अहोई अष्टमी व्रत पूजन 2016
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष कि अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है. यह व्रत पूजन संतान व पति के कल्याण हेतु किया जाता है. अहोई अष्टमी व्रत उदयकालिक एवं प्रदोषव्यापिनी अष्टमी को ही किया जाता है. यह व्रत मुख्यत: स्त्रियों द्वारा किया जाता है. सन्तान की रक्षा और उसकी लंबी उम्र की कामना के लिए यह व्रत मुख्य है. वर्ष 2016 को अहोई अष्टमी 22 अक्टूबर के दिन मनाई जानी है |
तथा सांयकाल में तारे दिखाई देने के समय अहोई का पूजन किया जाता है. तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है. और गेरूवे रंग से दीवार पर अहोई मनाई जाती है. जिसका सांयकाल में पूजन किया जाता है. कुछ मीठा बनाकर, माता को भोग लगा कर संतान के हाथ से पानी पीकर व्रत का समापन किया जाता है. अहोई अष्टमी का महत्व इसकी कथा द्वारा प्रलक्षित होता है |
कथा अनुसार, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक साहूकार रहता था. उसकी बहुत सी संताने थी, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती हैं. अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति पत्नी दुखी रहने लगते हैं. कोई संतान न होने के कारण वह पति पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुँचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न जल का त्याग करके बैठ जाते हैं |
इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रह है अत: इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा अर्चना करना जिससे प्रसन्न हो अहोई मां तुम्हें पुत्र की दीर्घ आयु का वरदान देंगी. इस प्रकार दोनो पति पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं. अहोई माँ प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देतीं हैं |
अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि | Ahoi Ashtami Vrat Puja Vidhi
अहोई अष्टमी के दिन पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए व्रत करना चाहिए. अहोई अष्टमी उत्साह से मनाया जाता है अहोई अष्टमी व्रत की तैयारियों से जुड़ी समस्त सामग्री जैसे गन्ना, सिंघाड़ा, कच्ची हल्दी, मटकी, अहोई अष्टमी का विशेष व्रत कथा कैलेंडर को इकट्ठा किया जाता है. महिलाएं विधि विधान से व्रत से संबंधित अनुष्ठान पूरे करने का संकल्प लेती हैं. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाते हैं तथा साथ ही सेह और उसके बच्चों का चित्र भी बनाते हैं |
सन्ध्या समय माँ का पूजन करने के उपरांत अहोई माता की कथा सुनते हैं. पूजा के बाद सास के पैर छू कर आर्शीवाद प्राप्त कर तारों की पूजा करके जल चढ़ाते हैं. इसके पश्चात व्रती जल ग्रहण करके व्रत का समापन करता है, आसमान में तारों के दर्शन के बाद व्रत को तोडा़ जाता है. जहां एक ओर करवाचौथ महिला अपने पति की दीर्घायु की कामना से मनाती हैं, वहीं अहोई अष्टमी संतान के दीर्घायु के लिए मनाया जाता है. करवाचौथ में चांद को देखने के बाद लोग व्रत तोड़ते हैं, वहीं अहोई अष्टमी का व्रत तारा देखने के बाद तोड़ा जाता है |
संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी | Ahoi Ashtami Fast and Children
जिन्हें संतान क असुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो उन्हें अहोई अष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए. संतान प्राप्ति हेतु अहोई अष्टमी व्रत अमोघफल दायक होता है. इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए. इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी एवं रूपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए. शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस में वितरित कर देना चाहिए सच्ची श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है |
http://astrobix.com/hindumarg/263-%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%88_%E0%A4%85%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A5%80_%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8_2016__Ahoi_Ashtami_Vrat_Puja_2016__Ahoi_Ashtami_Vrat__Ahoi_Aathe_2016.html
