महाकुंभ स्नान कब,
कहां और कैसे
देश के प्रमुख 4 धार्मिक शहरों (हरिद्वार, इलाहबाद, नासिक और
उज्जैन) में कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस साल मध्य प्रदेश के उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई तक
सिहंस्थ महाकुंभ आयोजित होगा। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं कुंभ मेले से जुड़ी
कुछ खास बातें, इतिहास व कथा।
इन 4 शहरों में लगता है कुंभ मेला
देश के इन 4 शहरों में कुंभ मेलों का आयोजन किया
जाता है- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक
और उज्जैन। इन शहरों में प्रत्येक 12 सालों में विशेष
ज्योतिषीय योग बनने पर कुंभ मेला लगता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवासुर संग्राम
के दौरान इन्हीं 4 स्थानों पर अमृत की बूँदे गिरी थीं।
इससे जुड़ी कथा इस प्रकार है-
कुंभ की कथा
एक बार देवताओं व दानवों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन
किया। मदरांचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र को मथा गया।
समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले। अंत में भगवान धन्वंतरि
अमृत का घड़ा लेकर प्रकट हुए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं और दैत्यों में उसे
पाने के लिए लड़ाई छिड़ गई। ये युद्ध लगातार 12 दिन
तक चलता रहा।
इस लड़ाई के दौरान पृथ्वी के 4 स्थानों
(प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन,
नासिक) पर कलश से अमृत की बूँदें गिरी। लड़ाई
शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर छल से देवताओं को अमृत पिला दिया।
अमृत पीकर देवताओं ने दैत्यों को मार भगाया। काल गणना के आधार पर देवताओं का एक
दिन धरती के एक साल के बराबर होता है। इस कारण हर 12 साल
में इन चारों जगहों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
कुंभ मेले का इतिहास
विद्वानों का मानना है कि कुंभ मेले की परंपरा तो बहुत पुरानी है,
लेकिन उसे व्यवस्थित रूप देने का श्रेय आदि
शंकराचार्य को जाता है। जिस तरह उन्होंने चार मुख्य तीर्थों पर चार पीठ स्थापित
किए, उसी तरह चार तीर्थ स्थानों पर कुंभ मेले में
साधुओं की भागीदारी भी सुनिश्चित की। आज भी कुंभ मेलों में शंकराचार्य मठ से
संबद्ध साधु-संत अपने शिष्यों सहित शामिल होते हैं।
महाभारत काल में होता था कुंभ
शैवपुराण की ईश्वर संहिता व आगम तंत्र से संबद्ध सांदीपनि मुनि
चरित्र स्तोत्र के अनुसार, महर्षि सांदीपनि काशी में रहते थे। एक
बार प्रभास क्षेत्र से लौटते हुए वे उज्जैन आए। उस समय यहां कुंभ मेले का समय था।
लेकिन उज्जैन में भयंकर अकाल के कारण साधु-संत बहुत परेशान थे। तब महर्षि सांदीपनि
ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, जिससे
अकाल समाप्त हो गया। भगवान शिव ने महर्षि सांदीपनि से इसी स्थान पर रहकर
विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए कहा। महर्षि सांदीपनि ने ऐसा ही किया। आज भी
उज्जैन में महर्षि सांदीपनि का आश्रम स्थित है। मान्यता है कि इसी आश्रम में भगवान
श्रीकृष्ण बलराम ने शिक्षा प्राप्त की थी।
किस योग में कहां आयोजित होता
है कुंभ
प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन
व नासिक में विशेष ज्योतिषीय योगों में कुंभ पर्व का आयोजन किया जाता है। ये
ज्योतिषीय योग कौन-कौन से हैं, इसकी जानकारी इस प्रकार है-
हरिद्वार
पद्मिनीनायके मेषे कुंभराशिगते गुरौ।
गंगाद्वारे भवेद्योगः कुंभनामा तदोत्तमम्।।
अर्थ- कुंभ राशि के गुरु में जब मेष राशि का सूर्य हो, तब हरिद्वार में कुंभ होता है।
गंगाद्वारे भवेद्योगः कुंभनामा तदोत्तमम्।।
अर्थ- कुंभ राशि के गुरु में जब मेष राशि का सूर्य हो, तब हरिद्वार में कुंभ होता है।
इलाहाबाद
यहां सूर्य के मकर और गुरु के वृषभ राशि में होने पर कुंभ मेले का
आयोजन होता है-
मकरे च दिवानाथे वृषभे च बृहस्पतौ।
कुंभयोगो भवेत् तत्र प्रयागेह्यति दुर्लभः।।
माघेवृषगते जीवे मकरे चंद्रभास्करौ।
अमावस्यां तदा योगः कुंभाख्यस्तीर्थनायके।।
अर्थ- सूर्य जब मकर राशि में हो तथा गुरु वृषभ राशि में, तब तीर्थराज प्रयाग में कुंभ पर्व का योग होता है। इस प्रकार माघ का महीना हो, अमावस्या की तिथि हो, गुरु वृष राशि पर हो तथा सूर्य-चंद्र मकर राशि पर हो, तब प्रयागराज में अत्यंत दुर्लभ कुंभ योग होता है।
