजा, पूजा की सामग्री में नारियल आवश्यक रूप से रहता है। नारियल को संस्कृत में श्रीफल के नाम से जाना जाता है। जानकारों के अनुसार यह फल बलि कर्म का प्रतीक है। बलि कर्म का अर्थ होता है उपहार या नैवेद्य की वस्तु। देवताओं को बलि देने का अर्थ है, उनके द्वारा की गई कृपा के प्रति आभार व्यक्त करना या उनकी कृपा का अंश के रूप मे देवता को अर्पित करना।

क्यों बनाई गई नारियल फोड़ने की परंपरा
कहते हैं एक समय हिंदू धर्म में मनुष्य और जानवरों की बलि सामान्य बात थी। तभी आदि शंकराचार्य ने इस अमानवीय परंपरा को तोड़ा और मनुष्य के स्थान पर नारियल चढ़ाने की शुरुआत की। नारियल कई तरह से मनुष्य के मस्तिष्क से मेल खाता है। नारियल की जटा की तुलना मनुष्य के बालों से, कठोर कवच की तुलना मनुष्य की खोपड़ी से और नारियल पानी की तुलना खून से की जा सकती है। साथ ही, नारियल के गूदे की तुलना मनुष्य के दिमाग से की जा सकती है।
नारियल फोड़ने का ये है महत्व
नारियल फोड़ने का मतलब है कि आप अपने अहंकार और स्वयं को भगवान के सामने समर्पित कर रहे हैं। माना जाता है कि ऐसा करने पर अज्ञानता और अहंकार का कठोर कवच टूट जाता है और ये आत्मा की शुद्धता और ज्ञान का द्वार खोलता है, जिससे नारियल के सफेद हिस्से के रूप में देखा जाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-GYVG-ritual-of-coconut-with-breaking-news-hindi-5488948-NOR.html

Friday, December 23, 2016

महाभारत युद्ध में कब, किसने किया छल, किसने तोड़े नियम?

महाभारत के अनुसार, कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों व पांडवों के बीच 18 दिन तक युद्ध हुआ। इस युद्ध में लाखों सैनिक व महारथी मारे गए। युद्ध के शुरू होने से पहले दोनों पक्षों ने कुछ नियम बनाए थे। युद्ध शुरू होने से कुछ दिनों बाद तक तो इन नियमों का पालन किया गया, लेकिन बाद में इन नियमों को कई बार तोड़ा गया और छल का सहारा लेकर योद्धाओं को मारा गया। युद्ध में कब, किसने छल का सहारा लेकर योद्धाओं का वध किया, आज हम आपको यही बता रहे हैं-

शिखंडी को आगे कर किया भीष्म को पराजित

युद्ध शुरू होने पर कौरवों की ओर से भीष्म का सेनापति बनाया गया। भीष्म ने पांडवों की सेना में हाहाकार मचा दिया। तब अर्जुन ने शिखंडी को आगे कर भीष्म से युद्ध किया। भीष्म जानते थे कि शिखंडी का जन्म स्त्री के रूप में हुआ है और पिछले जन्म में भी वह एक स्त्री था। चूंकि भीष्म ने स्त्री पर वार न करने की प्रतिज्ञा की थी। इसलिए वे अर्जुन पर वार नहीं कर पाए और अर्जुन ने भीष्म को पराजित कर दिया।

सात्यकि ने किया भूरिश्रवा का वध

भूरिश्रवा बहुत ही पराक्रमी योद्धा था। युद्ध में उसने कौरवों का साथ दिया था। सात्यकि अर्जुन का शिष्य था। कुरुक्षेत्र में जब ये दोनों महावीर मल्ल युद्ध कर रहे थे तब भूरिश्रवा ने सात्यकि को उठाकर जमीन पर पटक दिया और जब वह सात्यकि का वध करना चाहता था, उसी समय अर्जुन ने दूर से ही तीर चलाकर उसका हाथ काट दिया। अर्जुन के द्वारा इस प्रकार युद्ध के नियम तोड़ने पर भूरिश्रवा को बहुत क्रोध आया और वह उपवास लेकर वहीं बैठ गया। सात्यकि ने इसी का फायदा उठाते हुए भूरिश्रवा का वध कर दिया।

