Monday, October 31, 2016

अन्नकूट

दीपावली के अगले दिन को अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक कथानुसार यह पर्व द्वापर युग में आरम्भ हुआ था क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के पूजा के निमित्त पके हुए अन्न भोग में लगाए थे, इसलिए इस दिन का नाम अन्नकूट पड़ा, कई जगह इस पर्व को गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
अन्नकूट पूजा विधि
ब्रजवासियों का यह मुख्य त्यौहार सम्पूर्ण भारत में बड़े ही उत्साह और हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण छप्पन प्रकार के पकवान, रंगोली, पके हुए चावलों को पर्वत के आकार में बनाकर भगवान श्री कृष्ण को अर्पित करते हैं तद्योपरांत श्रद्धा और भक्तिपूर्वक उनकी पूजा-वंदना करते हैं। उसके बाद अपने स्वजनों और अतिथियों के साथ बाल गोपाल को अर्पित इस महाप्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
नोट: अन्नकूट के पवित्र दिवस पर चन्द्र दर्शन अशुभ माना जाता है। इसलिए प्रतिपदा में द्वितीया तिथि के हो जाने पर इस पर्व को अमावस्या को ही मनाने की परंपरा है।
गोवर्धन कथा
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन इन्द्र के घमंड को तोड़ा था, जिस कारणवश इस दिन बाल गोपाल के पूजा का बड़ा महत्त्व होता है। आस्थावान भक्तों की मानें तो इस अनुष्ठान को विधिपूर्वक संपन्न करने से भक्त को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अन्नकूट की विशेष रात्रि पर भक्तगण भव्य सत्संग का आयोजन करते हैं और पूरी रात श्रीप्रभु के भजन और उनके गुणों के बखान को गाते हैं।
http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/annakoot

Saturday, October 29, 2016

देवी लक्ष्मी को क्यों चढ़ाते हैं खील-बताशे, ये हैं दिवाली की परंपराएं

दीपावली का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। दीपावली व माता लक्ष्मी से जुड़ी अनेक मान्यताएं व परंपराएं हमारे देश में प्रचलित हैं। दीपावली व लक्ष्मी से जुड़ी ये मान्यताएं व परंपराएं कई बार बच्चों के मन में जिज्ञासा पैदा करती हैं, लेकिन उन्हें अपने प्रश्नों का उत्तर हमेशा नहीं मिल पाता। आज हम आपको दीपावली व लक्ष्मी से जुड़ी ऐसी ही मान्यताओं व परंपराओं में छिपे जीवन प्रबंधन सूत्रों के बारे में बता रहे हैं, जो बच्चों की जिज्ञासा का समाधान करेंगे। ये मान्यताएं व परंपराएं इस प्रकार हैं-

दीपावली पर क्यों खाते हैं खील-बताशे?
दीपावली धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति का त्योहार है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन कर जीवनभर धन-संपत्ति की कामना की जाती है। खील-बताशे का प्रसाद किसी एक कारण से नहीं बल्कि उसके कई महत्व है, व्यवहारिक, दार्शनिक, और ज्योतिषीय ऐसे सभी कारणों से दीपावली पर खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। खील यानी धान मूलत: धान (चावल) का ही एक रूप है। यह चावल से बनती है और उत्तर भारत का प्रमुख अन्न भी है।

दीपावली के पहले ही इसकी फसल तैयार होती है, इस कारण लक्ष्मी को फसल के पहले भाग के रूप में खील-बताशे चढ़ाए जाते हैं। खील बताशों का ज्योतिषीय महत्व भी होता है। दीपावली धन और वैभव की प्राप्ति का त्योहार है और धन-वैभव का दाता शुक्र ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह का प्रमुख धान्य धान ही होता है। शुक्र को प्रसन्न करने के लिए हम लक्ष्मी को खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाते हैं।

