भारत धार्मिक परंपराओं का देश है जहां हर रिश्ता एक परंपरा में
बंधा होता है। परिवार समाज का आधार है और इससे जुड़ी कई परंपराएं समाज में देखने को
मिलती हैं। सनातन
धर्म में करवा चौथ नारी के जीवन का सबसे
अहम दिन होता है। पति की सलामती और लंबी उम्र के लिए महिलाएं करवाचौथ का व्रत रखती
हैं। द्रोपदी ने यह व्रत किया था, इसके बाद पांडव विजयी रहे।
सुहागन स्त्रियों का त्योहार करवाचौथ हर साल कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि 11 अक्टूबर को है। कई वर्ष करवाचौथ की तिथि को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद होता है लेकिन इस साल ऐसा कुछ भी नहीं है इसलिए सुहागन स्त्रियां 11 अक्टूबर को अपने पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन में प्रेम और सद्भाव वृद्घि के लिए करवाचौथ का व्रत को रखेंगी।
लेकिन इस साल नई नवेली दुल्हन करवाचौथ का व्रत शुरु करें या न करें इस बात को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद बना हुआ है। ज्योतिषी के अनुसार 11 अक्टूबर शनिवार को आने वाले करवाचौथ के व्रत के समय नौ ग्रहों में से बृहस्पति ग्रह निंद्रा में लीन रहेंगे। जिससे पहली बार व्रत रखने वाली सुहागिनों को उनके व्रत का प्रर्याप्त फल नहीं मिलेगा।
शास्त्री जी ने पर्व से जुड़ी कथा के बारे में बताया कि शाकप्रस्थपुर के ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवाचौथ का व्रत किया। व्रत के नियमानुसार चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करके भोजन करना था, लेकिन उससे भूख सही नहीं गई। वह व्याकुल हो गई। उसे परेशान देख उसके भाई ने पीपल की आड़ में प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करवा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति लुप्त हो गया। वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक व्रत किया तब फिर उसे अपने पति की प्राप्ति हुई।
पंडित रोजित शास्त्री फलित ज्योतिषाचार्य ने बताया कि करवा का मुख श्री गणेश के समान होता है और नलकी का आकार सूंड के समान होता है। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर शोभित रहता है। इसी कारण उसे अर्घ्य देने का विधान बतलाया गया है। दिन भर व्रत के साथ पूजा-अर्चना करने के बाद चांद के निकलने का इंतजार किया जाता है। दुल्हन के रूप में सुसच्जित महिलाएं चांद का पूजन कर उसे करवा से अर्घ्य देते हुए उसे चलनी से निहारने के साथ-साथ पति को निहारती हैं। पूजन के साथ महिलाएं भगवान भालचंद्र से सुखमय जीवन, पति प्रेम, पारिवारिक सुख-समृद्धि और पति के उ“वल भविष्य के साथ लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। फिर पति के हाथ से जल पीकर व्रत तोड़ती हैं।
करवा चौथ पूजा मुहूर्त -
शाम 05: 52 बजे से 07:07 बजे
अवधि - 1 घंटा 15 मिनट
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय- 08: 19 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 11 अक्टूबर को सुबह 10-18 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त 12 अक्टूबर को सुबह 09:33 बजे
इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पाराण करती हैं। सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है।
करवा चौथ व्रत विधि
करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
पूरे दिन निर्जला रहें।
दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
जल से भरा हुआ लोटा रखें।
वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। और उनके हाथ से जल पीएं। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
करवा-चौथ खासतौर पर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में भी इसे पूरी परंपरा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और स्वस्थ रहने के साथ ही अगले सात जन्मों तक उसी पति की कामना के साथ ये व्रत किया जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाए जाने वाले इस त्योहार में कमोबेश एक-सी-ही परंपराओं का निर्वहन होता है।
एक बास्केट में पारंपरिक व्यंजन, फल, सूखे मेवे और मिठाई हुआ करती है, जिसे व्रत करने वाली स्त्री करवाचौथ की सुबह सूर्योदय से पहले खाती हैं, ताकि दिन भर ऊर्जा बनी रहे।
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-karvachauth-what-is-its-importance-and-when-how-to-worship-11690172.html
सुहागन स्त्रियों का त्योहार करवाचौथ हर साल कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि 11 अक्टूबर को है। कई वर्ष करवाचौथ की तिथि को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद होता है लेकिन इस साल ऐसा कुछ भी नहीं है इसलिए सुहागन स्त्रियां 11 अक्टूबर को अपने पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन में प्रेम और सद्भाव वृद्घि के लिए करवाचौथ का व्रत को रखेंगी।
लेकिन इस साल नई नवेली दुल्हन करवाचौथ का व्रत शुरु करें या न करें इस बात को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद बना हुआ है। ज्योतिषी के अनुसार 11 अक्टूबर शनिवार को आने वाले करवाचौथ के व्रत के समय नौ ग्रहों में से बृहस्पति ग्रह निंद्रा में लीन रहेंगे। जिससे पहली बार व्रत रखने वाली सुहागिनों को उनके व्रत का प्रर्याप्त फल नहीं मिलेगा।