 छल से किया द्रोणाचार्य का वध
भीष्म के बाद द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति बनाया गया। द्रोणाचार्य पर विजय पाना भी जब पांडवों के लिए मुश्किल हो गया तब भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध कर दिया और ऐसा कहने लगे कि मैंने अश्वत्थामा का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था, इससे वे संशय में पड़ गए। जब उन्होंने इसके बारे में युधिष्ठिर से पूछा तो उन्होंने भी इसे सत्य बताया। पुत्र मोह के कारण द्रोणाचार्य ने अपने हथियार रख दिए और ध्यान की स्थिति में बैठ गए। इसी का फायदा उठाते हुए धृष्टद्युम्न (पांडवों का सेनापति) ने उनका वध कर दिया।

अर्जुन ने ऐसे किया कर्ण का वध

महाभारत युद्ध का एक नियम ये भी था कि असावधान व्यक्ति पर कोई वार नहीं करेगा और जो योद्धा अपने रथ से नीचे है, उसके साथ भी युद्ध नहीं किया जाएगा। युद्ध के दौरान जब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया था और कर्ण उसे निकालने नीचे उतरे, उसी स्थिति में अर्जुन ने उसका वध कर दिया। उस समय कर्ण के पास शस्त्र भी वहीं थे और वह असावधान स्थिति में था।

भीम ने किया दुर्योधन का वध

जब कौरवों की सेना नष्ट हो गई तब भीम व दुर्योधन में निर्णायक गदा युद्ध हुआ। गदा युद्ध के नियमों के अनुसार योद्धा कमर के नीचे वार नहीं कर सकते, लेकिन भीम ने इस नियम को तोड़ते हुए अपनी गदा से दुर्योधन की जांघ पर वार किया। जांघ पर वार होने से दुर्योधन पराजित हो गया। वहीं तड़पते हुए दुर्योधन के प्राण निकल गए।

अश्वत्थामा ने भी तोड़ा था युद्ध का नियम

रात को कोई किसी पर वार नहीं करेगा, ये भी महाभारत युद्ध का एक नियम था। इस नियम को अश्वत्थामा ने तोड़ा था। दुर्योधन ने मरने से पहले अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति बनाया। उस समय अश्वत्थामा के अलावा कौरवों की ओर से केवल कृपाचार्य व कृतवर्मा ही जीवित बचे थे। अश्वत्थामा रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में घुस गया और धृष्टद्युम्न, युधामन्यु के अलावा द्रौपदी के पांचों पुत्रों का वध कर दिया।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-who-brake-the-rules-of-mahabharat-war-know-news-hindi-5486615-PHO.html

Thursday, December 22, 2016

मनु स्मृतिः रोज करना चाहिए ये 5 काम, जानिए क्यों व कैसे?

मनु स्मृति के अनुसार, मनुष्य को जाने-अनजाने में हुए पाप की शांति के लिए रोज 5 यज्ञ करना चाहिए। यहां यज्ञ का अर्थ अग्नि में आहुति देने से नहीं है बल्कि अध्ययन, अतिथि सत्कार आदि से है। इन 5 यज्ञ इस प्रकार हैं-

श्लोक


अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम्।
होमो दैवो बलिर्भौतोनृयज्ञोतिथिपूजनम्।।
अर्थात्- वेदों का अध्ययन करना और कराना ब्रह्मयज्ञ, अपने पितरों (स्वर्गीय पूर्वजों) का श्राद्ध-तर्पण करना पितृ यज्ञ, हवन करना देव यज्ञ, बलिवैश्वदेव करना भूत यज्ञ और अतिथियों का सत्कार करना तथा उन्हें भोजन कराना नृयज्ञ अर्थात मनुष्य यज्ञ कहलाता है।

1. ब्रह्मयज्ञ

हर रोज वेदों का अध्ययन करने से ब्रह्मयज्ञ होता है। वेदों के अलावा पुराण, उपनिषद, महाभारत, गीता या अध्यात्म विद्याओं के पाठ से भी यह यज्ञ पूरा हो जाता है। यह न हो तो मात्र गायत्री साधना भी ब्रह्मयज्ञ संपूर्ण कर देती है। धार्मिक दृष्टि से इस यज्ञ से ऋषि ऋण से मुक्ति मिलती है। इसलिए इसे ऋषियज्ञ या स्वाध्याय यज्ञ भी कहा जाता है।