इसलिए करते हैं देवी लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश व सरस्वती की पूजा
दीपावली पर माता लक्ष्मी के साथ माता सरस्वती व भगवान श्रीगणेश की पूजा भी की जाती है। इसके पीछे लाइफ मैनेजमेंट से जुड़े कई खास सूत्र छिपे हैं। लक्ष्मी धन की देवी हैं, सरस्वती ज्ञान की तथा गणपति बुद्धि के देवता हैं। इससे अभिप्राय है कि हम सिर्फ लक्ष्मी (धन) का ही आह्वान न करें, साथ ही सरस्वती (ज्ञान) व गणपति (बुद्धि) को भी बुलाएं। धन आए तो उसे अपने ज्ञान से संभालें और बुद्धि के उपयोग से उसे निवेश करें। इससे लक्ष्मी का स्थायी निवास होगा।
इसीलिए दीपावली हम लक्ष्मी से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे घर में विराजे, साथ विद्या और बुद्धि भी लाएं। सरस्वती का स्थान लक्ष्मी की दांई ओर तथा गणपति का बांईं ओर होता है। इसके अभिप्राय है कि मनुष्य का दाई ओर का मस्तिष्क ज्ञान के लिए होता है। उस ओर हमारा ज्ञान एकत्र होता है और बांई ओर का मस्तिष्क रचनात्मक होता है। गणपति बुद्धि के देवता है, हमारी बुद्धि रचनात्मक होनी चाहिए।

दीपावली पर क्यों करते हैं दीपदान?
धनतेरस से दीपावली तक नदी-तालाबों में दीपदान करने का प्रचलन है। शास्त्रों का मानना है कि दीपदान करने से नरक के दर्शन नहीं होते। दीपदान में लाइफ मैनेजमेंट के सूत्र भी छिपे हैं। दरअसल दीपदान इस बात का संकेत है कि हम अपने जीवन में ज्ञान और धर्म का उजाला लाएंगे। अज्ञान और अधर्म के कारण ही व्यक्ति को नर्क के दर्शन होते हैं यानी मरने के बाद नर्क में जाना पड़ता है। अज्ञानता के कारण हम अच्छे-बुरे का भेद नहीं कर पाते, परमात्मा को नहीं पहचान पाते। ज्ञान आने पर यह परेशानी दूर हो जाती है। ज्ञान आता है तो उसके साथ ही धर्म भी हमारे जीवन में प्रवेश करता है।
दूसरा कारण प्रकृति से जुड़ा है। बारिश के मौसम के बाद प्रकृति का सौंदर्य पूरे निखार पर होता है। दीपदान के द्वारा हम प्रकृति यानी परमात्मा को यह विश्वास दिलाते हैं कि हम प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करेंगे। उनमें कभी अंधकार नहीं होने देंगे। अगर प्राकृतिक संसाधन समाप्त होंगे तो धरती पर ही नर्क उतर आएगा। इसलिए हम प्रकृति के संदेश वाहक जल स्रोतों में दीपदान कर यह संकल्प लेते हैं कि हम प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।

कमल के फूल पर ही क्यों बैठती हैं माता लक्ष्मी?
महालक्ष्मी के चित्रों और प्रतिमाओं में उन्हें कमल के पुष्प पर विराजित दर्शाया गया है। इसके पीछे धार्मिक कारण तो है साथ ही कमल के फूल पर विराजित लक्ष्मी जीवन प्रबंधन का महत्वपूर्ण संदेश भी देती हैं। महालक्ष्मी धन की देवी हैं। धन के संबंध में कहा जाता है कि इसका नशा सबसे अधिक दुष्प्रभाव देने वाला होता है। धन मोह-माया में डालने वाला है और जब धन किसी व्यक्ति पर हावी हो जाता है तो अधिकांश परिस्थितियों में वह व्यक्ति बुराई के रास्ते पर चल देता है। इसके जाल में फंसने वाले व्यक्ति का पतन होना निश्चित है।
वहीं कमल का फूल अपनी सुंदरता, निर्मलता और गुणों के लिए जाना जाता है। कमल कीचड़ में ही खिलता है परंतु वह उस की गंदगी से परे है, उस पर गंदगी हावी नहीं हो पाती। कमल पर विराजित लक्ष्मी यही संदेश देती हैं कि वे उसी व्यक्ति पर कृपा बरसाती हैं जो कीचड़ जैसे बुरे समाज में भी कमल की तरह निष्पाप रहे और खुद पर बुराइयों को हावी ना होने दें। जिस व्यक्ति के पास अधिक धन है उसे कमल के फूल की तरह अधार्मिक कामों से दूरी बनाए रखना चाहिए। साथ ही कमल पर स्वयं लक्ष्मी के विराजित होने के बाद भी उसे घमंड नहीं होता, वह सहज ही रहता है। इसी तरह धनवान व्यक्ति को भी सहज रहना चाहिए, जिससे उस पर लक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहे।