मकरे च दिवानाथे वृषभे च बृहस्पतौ।
कुंभयोगो भवेत् तत्र प्रयागेह्यति दुर्लभः।।
माघेवृषगते जीवे मकरे चंद्रभास्करौ।
अमावस्यां तदा योगः कुंभाख्यस्तीर्थनायके।।
अर्थ- सूर्य जब मकर राशि में हो तथा गुरु वृषभ राशि में, तब तीर्थराज प्रयाग में कुंभ पर्व का योग होता है। इस प्रकार माघ का महीना हो, अमावस्या की तिथि हो, गुरु वृष राशि पर हो तथा सूर्य-चंद्र मकर राशि पर हो, तब प्रयागराज में अत्यंत दुर्लभ कुंभ योग होता है।
नासिक
सिंहराशिगते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ।
गोदावर्या भवेत्कुंभः पुनरावृत्तिवर्जनः।।
अर्थ- सिंह राशि के गुरु में जब सिंह राशि का सूर्य हो, तब
गोदावरी तट (नासिक) में कुंभ पर्व होता है।
उज्जैन
मेषराशि गते सूर्ये, सिंहराश्यां बृहस्पतौ।
उज्जयिन्यां भवेत्कुंभ सर्वसौख्य विवर्धनः।।
मेषराशि गते सूर्ये, सिंहराश्यां बृहस्पतौ।
कुंभयोगसविज्ञेयः भुक्तिमुक्ति प्रदायकः।।
उज्जयिन्यां भवेत्कुंभ सर्वसौख्य विवर्धनः।।
मेषराशि गते सूर्ये, सिंहराश्यां बृहस्पतौ।
कुंभयोगसविज्ञेयः भुक्तिमुक्ति प्रदायकः।।
अर्थ- सिहं
राशि के गुरु में मेष का सूर्य आने पर उज्जयिनी (उज्जैन) में कुंभ पर्व मनाया जाता
है।
सहस्त्र कार्तिके स्नानं माघे स्नान शतानि च।
वैशाखे नर्मदाकोटिः कुंभस्नानेन तत्फलम्।।
अश्वमेघ सहस्त्राणि वाजवेयशतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूम्याः कुंभस्नानेन तत्फलम्।
अश्वमेघ सहस्त्राणि वाजवेयशतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूम्याः कुंभस्नानेन तत्फलम्।
अर्थ- कुंभ
में किए गए एक स्नान का फल कार्तिक मास में किए गए हजार स्नान, माघ मास में किए गए सौ स्नान व वैशाख मास में नर्मदा में किए गए
करोड़ों स्नानों के बराबर होता है।
हजारों अश्वमेघ, सौ वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की परिक्रमा करने से जो पुण्य मिलता है, वह कुंभ में एक स्नान करने से प्राप्त हो जाता है।
हजारों अश्वमेघ, सौ वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की परिक्रमा करने से जो पुण्य मिलता है, वह कुंभ में एक स्नान करने से प्राप्त हो जाता है।
उज्जैन में लगता है सिहंस्थ
उज्जैन में लगने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ के नाम से भी जाना जाता
है, क्योंकि इस दौरान गुरु सिंह राशि में होता है।
सिंहस्थ को दुनिया का सबसे बड़ा मेला भी कहा जाता है। यह मेला एक महीने (इस बार 22
अप्रैल से 21 मई
तक) तक चलता है। सिंहस्थ पर्व के दौरान विभिन्न तिथियों पर स्नान करने की परंपरा
है। ऐसी मान्यता है कि सिंहस्थ के दौरान पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का
नाश हो जाता है। उज्जैन में चैत्र मास की पूर्णिमा से सिंहस्थ का प्रारंभ होता है,
और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान
तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन में सिंहस्थ के लिए सिंह राशि
पर बृहस्पति, मेष में सूर्य, तुला राशि का चंद्र आदि ग्रह-योग जरूरी माने जाते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. आनन्द शंकर व्यास द्वारा दी जानकारी के अनुसार, सिंहस्थ-2016 के स्नान इस
प्रकार होंगे-
1. 22 अप्रैल, शुक्रवार (पर्व का आरंभ स्नान)
2. 3 मई, मंगलवार (वरूथिनी एकादशी)
3. 6 मई, शुक्रवार (वैशाख अमावस्या)
4. 9 मई, सोमवार (अक्षय तृतीया)
5. 11 मई, बुधवार (शंकराचार्य जयंती)
6. 15 मई, रविवार (वृषभ संक्रान्ति)
1. 22 अप्रैल, शुक्रवार (पर्व का आरंभ स्नान)
2. 3 मई, मंगलवार (वरूथिनी एकादशी)
3. 6 मई, शुक्रवार (वैशाख अमावस्या)
4. 9 मई, सोमवार (अक्षय तृतीया)
5. 11 मई, बुधवार (शंकराचार्य जयंती)
6. 15 मई, रविवार (वृषभ संक्रान्ति)
7. 17 मई, मंगलवार
(मोहिनी एकादशी)
8. 19 मई, गुरुवार (प्रदोष व्रत)
9. 20 मई, शुक्रवार (नृसिंह जयंती)
10. 21 मई, शनिवार (प्रमुख शाही स्नान)
8. 19 मई, गुरुवार (प्रदोष व्रत)
9. 20 मई, शुक्रवार (नृसिंह जयंती)
10. 21 मई, शनिवार (प्रमुख शाही स्नान)
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-know-the-kumbh-mela-s-history-and-interesting-things-5215705-PHO.html
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