Thursday, January 28, 2016

सुबह जल्दी क्यों उठना चाहिए?


कहते हैं अच्छी नींद लेना अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है, फिर चाहे वो पुरूष हो या महिला, लेकिन आजकल की भागदौड भरी जिंदगी में अच्छी नींद के मायने भी बदल गए हैं, क्योंकि आजकल अधिकतर लोग सुबह देर से उठते हैं। साथ ही, रात को देरी से सोते हैं। यह हमारी परंपरा नहीं है। हमारे देश में पुराने समय से ही सुबह जल्दी उठने की परंपरा है।
ऋषि मुनि और विद्वानों के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठने का विशेष महत्व होता है। रात के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। उनके अनुसार यह समय नींद से उठने के लिए सबसे बेहतर है।
ऐसा माना जाता है जल्दी उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।जल्दी उठने पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों लाभ प्राप्त होते हैं। सुबह-सुबह का वातावरण हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। दिन में वाहनों से निकलने वाला धुआं वातावरण को प्रदूषित कर देता है। जबकि सुबह यह वायु प्रदूषण भी नहीं होता और न ही ध्वनि प्रदूषण। यह हमारे शरीर और मन दोनों को फायदा पहुंचाने वाला है।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में अद्भूत शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु अमृत के समान माना गया है। इसके अलावा यह समय पढ़ाई के लिए भी सबसे अच्छा कहा गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर व दिमाग में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। सभी धार्मिक कार्य ब्रह्म मुहूर्त में करने पर विशेष धर्म लाभ प्राप्त होता है। 24 घंटे का एक दिन और इस एक दिन में हम कई काम करते हैं।
पूरे दिन के काम के बाद रात तक सभी थकान महसूस करते हैं। इस थकान का हमारे स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए सही समय पर सोना और सही पर उठना बहुत जरूरी है। नींद से भी अधिक स्वास्थ्य लाभ मिलता है। इसके विपरित सुबह लेट उठने से कब्ज की समस्या होती है। साथ ही, तन व मन में स्फूर्ति नहीं रहती है और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मन व दिमाग एकाग्र नहीं रहता है। चेहरा पर ताजगी नहीं रहती है। इसलिए सुबह लेट नहीं उठना चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-GYVG-why-should-not-sleep-until-late-morning-5227899-NOR.html

Wednesday, January 27, 2016

नहाने से पहले खाना क्यों नहीं खाना चाहिए?


आपने अक्सर अपने घर के बुजुर्गों को यह कहते हुए सुना होगा कि नहाने से पहले खाना नहीं खाना चाहिए। हालांकि वर्तमान समय में इन बातों पर गौर नहीं किया जाता, लेकिन इस तथ्य के पीछे न सिर्फ धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार नहाने से शरीर के हर भाग को नया जीवन मिलता है।
शरीर में पिछले दिन का एकत्र सभी तरह का मैल नहाने व मंजन से साफ हो जाता है व शरीर में एक नई ताजगी व स्फूर्ति आ जाती है, जिससे स्वाभाविक रूप से भूख लगती है। उस समय किए गए भोजन का रस हमारे शरीर के लिए पुष्टिवर्धक होता है।जबकि नहाने से पहले कुछ भी खाने से हमारी जठराग्नि उसे पचाने में लग जाती है।
स्नान करने पर शरीर ठंडा हो जाता है जिससे पेट की पाचन शक्ति मंद हो जाती है। इसके कारण हमारी आंते कमजोर होती हैं, कब्ज की शिकायत रहती है व अन्य कई प्रकार के रोग हो जाते हैं। इसलिए नहाने से पहले भोजन करना वर्जित माना गया है।आवश्यक हो तो गन्ने का रस, पानी, दूध, फल व दवा नहाने से पहले लिए जा सकते हैं, क्योंकि इनमें पानी की मात्रा अधिक होती है जिससे यह जल्दी पच जाते हैं।

http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-ritual-about-eating-food-in-india-5202401-NOR.html

Monday, January 25, 2016

पूजा में कुमकुम का तिलक क्यों लगाया जाता है?


हिंदू धर्म में पूजा-पाठ से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं, जैसे पूजा के समय कलाई पर पूजा का धागा बांधना, फल चढ़ाना, तिलक लगाना आदि। बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना शुरू नहीं होती है। मान्यताओं के अनुसार, सूने मस्तक को शुभ नहीं माना जाता।पूजन के समय माथे पर अधिकतर कुमकुम का तिलक लगाया जाता है। तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। दिमाग में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। याददाश्त बढ़ती है व मानसिक विकार नहीं होते। मगर ये कम ही लोग जानते हैं कि पूजा में अधिकतर कुमकुम का तिलक ही लगाया जाता है।
इसके पीछे कारण यह है कि कुमकुम हल्दी व नींबू का मिश्रण होता है। आयुर्वेद के अनुसार कुमकुम त्वचा के शोधन के लिए सबसे बेहतरीन औषधी है। इसका तिलक लगाने से दिमाग के तंतुओं में क्षीणता नहीं आता है। इसलिए पूजा में कुमकुम का तिलक लगाया जाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-why-roli-tilak-applied-on-the-forehead-5222829-NOR.html