क्यों भगवान विष्णु के पैरों की ओर बैठती हैं माता लक्ष्मी?
हम सभी ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के कई चित्र देखें हैं। अनेक चित्रों में भगवान विष्णु को बीच समुद्र में शेषनाग के ऊपर लेटे और माता लक्ष्मी को उनके चरण दबाते हुए दिखाया जाता है। माता लक्ष्मी यूं तो धन की देवी हैं तो भी वे भगवान विष्णु के चरणों में ही निवास करती हैं ऐसा क्यों? इसका कारण हैं कि भगवान विष्णु कर्म व पुरुषार्थ का प्रतीक हैं और माता लक्ष्मी उन्हीं के यहां निवास करती हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी पीछे नहीं हटते और कर्म व अपने पुरुषार्थ के बल पर विजय प्राप्त करते हैं जैसे कि भगवान विष्णु।
जब भी अधर्म बढ़ता है तब-तब भगवान विष्णु अवतार लेकर अधर्मियों का नाश करते हैं और कर्म का महत्व दुनिया को समझाते हैं। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि केवल भाग्य पर निर्भर रहने से लक्ष्मी (पैसा) नहीं मिलता। धन के लिए कर्म करने की आवश्यकता पड़ता है साथ ही हर विपरीत परिस्थिति से लड़ने का साहस भी आपने होना चाहिए। तभी लक्ष्मी आपके घर में निवास करेगी।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-these-are-the-traditions-of-diwali-news-hindi-5447523-PHO.html

नरक चतुर्दशी: ये है यम तर्पण की विधि व शुभ मुहूर्त

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी व रूप चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा व व्रत का विधान है। नरक चतुर्दशी पर इस विधि से यम तर्पण करना चाहिए।
पूजन विधि
इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके सूर्योदय से पहले स्नान करने का विधान है। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए-

सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
ऊं यमाय नम:,
ऊं धर्मराजाय नम:
ऊं मृत्यवे नम:
ऊं अन्तकाय नम:
ऊं वैवस्वताय नम:
ऊं कालाय नम:
ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:
ऊं औदुम्बराय नम:
ऊं दध्राय नम:
ऊं नीलाय नम:
ऊं परमेष्ठिने नम:
ऊं वृकोदराय नम:
ऊं चित्राय नम:
ऊं चित्रगुप्ताय नम:।
इस प्रकार तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना चाहिए, चाहे उनके माता-पिता गुजर चुके हों या जीवित हों। फिर देवताओं का पूजन करके शाम के समय यमराज को दीपदान करने का विधान है।
नरक चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी करनी चाहिए, क्योंकि इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था। इस दिन जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करता है, उसके मन के सारे पाप दूर हो जाते हैं और अंत में उसे वैकुंठ में स्थान मिलता है।

शुभ मुहूर्त

सुबह 05 से 06:27 बजे तक (अभ्यंग स्नान के लिए)
शाम 05:40 से 06:55 बजे तक (दीपदान के लिए)

इसलिए करते हैं यमराज की पूजा
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए।
तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें।
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी।
भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।

इस दिन श्रीकृष्ण ने वध किया था नरकासुर का
नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा नरकासुर वध की भी है जो इस प्रकार है-
प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को भी त्रास देने लगा। महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध किया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीएं जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-diwali-2016-worship-method-of-narak-chaturdashi-news-hindi-5446085-PHO.html

