प्रथम पूज्य श्रीगणेश को विशेष रूप से दूर्वा अर्पित की जाती है। दूर्वा एक प्रकार की घास है। ऐसा माना जाता है कि गजानंद को यह घास चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और घर में रिद्धि-सिद्ध का वास होता है। गणेशजी को दूर्वा सभी लोग अर्पित करते हैं, लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि दूर्वा अर्पित क्यों की जाती है। यह प्राचीन परंपरा है और इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। यहां जानिए गणेशजी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा से जुड़ी कथा...
ये है पुराने समय से प्रचलित कथा...
कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था। इस दैत्य के आतंक से स्वर्ग और धरती पर त्राही-त्राही मची हुई थी। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का नाश करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल श्रीगणेश ही कर सकते हैं।
शिवजी ने कहा कि अनलासुर का अंत करने के लिए उसे निगलना पड़ेगा और ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। गणेशजी का पेट काफी बड़ा है, अत: वे अनलासुर को आसानी से निगल सकते हैं। यह सुनकर सभी देवी-देवता भगवान गणेश के पास पहुंच गए। श्रीगणेश की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर गणेशजी अनलासुर को समाप्त करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद श्रीगणेश और अनलासुर के बीच घमासान युद्ध हुआ, अंत में गणेशजी ने असुर को पकड़कर निगल लिया और इसप्रकार अनलासुर के आतंक का अंत हुआ।
जब श्रीगणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
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