Saturday, January 23, 2016

ये 8 काम करने वाले होते हैं बुरे इंसान : श्रीरामचरितमानस


श्रीरामचरितमानस के एक प्रसंग में भगवान शिव ने पार्वती को 8 ऐसे कामों के बारे में बताया है, जिन्हें केवल राक्षस यानी बुरे इंसान ही करते हैं। आज हम आपको उन्हीं बुरे कामों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
चौपाई
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा।।
मानहिं मातु पता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा।।
जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी।।
अर्थ- 1. पराए धन और 2. पराई स्त्री पर मन चलाने वाले, 3. दुष्ट, 4. चोर और 5. जुआरी बहुत बढ़ गए हैं। लोग 6. माता-पिता और 7. देवताओं को नहीं मानते और 8. साधुओं से सेवा करवाते हैं। हे भवानी। जिनके ऐसे आचरण हैं, उन सब प्राणियों को राक्षस (बुरा इंसान) ही समझना चाहिए।
1. पराई स्त्री पर नजर रखने वाला
पराई स्त्री पर नजर रखना मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण है। जिसमें भी यह अवगुण होता है, वह निश्चित रूप से भ्रष्ट आचरण वाला होता है। ऐसे लोगों का पतन भी निश्चित होता है। धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जहां राक्षसों ने पराई स्त्रियों पर नजर डाली और उनका सर्वनाश हो गया। पराई स्त्री मोह का प्रतीक है, जो भी इस मोह में फंसता है, वह धन, संपत्ति के साथ स्वयं भी नष्ट हो जाता है।विज्ञाप
Skip t2. चोरी  तथ  3. जुआ
चोरी करने व जुआ खेलने वाला मनुष्य भी बुरा ही होता है। चोरी यानी बिना किसी परिश्रम के दूसरे के धन पर अधिकार कर लेना तथा जुआ यानी छलपूर्वक धन अर्जित करना, ये दोनों ही अवगुण राक्षसी प्रवृत्ति के सूचक माने गए हैं। ये वो अवगुण हैं, जिनकी वजह से न सिर्फ किसी व्यक्ति का नाश होता है बल्कि एक दिन ये परिवार, समाज व राज्य के पतन का कारण भी बनते हैं। इसलिए इन दो अवगुणों को तुरंत ही त्याग देना चाहिए।
4. दूसरे के धन पर नजर रखने वाला
जो लोग अपने धन से संतुष्ट नहीं होते, वे हमेशा दूसरों के धन पर नजर रखते हैं। ऐसे लोगों की प्रवृत्ति राक्षस के समान होती है क्योंकि राक्षस भी स्वयं मेहनत नहीं करते और दूसरे लोगों के धन पर अपना अधिकार सिद्ध कर या बलपूर्वक छिनकर उसका उपभोग करते हैं। इसलिए दूसरों के धन पर नजर न रखते हुए स्वयं के परिश्रम द्वारा प्राप्त धन से ही संतुष्ट होना चाहिए।
5. भगवान को न मानने वाला
लोग भगवान को नहीं मानते, उन्हें नास्तिक कहते हैं। राक्षस यानी बुरे लोग भी ऐसे ही होते हैं। वे स्वयं को ही सबसे अधिक शक्तिशाली मानते हैं और घमंड में चूर होकर बुरे काम करते हैं। मूल रूप से देखा जाए तो भगवान किसी एक मूर्ति या तस्वीर में निहित नहीं हैं, वह तो एक शक्ति है जो संसार पर नियंत्रण रखती है और जो मनुष्य इस शक्ति को मानने से इंकार करता है, किसी न किसी रूप में उसे नुकसान उठाना ही पड़ता है।
6. साधुओं से सेवा करवाने वाला
हिंदू धर्म में साधु-संतों को बहुत ही आदर दिया जाता है। इसके विपरीत जो लोग साधु-संतों का अपमान करते हैं व उनसे सेवा करवाते हैं, वे भी राक्षस यानी बुरे माने गए हैं। साधु-संत सभी को समभाव से देखते हैं और ईश्वर आराधना में लगे रहते हैं। बुरे लोगों की आदत होती है कि वे सीधे-सादे लोगों को परेशान करते रहते हैं। ऐसे लोग भी अपने जीवन में कभी सुखी नहीं रह पाते।
7. माता-पिता की बात न मानने वाला
सभी धर्मों में माता-पिता को प्रथम पूजनीय बताया गया है। माता-पिता अपनी संतान के पालन-पोषण के लिए अनेक त्याग करते हैं और बड़ी होने पर जब संतान उनसे अनुचित व्यवहार करती है तो उनके मन को बहुत पीड़ा होती है। जो मनुष्य अपने माता-पिता की बात नहीं मानता तथा उनका अपमान करता है, वह भी बुरा होता है। ऐसे लोग बुजुर्गों से बात करते समय भी मान-मर्यादा, उचित-अनुचित आदि का ध्यान नहीं रखते।
8. दुष्ट
जो मनुष्य दूसरों को परेशानी में डालकर या दु:ख पहुंचा कर प्रसन्न होते हैं, उसे दुष्ट कहते हैं। राक्षसों की प्रवृत्ति भी ऐसी ही होती है। उन्हें दूसरों को कष्ट में देखकर मजा आता है और वे स्वयं भी लोगों को दु:ख पहुंचाते हैं। श्रीरामचरितमानस के अनुसार, दुष्ट मनुष्य में भी राक्षसी प्रवृत्ति अधिक होती है। इसलिए ऐसे लोगों को भी राक्षस ही समझना चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-ramcharitmanas-these-are-the-bad-person-who-did-this-8-works-5227782-PHO.html?