Friday, October 28, 2016

समुद्र मंथन से निकले थे 14 रत्न, ये है इनमें छिपा लाइफ मैनेजमेंट

28 अक्टूबर, शुक्रवार को धनतेरस का पर्व है। मान्यता के अनुसार, इसी दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा की जाती है। समुद्र मंथन से धन्वतंरि के साथ अन्य रत्न भी निकले थे। आज हम आपको समुद्र मंथन की पूरी कथा व उसमें छिपे लाइफ मैनेजमेंट के सूत्रों के बारे में बता रहे हैं-

ये है समुद्र मंथन की कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव आदि) हो गया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया और ये भी बताया कि समुद्र मंथन को अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे। यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया। समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि सहित 14 रत्न निकले।
क्या सीखें
समुद्र मंथन को अगर लाइफ मैनेजमेंट के नजरिए से देखा जाए तो हम पाएंगे कि सीधे-सीधे किसी को अमृत (परमात्मा) नहीं मिलता। उसके लिए पहले मन को विकारों को दूर करना पड़ता है और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना पड़ता है। समुद्र मंथन में 14 नंबर पर अमृत निकला था। इस 14 अंक का अर्थ है ये है 5 कमेन्द्रियां, 5 जनेन्द्रियां तथा अन्य 4 हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। इन सभी पर नियंत्रण करने के बाद में परमात्मा प्राप्त होते हैं।
1. कालकूट विष
समुद्र मंथन में से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया। इससे तात्पर्य है कि अमृत (परमात्मा) इस इंसान के मन में स्थित है। अगर हमें अमृत की इच्छा है तो सबसे पहले हमें अपने मन को मथना पड़ेगा। जब हम अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार ही बाहर निकलेंगे। यही बुरे विचार विष है। हमें इन बुरे विचारों को परमात्मा को समर्पित कर देना चाहिए और इनसे मुक्त हो जाना चाहिए।
2. कामधेनु
समुद्र मंथन में दूसरे क्रम में निकली कामधेनु। वह अग्निहोत्र (यज्ञ) की सामग्री उत्पन्न करने वाली थी। इसलिए ब्रह्मवादी ऋषियों ने उसे ग्रहण कर लिया। कामधेनु प्रतीक है मन की निर्मलता की। क्योंकि विष निकल जाने के बाद मन निर्मल हो जाता है। ऐसी स्थिति में ईश्वर तक पहुंचना और भी आसान हो जाता है।
3. उच्चैश्रवा घोड़ा
समुद्र मंथन के दौरान तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। इसका रंग सफेद था। इसे असुरों के राजा बलि ने अपने पास रख लिया। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखें तो उच्चैश्रवा घोड़ा मन की गति का प्रतीक है। मन की गति ही सबसे अधिक मानी गई है। यदि आपको अमृत (परमात्मा) चाहिए तो अपने मन की गति पर विराम लगाना होगा। तभी परमात्मा से मिलन संभव है।
4. ऐरावत हाथी
समुद्र मंथन में चौथे नंबर पर ऐरावत हाथी निकला, उसके चार बड़े-बड़े दांत थे। उनकी चमक कैलाश पर्वत से भी अधिक थी। ऐरावत हाथी को देवराज इंद्र ने रख लिया। ऐरावत हाथी प्रतीक है बुद्धि का और उसके चार दांत लोभ, मोह, वासना और क्रोध का। चमकदार (शुद्ध व निर्मल) बुद्धि से ही हमें इन विकारों पर काबू रख सकते हैं।
5. कौस्तुभ मणि
समुद्र मंथन में पांचवे क्रम पर निकली कौस्तुभ मणि, जिसे भगवान विष्णु ने अपने ह्रदय पर धारण कर लिया। कौस्तुभ मणि प्रतीक है भक्ति का। जब आपके मन से सारे विकार निकल जाएंगे, तब भक्ति ही शेष रह जाएगी। यही भक्ति ही भगवान ग्रहण करेंगे।
 6. कल्पवृक्ष
