देवी
ब्रह्मचारिणी ब्रह्म शक्ति यानि तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त
की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं।
पूजन
विधि
ध्यान
मंत्र
महत्व
पूजन
विधि
सबसे
पहले चौकी (बाजोट) पर माता ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके
बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल
भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की
बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा
मां ब्रह्मचारिणी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य,
अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान,
दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें।
तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ध्यान
मंत्र
दधना
करपद्याभ्यांक्षमालाकमण्डलू।
देवीप्रसीदतु मयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अर्थात: देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
अद्भुत और दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल
रहता है।देवीप्रसीदतु मयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
महत्व
ब्रह्मचारिणी
हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता
प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के
विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का
स्मरण करें। योगशास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान
स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय
प्राप्त होती है।
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