2. देवयज्ञ

देवी-देवताओं की प्रसन्नता के लिए हवन करना देवयज्ञ कहलाता है।

3. पितृयज्ञ

मृत पितरों की संतुष्टि व तृप्ति के लिये अन्न-जल समर्पित करना पितृयज्ञ कहलाता है। जिससे पितरों की असीम कृपा से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। अमावस्या, श्राद्धपक्ष आदि इसके लिए विशेष दिन है।

4. भूतयज्ञ

कीट-पतंगों, पशु-पक्षी, कृमि या धाता-विधाता स्वरूप भूतादि देवताओं के लिए अन्न या भोजन अर्पित करना भूतयज्ञ कहलाता है।

5. मनुष्य यज्ञ

घर के दरवाजे पर आए अतिथि को अन्न, वस्त्र, धन से तृप्त करना या दिव्य पुरुषों के लिए अन्न दान आदि मनुष्य यज्ञ कहलाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-manu-smriti-every-day-do-this-5-works-news-hindi-5486540-PHO.html

Wednesday, December 21, 2016

भगवान के सामने दीपक जलाने के खास नियम, ये करेंगे तो बचे रहेंगे नुकसान से

दीपक या दीया वह पात्र है, जिसमें सूत की बाती और तेल या घी रख कर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। पारंपरिक दीया मिट्टी का होता है, लेकिन धातु के दीये भी प्रचलन में हैं। ज्योति अग्नि और उजाले का प्रतीक दीपक कितना प्राचीन है। इसके विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। गुफाओं में भी यह मनुष्य के साथ था।

कुछ बड़ी अंधेरी गुफ़ाओं में इतनी सुन्दर चित्रकारी मिलती है, जिसे बिना दीपक के बनाना सम्भव नहीं था। भारत में दीये का इतिहास प्रामाणिक रूप से 5000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना हैं। अग्नि का प्राचीनकाल से ही हर धर्म में महत्व है। वेदों में अग्नि को प्रत्यक्ष देवतास्वरूप माना गया है।इसलिए हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान के सामने दीपक जलाया जाता है।

धार्मिक कारण

दीपक ज्ञान और रोशनी का प्रतीक है। पूजा में दीपक का विशेष महत्व है। आमतौर पर विषम संख्या में दीप प्रज्जवलित करने की परंपरा चली आ रही है। दरअसल, दीपक जलाने का कारण यह है कि हम अज्ञान का अंधकार मिटाकर अपने जीवन में ज्ञान के प्रकाश के लिए पुरुषार्थ करें। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार पूजा के समय दीपक लगाना अनिवार्य माना गया है। आरती कर घी का दीपक लगाने से घर में सुख समृद्धि आती है। इससे घर में लक्ष्मी का स्थाई रूप से निवास होता है। साथ ही, हमारे शास्त्रों के अनुसार पूजन में पंचामृत का बहुत महत्व माना गया है और घी उन्हीं पंचामृत में से एक माना गया है।

वैज्ञानिक कारण

दीपक को सकारात्मकता का प्रतीक व दरिद्रता को दूर करने वाला माना जाता है। गाय के घी में रोगाणुओं को भगाने की क्षमता होती है। यह घी जब दीपक में अग्नि के संपर्क से वातावरण को पवित्र बना देता है। इससे प्रदूषण दूर होता है। दीपक जलाने से पूरे घर को फायदा मिलता है। चाहे वह पूजा में सम्मिलित हो या नहीं। दीप प्रज्जवलन घर को प्रदूषण मुक्त बनाने का एक क्रम है।

दीपक जलाते समय बोले ये मंत्र

दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति।।

दीपक जलाने के नियम

1. दीपक की लौ पूर्व दिशा की ओर रखने से आयु में वृद्धि होती है।
2. ध्यान रहे कि दीपक की लौ पश्चिम दिशा की ओर रखने से दुख बढ़ता है।
3. दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर रखने से धन लाभ होता है।
4. दीपक की लौ कभी भी दक्षिण दिशा की ओर न रखें, ऐसा करने से जन या धनहानि होती है।