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष कि अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है. यह व्रत पूजन संतान व पति के कल्याण हेतु किया जाता है. अहोई अष्टमी व्रत उदयकालिक एवं प्रदोषव्यापिनी अष्टमी को ही किया जाता है. यह व्रत मुख्यत: स्त्रियों द्वारा किया जाता है. सन्तान की रक्षा और उसकी लंबी उम्र की कामना के लिए यह व्रत मुख्य है. वर्ष 2016 को अहोई अष्टमी 22 अक्टूबर के दिन मनाई जानी है |
अहोई अष्टमी महत्व | Ahoi
Ashtami Importance
संतान
की शुभता को बनाये रखने के लिये क्योकि यह उपवास किया जाता है. इसलिये इसे केवल
माताएं ही करती है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन से दीपावली का प्रारम्भ समझा जाता
है. अहोई अष्टमी के उपवास को करने वाली माताएं इस दिन प्रात:काल में उठकर, एक कोरे करवे (मिट्टी का बर्तन)
में पानी भर कर. माता अहोई की पूजा करती है. पूरे दिन बिना कुछ खाये व्रत किया
जाता है. सांय काल में माता को फलों का भोग लगाकर, फिर से पूजन किया जाता है |तथा सांयकाल में तारे दिखाई देने के समय अहोई का पूजन किया जाता है. तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है. और गेरूवे रंग से दीवार पर अहोई मनाई जाती है. जिसका सांयकाल में पूजन किया जाता है. कुछ मीठा बनाकर, माता को भोग लगा कर संतान के हाथ से पानी पीकर व्रत का समापन किया जाता है. अहोई अष्टमी का महत्व इसकी कथा द्वारा प्रलक्षित होता है |
कथा अनुसार, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक साहूकार रहता था. उसकी बहुत सी संताने थी, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती हैं. अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति पत्नी दुखी रहने लगते हैं. कोई संतान न होने के कारण वह पति पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुँचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न जल का त्याग करके बैठ जाते हैं |
इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रह है अत: इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा अर्चना करना जिससे प्रसन्न हो अहोई मां तुम्हें पुत्र की दीर्घ आयु का वरदान देंगी. इस प्रकार दोनो पति पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं. अहोई माँ प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देतीं हैं |
अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि | Ahoi Ashtami Vrat Puja Vidhi
अहोई अष्टमी के दिन पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए व्रत करना चाहिए. अहोई अष्टमी उत्साह से मनाया जाता है अहोई अष्टमी व्रत की तैयारियों से जुड़ी समस्त सामग्री जैसे गन्ना, सिंघाड़ा, कच्ची हल्दी, मटकी, अहोई अष्टमी का विशेष व्रत कथा कैलेंडर को इकट्ठा किया जाता है. महिलाएं विधि विधान से व्रत से संबंधित अनुष्ठान पूरे करने का संकल्प लेती हैं. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाते हैं तथा साथ ही सेह और उसके बच्चों का चित्र भी बनाते हैं |
सन्ध्या समय माँ का पूजन करने के उपरांत अहोई माता की कथा सुनते हैं. पूजा के बाद सास के पैर छू कर आर्शीवाद प्राप्त कर तारों की पूजा करके जल चढ़ाते हैं. इसके पश्चात व्रती जल ग्रहण करके व्रत का समापन करता है, आसमान में तारों के दर्शन के बाद व्रत को तोडा़ जाता है. जहां एक ओर करवाचौथ महिला अपने पति की दीर्घायु की कामना से मनाती हैं, वहीं अहोई अष्टमी संतान के दीर्घायु के लिए मनाया जाता है. करवाचौथ में चांद को देखने के बाद लोग व्रत तोड़ते हैं, वहीं अहोई अष्टमी का व्रत तारा देखने के बाद तोड़ा जाता है |
संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी | Ahoi Ashtami Fast and Children
जिन्हें संतान क असुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो उन्हें अहोई अष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए. संतान प्राप्ति हेतु अहोई अष्टमी व्रत अमोघफल दायक होता है. इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए. इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी एवं रूपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए. शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस में वितरित कर देना चाहिए सच्ची श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है |
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