हिंदू मान्यताओं के अनुसार व्रत-उपवास भी कई तरह के होते हैं, लेकिन आजकल अधिकांश लोग खाने से संबंधित व्रत करते हैं। इस तरह के उपवास में अन्न जैसे गेहूं, चावल, दाल, विभिन्न सब्जियां आदि से परहेज किया जाता है। ऐसे समय में केवल फल आदि लिए जाते हैं। भगवान की भक्ति में अन्न आदि क्यों नहीं खाए जाते हैं, इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों की कारण मौजूद हैं।
उपवास के दौरान अन्न न खाने के पीछे धार्मिक कारण यह है कि अन्न पेट भरता है, हमें संतुष्टि प्रदान करता है। शरीर के लिए कभी-कभी भूखा रहना भी फायदेमंद होता है। उपवास करने पर हम अन्नादि नहीं खाते हैं जिससे हमारे डायजेस्टिव सिस्टम को आराम मिलता है। व्रत हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है, क्योंकि इस दौरान हम खान-पान के संबंध में पूरी सावधानी रखते हैं और स्वस्थ और निरोगी बने रहते हैं।
इससे कब्ज, गैस, अजीर्ण, सिरदर्द, बुखार आदि रोगों से रक्षा होती है। आध्यत्मिक शक्ति बढ़ती है। ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पद्धति को शामिल किया गया है। व्रत में सात्विक व मादकता से रहित फलाहार हमारे शरीर को सभी आवश्यक पौष्टिक तत्व देता है और बीमारियों से रक्षा करता है।
अन्न में पौष्टिक तत्व होते है साथ ही इसमें कई ऐसे तत्व होते हैं जो आलसी बनाते हैं या वासना जगाते हैं। अन्न खाने के पश्चात हमें नींद व आलस्य घेर लेते हैं और भक्ति में अधिक ध्यान नहीं लगा पाते। इसी आलस्य को दूर करने के लिए व्रत-उपवास की परंपरा शुरू की गई।
तप से हम अपने शरीर को साधते हैं और इच्छाओं का त्याग करते हैं ताकि हमारा मन भगवान में लग सके। हमारा पूरा ध्यान भगवान की ओर ही रहे। खाना खाने के बाद हमारा मन इधर-उधर बहुत जल्दी भटक जाता है। जबकि फल का सेवन करने से हमारे शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्राप्त हो जाती है और हम अच्छे से तप कर पाते हैं।
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