1. मन बड़ा चंचल है, इधर-उधर की बहुत सी बातें मन में रहती हैं। मन की चंचलता को काबू कर परमात्मा के लिए ध्यान करेंगे तो दुख दूर हो सकते हैं।
2. अगर दिमाग में उदासी है, नकारात्मकता है तो उसे दूर करने का उपाय ध्यान है। ध्यान से हमारी सोच सकारात्मक बनती है।
3. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम क्या सोचते हैं? सही और अच्छी चीजों के बारे में सोचते हैं या बुरी चीजों के बारे में सोचते हैं।
4. हमसे जो भी जैसी भी गलती हुई है, उसे पहचानकर अच्छे और सच्चे दिल से सुधारने का प्रयास करना चाहिए, यही आत्म सुधार है।
5. पं. श्रीराम शर्मा आचार्यजी द्वारा आत्मविकास के चार चरण बताए गए हैं।
आत्म समीक्षा- अपनी समीक्षा करना, क्या अच्छाई है और क्या बुराई है।
आत्म सुधार- बुराइयों को सुधारना और सुधारने का प्रयास करना।
आत्म निर्माण- सुधार के बाद नई दिशा में जाना, सद्गुणों को बढ़ाना।
आत्म विकास-आत्म सुधार के बाद आत्म को विकसित करना।
6.मनुष्य अपने आप में महान है, लेकिन उससे महान उसका सृजन करने वाला है। सृजन करने वाले का निर्माण कभी अधूरा नहीं होता है। यानी हर एक इंसान अपने आप में परिपूर्ण है।
7.देहदान करना भी पुण्य का काम है। मेडिकल साइंस में इसका अपना महत्वपूर्ण स्थान है। देहदान से कम से कम आप 6-7 लोगों को जीवन दे सकते हैं।
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