शास्त्री जी ने पर्व से जुड़ी कथा के बारे में बताया कि शाकप्रस्थपुर के ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवाचौथ का व्रत किया। व्रत के नियमानुसार चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करके भोजन करना था, लेकिन उससे भूख सही नहीं गई। वह व्याकुल हो गई। उसे परेशान देख उसके भाई ने पीपल की आड़ में प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करवा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति लुप्त हो गया। वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक व्रत किया तब फिर उसे अपने पति की प्राप्ति हुई।
पंडित रोजित शास्त्री फलित ज्योतिषाचार्य ने बताया कि करवा का मुख श्री गणेश के समान होता है और नलकी का आकार सूंड के समान होता है। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर शोभित रहता है। इसी कारण उसे अर्घ्य देने का विधान बतलाया गया है। दिन भर व्रत के साथ पूजा-अर्चना करने के बाद चांद के निकलने का इंतजार किया जाता है। दुल्हन के रूप में सुसच्जित महिलाएं चांद का पूजन कर उसे करवा से अर्घ्य देते हुए उसे चलनी से निहारने के साथ-साथ पति को निहारती हैं। पूजन के साथ महिलाएं भगवान भालचंद्र से सुखमय जीवन, पति प्रेम, पारिवारिक सुख-समृद्धि और पति के उ“वल भविष्य के साथ लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। फिर पति के हाथ से जल पीकर व्रत तोड़ती हैं।
करवा चौथ पूजा मुहूर्त -
शाम 05: 52 बजे से 07:07 बजे
अवधि - 1 घंटा 15 मिनट
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय- 08: 19 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 11 अक्टूबर को सुबह 10-18 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त 12 अक्टूबर को सुबह 09:33 बजे
मुहूर्त
इस बार 11 अक्टूबर 2014 के करवा चौथ का पूजा मुहूर्त है- 6: 15 से 7: 29 तक। करवाचौथ के दिन चन्द्रोदय 8: 51 में होने की संभावना है।इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पाराण करती हैं। सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है।
करवा चौथ व्रत विधि
करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
पूरे दिन निर्जला रहें।
दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
जल से भरा हुआ लोटा रखें।
वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। और उनके हाथ से जल पीएं। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
मान्यता
इस व्रत की
बहुत ही मान्यता है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाएं सुहाग की
अमरता और वैभव के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। करवा चौथ के दिन महिलाएं पूरा
दिन निराहार और निर्जल अर्थात बिना खाए-पिए व्रत रखती हैं और पति की लंबी आयु की
कामना करती हैं और रात को चांद को अर्घ्य देकर फिर छलनी से उसके दर्शन कर पति के
हाथ से जल ले व्रत खोलती हैं।करवा-चौथ खासतौर पर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में भी इसे पूरी परंपरा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और स्वस्थ रहने के साथ ही अगले सात जन्मों तक उसी पति की कामना के साथ ये व्रत किया जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाए जाने वाले इस त्योहार में कमोबेश एक-सी-ही परंपराओं का निर्वहन होता है।
कुछ आवश्यक
बातें-
सरगी
करवाचौथ का
संबंध यूं भी विवाह से हुआ करता है। विवाहित स्त्री, नवविवाहिता या फिर विवाह की
तैयारी करती लड़कियां ये व्रत करती हैं। इस व्रत की तैयारियां यूं तो कई दिनों पहले
से होने लगती है। मगर त्योहार की शुरुआत एक शाम पहले से ही हो जाती है। यदि वो
लड़की जिसकी शादी होने वाली है, वो व्रत कर रही है तो एक शाम पहले ही उसके ससुराल से सास की
तरफ से सरगी भेजी जाती है। उसी तरह विवाहित स्त्री को करवाचौथ वाले दिन सुबह सास
की तरफ से सरगी दी जाती है।एक बास्केट में पारंपरिक व्यंजन, फल, सूखे मेवे और मिठाई हुआ करती है, जिसे व्रत करने वाली स्त्री करवाचौथ की सुबह सूर्योदय से पहले खाती हैं, ताकि दिन भर ऊर्जा बनी रहे।
बया
ये लड़की की
मां की तरफ से लड़की के ससुराल भेजे जाने वाली सामग्री है। इसमें पैसे, कपड़े, मिठाई और फल हुआ करता है। इसमें
लड़की के ससुराल के सदस्यों के साथ-साथ खुद लड़की के लिए भी कपड़े और गहने हुआ करते
हैं, जो करवाचौथ
की पूजा पर वो पहनती हैं।
पूजा
पूजा
करवाचौथ का अहम हिस्सा हुआ करता है। करवाचौथ करने वाली आस-पास की महिलाएं और
लड़कियां साथ-साथ करती हैं। इसके लिए पूजा-स्थल को खड़िया मिट्टी से सजाया जाता है
और पार्वती की प्रतिमा की भी स्थापना की जाती है। पारंपरिक तौर पर पूजा की जाती है
और करवाचौथ की कथा सुनाई जाती है।
व्रत खोलना
करवाचौथ का
व्रत चांद देखकर खोला जाता है, उस मौके पर पति भी साथ होता है। दीए जलाकर पूजा की शुरुआत की
जाती है। थाली को सजाकर चांद को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पति के हाथों से पानी
पीकर दिन भर का व्रत खोला जाता है। उसके बाद परिवार सहित खाना होता है। असल में
चाहे करवा चौथ पति के दीर्घायु होने की कामना के साथ किया जाए लेकिन इसके साथ ही
इसका संबंध परिवार, दोस्तों और
रिश्तेदारों के साथ मनाने वाला उत्सव है।http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-karvachauth-what-is-its-importance-and-when-how-to-worship-11690172.html
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