Friday, April 22, 2016

हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा क्यों?

अद्भुत रामायण में एक कथा उल्लेख मिलता है, जिसमें मंगलवार की सुबह जब हनुमानजी को भूख लगी तो वे माता जानकी के पास कुछ खाने के लिए मांगने पहुंचे। सीता माता की मांग में सिंदूर देखकर हनुमानजी ने उनसे आश्चर्य से पूछा –माता मांग में आपने यह कौन सा लाल द्रव्य लगाया है। इस पर सीता माता ने कहा- पुत्र यह सुहागिन स्त्रियों का प्रतीक, मंगल सूचक, सौभाग्यवर्धक सिंदूर है, जो स्वामी के दीर्घायु के लिए जीवनपर्यंत मांग में लगाया जाता है। इससे वे मुझ पर प्रसन्न रहते हैं। हनुमानजी ने यह जानकर विचार किया कि जब अंगुली भर सिंदूर लगाने से पति की उम्र बढ़ती है, तो फिर क्यों न सारे शरीर पर इसे लगाकर अपने स्वामी भगवान श्रीराम को अजर-अमर कर दूं।
उन्होंने जैसा सोचा, वैसा ही कर दिखाया। अपने सारे शरीर पर सिंदूर पोतकर भगवान श्रीराम की सभा में पहुंच गए। उन्हें इस तरह सिंदूरी रंग में रंगा देखकर सभा में मौजूद सभी लोग हंसे, यहां तक कि भगवान राम भी उन्हें देखकर ,मुस्कुराए और बहुत प्रसन्न हुए। उनके सरल भाव पर मुग्ध होकर उन्होंने यह घोषणा की कि जो मंगलवार के दिन मेरे प्रिय हनुमान को तेल और सिंदूर चढ़ाएंगे, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इस पर माता जानकी के वचनों में हनुमानजी को बहुत विश्वास हो गया। कहा जाता है कि उसी समय से भगवान श्रीराम के प्रति हनुमानजी की भक्ति को याद करने के लिए उनके सारे शरीर चमेली के तेल में घोलकर सिंदूर लगाया जाता है। इसे चोला चढ़ाना भी कहते हैं।

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