समुद्र मंथन में छठे क्रम में निकला इच्छाएं पूरी करने वाला कल्पवृक्ष, इसे देवताओं ने स्वर्ग में स्थापित कर दिया। कल्पवृक्ष प्रतीक है आपकी इच्छाओं का। कल्पवृक्ष से जुड़ा लाइफ मैनेजमेंट सूत्र है कि अगर आप अमृत (परमात्मा) प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहे हैं तो अपनी सभी इच्छाओं का त्याग कर दें। मन में इच्छाएं होंगी तो परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं है।
7. रंभा अप्सरा
समुद्र मंथन में सातवे क्रम में रंभा नामक अप्सरा निकली। वह सुंदर वस्त्र व आभूषण पहने हुई थीं। उसकी चाल मन को लुभाने वाली थी। ये भी देवताओं के पास चलीं गई। अप्सरा प्रतीक है मन में छिपी वासना का। जब आप किसी विशेष उद्देश्य में लगे होते हैं तब वासना आपका मन विचलित करने का प्रयास करती हैं। उस स्थिति में मन पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है।
8. देवी लक्ष्मी
समुद्र मंथन में आठवे स्थान पर निकलीं देवी लक्ष्मी। असुर, देवता, ऋषि आदि सभी चाहते थे कि लक्ष्मी उन्हें मिल जाएं, लेकिन लक्ष्मी ने भगवान विष्णु का वरण कर लिया। लाइफ मैनेजमेंट के नजरिए से लक्ष्मी प्रतीक है धन, वैभव, ऐश्वर्य व अन्य सांसारिक सुखों का। जब हम अमृत (परमात्मा) प्राप्त करना चाहते हैं तो सांसारिक सुख भी हमें अपनी ओर खींचते हैं, लेकिन हमें उस ओर ध्यान न देकर केवल ईश्वर भक्ति में ही ध्यान लगाना चाहिए।
9. वारुणी देवी
समुद्र मंथन से नौवे क्रम में निकली वारुणी देवी, भगवान की अनुमति से इसे दैत्यों ने ले लिया। वारुणी का अर्थ है मदिरा यानी नशा। यह भी एक बुराई है। नशा कैसा भी हो शरीर और समाज के लिए बुरा ही होता है। परमात्मा को पाना है तो सबसे पहले नशा छोड़ना होगा तभी परमात्मा से साक्षात्कार संभव है।
10. चंद्रमा
समुद्र मंथन में दसवें क्रम में निकले चंद्रमा। चंद्रमा को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया। चंद्रमा प्रतीक है शीतलता का। जब आपका मन बुरे विचार, लालच, वासना, नशा आदि से मुक्त हो जाएगा, उस समय वह चंद्रमा की तरह शीतल हो जाएगा। परमात्मा को पाने के लिए ऐसा ही मन चाहिए। ऐसे मन वाले भक्त को ही अमृत (परमात्मा) प्राप्त होता है।
11. पारिजात वृक्ष
इसके बाद समुद्र मंथन से पारिजात वृक्ष निकला। इस वृक्ष की विशेषता थी कि इसे छूने से थकान मिट जाती थी। यह भी देवताओं के हिस्से में गया। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो समुद्र मंथन से पारिजात वृक्ष के निकलने का अर्थ सफलता प्राप्त होने से पहले मिलने वाली शांति है। जब आप (अमृत) परमात्मा के इतने निकट पहुंच जाते हैं तो आपकी थकान स्वयं ही दूर हो जाती है और मन में शांति का अहसास होता है।
12. पांचजन्य शंख
समुद्र मंथन से बारहवें क्रम में पांचजन्य शंख निकला। इसे भगवान विष्णु ने ले लिया। शंख को विजय का प्रतीक माना गया है साथ ही इसकी ध्वनि भी बहुत ही शुभ मानी गई है। जब आप अमृत (परमात्मा) से एक कदम दूर होते हैं तो मन का खालीपन ईश्वरीय नाद यानी स्वर से भर जाता है। इसी स्थिति में आपको ईश्वर का साक्षात्कार होता है।
13 14. भगवान धन्वंतरि व अमृत कलश
समुद्र मंथन से सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले। भगवान धन्वंतरि प्रतीक हैं निरोगी तन व निर्मल मन के। जब आपका तन निरोगी और मन निर्मल होगा तभी इसके भीतर आपको परमात्मा की प्राप्ति होगी। समुद्र मंथन में 14 नंबर पर अमृत निकला। इस 14 अंक का अर्थ है ये है 5 कमेंद्रियां, 5 जननेन्द्रियां तथा अन्य 4 हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। इन सभी पर नियंत्रण करने के बाद में परमात्मा प्राप्त होते हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-diwali-2016-life-management-of-samudra-manthan-news-hindi-5446067-PHO.html

