Saturday, April 16, 2016

8 से नवरात्र क्या आप जानते हैं इससे जुड़ी इन परंपराओं के कारण


हिंदू धर्म में नवरात्र के दौरान कन्या पूजन की विशेष परंपरा है। दरअसल, इसका धार्मिक कारण ये है कि कुंवारी कन्याएं माता के समान ही पवित्र और पूजनीय होती हैं। दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं का पैर पूजन कर भोजन कराया जाता है।
माना जाता है कि हवन, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से। ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के दिल से डर दूर हो जाता है। साथ ही उसके रास्ते में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। उस पर माता की कृपा से कोई संकट नहीं आता।
ऐसे करें कन्या पूजन
नवरात्र में मुख्य रूप से दो से दस वर्ष की कन्याओं के पैरों के पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में माना गया है कि एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए। एक वर्ष से छोटी कन्याओं का पूजन, इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह प्रसाद नहीं खा सकतीं और उन्हें प्रसाद आदि के स्वाद का ज्ञान नहीं होता। पूजन के दिन कन्याओं पर जल छिड़कर पूजन कर भोजन कराना व भोजन के बाद उनके पैर छूकर यथाशक्ति दान देना चाहिए।
आयु अनुसार माना गया है कन्याओं का रूप
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है।
दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।
छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।आठ वर्ष की कन्या शाम्‍भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है।
नवरात्र में क्यों जलाई जाती है अखंड ज्योति?
नवरात्र के नौ दिन माता के सामने अखंड ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। अखंड ज्योति पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए यानी जलती रहनी चाहिए। यह अखंड ज्योति माता के प्रति हमारी अखंड आस्था का प्रतीक मानी जाती है। यह ज्योति इसलिए भी जलाई जाती है कि जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में भी छोटा का दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता रहता है। उसी प्रकार हम भी माता की आस्था का सहारा लेकर अपने जीवन के अंधकार को दूर कर सकते हैं। मान्यता के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त होता है।
कहा जाता है
दीपम घृत युतम दक्षे,तेल युत: वामत:
यानी घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर व तेल युक्त ज्योति देवी के बाई ओर रखनी चाहिए। अखंड ज्योति पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का उपयोग करें। जब अखंड ज्योति में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल गिराना हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें। यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योति बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योति पुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।
 नवरात्र में ही क्यों की जाती है तांत्रिक साधनाएं
नवरात्र को देवी आराधना का सबसे अच्छा समय माना जाता है। चैत्र और अश्विन महीने में पड़ने वाली नवरात्र का हिंदू त्योहारों में बड़ा महत्व है।अश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। इस नवरात्र को तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि इसे सिद्धि के लिए विशेष लाभदायी माना गया है।
इस नवरात्र में की गई पूजा, जप-तप साधना, यंत्र-सिद्धियां, तांत्रिक अनुष्ठान आदि पूर्ण रूप से सफल एवं प्रभावशाली होते हैं।चूंकि मां स्वयं आदि शक्ति का रूप हैं और नवरात्रों में स्वयं मूर्तिमान होकर उपस्थित रहती हैं उपासकों की उपासना का उचित फल प्रदान करती हैं। सृष्टि के पांच मुख्य तत्वों में देवी को भूमि तत्व की अधिपति माना जाता है। तंत्र-मंत्र की सारी सिद्धियां इस धरती पर मौजूद सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ी होती हैं।
नवरात्र के नौ दिनों में चूंकि चारों ओर पूजा और मंत्रों का उच्चारण होता है, इससे नकारात्मक ऊर्जा कमजोर पड़ जाती है। इन नौ दिनों में सकारात्मक ऊर्जा अपने पूरे प्रभाव में होती है। इस कारण जो भी काम किया जाता है उसमें आम दिनों की अपेक्षा बहुत जल्दी सफलता मिलती है। तंत्र-मंत्र के साथ भी यही बात लागू होती है। तंत्र की सिद्धि आम दिनों के मुकाबले बहुत आसानी से और कम समय में मिलती है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-ritual-of-navratri-5293315-PHO.html

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