Friday, October 14, 2016

सोच इस तरह की हो तभी देश महान बनता है

यह उन दिनों की बात है, जब स्वामी रामतीर्थ जापान में थे। स्वामी जी रेल से एक शहर से दूसरे शहर घूम रहे थे। उन दिनों वह अन्न नहीं खाते थे, फलाहार ही करते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि वह गाड़ी से यात्रा कर रहे थे और उन्हें खोजने पर भी कहीं फल नहीं मिल सके। स्वामी जी को तेज भूख लग गई थी। गाड़ी एक स्टेशन पर ठहरी।स्वामी जी ने इधर-उधर नजर दौड़ाई, मगर उन्हें फल न दिखाई दिए। सहसा उनके मुंह से निकल पड़ा, लगता है, जापान फलों के मामले में बड़ा गरीब है।

स्वामी जी के डिब्बे के सामने खड़े एक युवक ने उनकी यह बात सुन ली। वह अपनी पत्नी को गाड़ी में बिठाने आया था। यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा स्टेशन से बाहर गया और एक टोकरी फल लेकर स्वामी जी के पास आया और बोला, ये लीजिए फल। आपको इनकी जरूरत है।

स्वामी जी ने समझा, शायद यह कोई फल बेचने वाला है। उन्होंने फल ले लिए और पूछा, मूल्य कितना है? युवक ने कहा, इनका कोई मूल्य नहीं है, ये आपके लिए हैं।

स्वामी जी ने फिर पैसे लेने का आग्रह किया तो युवक बोला, आप फलों की कीमत देना ही चाहते हैं तो आपसे प्रार्थना है कि अपने देश जाकर किसी से यह न कहें कि जापान फलों के मामले में गरीब देश है। बस यही इनका मूल्य है।रामतीर्थ उस जापानी युवक का उत्तर सुनकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मन ही मन सोचा कि जिस देश का हर एक नागरिक अपने देश के सम्मान का इतना ध्यान रखता है, वह मुल्क सचमुच महान है।

अपने रास्ते से कभी नहीं भटकना चाहिए क्योंकि...

चीन में एक युवा भिक्षु था। वह बौद्ध धर्म के ग्रंथों को बहुत मन लगाकर पढ़ता था। भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को सुनता और उन्हें अपने जीवन में उतारने की कोशिश करता। पढ़ने में उसकी गंभीरता देखकर हर कोई उसकी तारीफ करता था।
 
एक दिन उसने ऐसी कोई बात पढ़ ली जो उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आई। बार-बार पढ़ने पर भी जब समझ नहीं पाया तो वह उसे समझने के लिए अपने गुरु के पास गया। उसने अपने गुरु से कहा कि आज तक उसने अपनी प्रतिभा से सारा ज्ञान अर्जित कर लिया लेकिन आज सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है, जब ये सुना तो वे जोर-जोर से हंसने लगे। वे उठे और वहां से उसी प्रकार हंसते हुए चले गए।

 गुरु की यह प्रतिक्रिया देखकर भिक्षु बुरी तरह विचलित हो गया। अगले तीन दिन तक न तो वह ठीक से सो पाया, न सोच पाया और न ही कुछ खा और पी सका। तीन दिन बाद वह गुरु के पास गया और उन्हें बताया कि वह कितना विचलित हो गया है। गुरु ने कहा भिक्षु तुम्हें मालूम है तुम्हारी समस्या क्या है। भिक्षु ने इंकार में सिर हिलाया। फिर उन्होंने कहा तुम सर्कस के जोकर से भी गए-गुजरे हो। यह सुनकर भिक्षु तो सन्न रह गया। उसने पूछा गुरुदेव आप ऐसे कैसे कह सकते हैं। मैं जोकर से कैसे गया-गुजरा हो सकता हूं।

 गुरु ने स्पष्ट किया, जब लोग जोकर पर हंसते हैं तो वह उसका लुत्फ उठाता है और तुम। तुम इसलिए विचलित हो गए क्योंकि दूसरा व्यक्ति तुम पर हंसा। मुझे बताओं क्या तुम जोकर से भी खराब हालत में नहीं हो? जब भिक्षु ने यह सुना तो वह जोर-जोर से हंसने लगा और उसी समय उसे बुद्धत्व की प्राप्ति हो गई।

 दरअसल, गुरु ने भांप लिया था कि गंभीर अध्ययन से उसका अहंकार बढ़ गया है। इस घमंड से मुक्त हुए बिना इसकी मुक्ति संभव नहीं। गुरु की इस कोशिश से अहंकार दूर होते ही बरसों की साधना का फल साकार हो गया।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-inspirational-stories-5328232-NOR.html

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