Thursday, October 27, 2016

ये हैं धन लाभ देने वाले 5 यंत्र

मान्यता है कि धनतेरस व दीपावली पर सिद्ध किया गया कोई भी तंत्र, मंत्र व यंत्र बहुत ही जल्दी शुभ फल प्रदान करता है। आज हम आपको ऐसे ही 5 यंत्रों के बारे में बता रहे हैं। ये सभी यंत्र धन लाभ व अचल संपत्ति (मकान, जायदाद) देने वाले हैं। धनतेरस व दीपावली पर इस यंत्रों की विधि-विधान से पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। इन यंत्रों के बारे में जानने के लिए आगे की स्लाइड्स पर क्लिक करें-
कुबेर यंत्र
धन लाभ चाहने वाले लोगों के लिए कुबेर यंत्र अत्यन्त सफलतादायक है। धनतेरस या दीपावली पर बिल्व-वृक्ष के नीचे बैठकर इस यंत्र को सामने रखकर कुबेर मंत्र को शुद्धता पूर्वक जाप करने से यंत्र सिद्ध होता है तथा यंत्र सिद्ध होने के पश्चात इसे गल्ले या तिजोरी में स्थापित किया जाता है। इसके स्थापना के पश्चात् दरिद्रता का नाश होकर, प्रचुर धन व यश की प्राप्ति होती है।
मंत्र
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन्य धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि में देहित दापय स्वाहा
श्रीयंत्र
यंत्र शास्त्र में श्रीयंत्र की विशेष महिमा बताई गई है। इसे यंत्रराज की उपाधि दी गई है। इस यंत्र को धन वृद्धि, धन प्राप्ति, कर्ज से संबंधित धन पाने के लिए, लोन इत्यादि प्राप्त होने के लिए तथा लॉटरी आदि द्वारा धन पाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। धनतेरस या दीपावली पर इसकी स्थापना घर के पूजा कक्ष में करनी चाहिए।
महालक्ष्मी यंत्र
धनतेरस या दीपावली पर महालक्ष्मी यंत्र का पूजन कर विधि-विधान पूर्वक इसकी स्थापना करें। यह यंत्र धन वृद्धि के लिए अधिक उपयोगी माना गया है। कम समय में ज्यादा धन वृद्धि के लिए यह यंत्र अत्यन्त उपयोगी है। इस यंत्र का प्रयोग दरिद्रता का नाश करता है। यह स्वर्ण वर्षा करने वाला यंत्र कहा गया है। इसकी कृपा से गरीब व्यक्ति भी एकाएक अमीर बन सकता है।
कनकधारा यंत्र
श्रीकनकधारा धन प्राप्ति व दरिद्रता दूर करने के लिए अचूक यंत्र है। इसकी पूजा से हर मनचाहा काम हो जाता है। यह यंत्र अष्टसिद्धि व नवनिधियों को देने वाला है। इसका पूजन व स्थापना भी धनतेरस या दीपावली के दिन करें।

मंगल यंत्र
धनतेरस या दीपावली पर श्रीमंगल यंत्र का पूजन कर स्थापना करें। इस यंत्र के नियमित पूजन से शीघ्र ही सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति मिल जाती है। मंगल भूमि कारक ग्रह है। अत: जो इस यंत्र को पूजता है वह अचल संपत्ति का मालिक होता है। 
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JYO-RAN-diwali-2016-this-5-yantra-is-very-important-news-hindi-5446772-PHO.html