Friday, January 22, 2016

भगवान की पूजा प्रतिदिन करने से मिल सकती हैं ये 5 चीजें


जो लोग रोज पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान की पूजा करते है, उन्हें जीवन में हर सुख और उन्नति मिलती है। पुराणों के अनुसार, रोज भगवान की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को ये 5 चीजें जरूर मिलती हैं-
1. सफलता
जो लोग जीवन में सफलता और उन्नति चाहते हैं। उन्हें मेहनत के साथ-साथ भगवान की ध्यान और पूजा भी करनी चाहिए। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान की भक्ति करना है, निश्चित ही उसे अपने सारे कामों में सफलता और यश मिलता है।
2. सम्मान
जिस किसी को भी घर-परिवार और समाज में सम्मान पाने की इच्छा हो, उसे जरूर भगवान की पूजा-अर्चना में अपना मन लगाना चाहिए। जो मनुष्य पाप-कर्म छोड़ कर, पवित्र भावनाओं से भगवान की पूजा करते हैं, उस पर भगवान हमेशा प्रसन्न रहते हैं और उसे सुख-शांति और सम्मान की प्राप्ति होती है।
3. पापों से मुक्ति
कईं मनुष्य अनजाने में या जान-बूझ कर कुछ ऐसे काम कर जाते हैं, जिनकी वजह से उसे पाप का भागी बनना पड़ता है। ऐसे में अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को पूरी श्रद्धा के साथ पवित्र जल से स्नान करके भगवान की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सुख की प्राप्ती होती है।
4. मोक्ष
जिन लोगों को मोक्ष पाने की इच्छा हो, उन्हें जीवन में अपनी सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के साथ ही रोज भगवान की पूजा और उनका ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य जीवन खुशहाल बनता है और धरती पर ही स्वर्ग के समान सभी सुख मिलते हैं।
5. पवित्रता
जो लोग रोज सुबह जल्दी उठ कर, स्नान आदि करके भगवान का ध्यान और पूजा करते हैं, उनकी सभी भूल और गलतियां खत्म हो जाती हैं। भगवान की आराधना करने से मनुष्य का मन साफ हो जाता है और उसे हर काम में सफलता मिलती है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-if-you-worship-god-daily-than-you-can-get-these-5-things-in-hindi-5227793-PHO.html

Thursday, January 21, 2016

घर में है कृष्ण की मूर्ति तो जरूर साथ रखें ये 5 चीजें


भगवान कृष्ण की मूर्ति लगभग सभी के घरों में होती है, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि कृष्ण मूर्ति के साथ और भी कुछ चीजें रखना बहुत ही जरुरी होता है। आज हम आपको ऐसी 5 वस्तुओं के बारे में बताने रहे हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण को बहुत ही प्रिय हैं और कृष्ण प्रतिमा के साथ इन 5 को भी रखने पर भगवान की विशेष कृपा पाई जा सकती है।
जानें कौन सी हैं वे 5 खास चीजें-
1. बांसुरी
बांसुरी भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय वस्तुओं में से एक है। बांसुरी को घर में रखना वास्तु की नजर से भी बहुत शुभ माना जाता है। बांसुरी को भगवान कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर के साथ जरुर रखना चाहिए, ऐसा करने से घर में सुख-शांति का वातावरण बना रहता है।
2. गाय
गाय और भगवान कृष्ण का गहरा संबंध है। गाय भगवान कृष्ण को प्रिय होने के साथ-साथ ही हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र मानी जाती है। गाय को भोजन कराने, गाय का दान करने और भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ गाय रखना बहुत ही शुभ माना जाता है। अगर गाय रखना संभव न हो तो चांदी की गाय भी रख सकते हैं।
3. तुलसी की माला
तुलसी हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण वस्तुओं में से एक है। घर में तुसली का पौधा लगाना वैसे ही बहुत अच्छा माना जाता है लेकिन भगवान कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर के साथ तो तुलसी या तुलसी की माला होना अनिर्वाय होता है। ऐसा करने से घर के कई वास्तु दोष खत्म हो जाते हैं और भगवान की कृपा बनी रहती है।
4. मोर पंख
मोर पंख भगवान कृष्ण के श्रृंगार की सबसे खास वस्तु है। मोर पंख के बिना भगवान कृष्ण का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। इसलिए, भगवान कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर के साथ मोर पंख जरुर रखें। यदि असली मोर पंख रखना संभव न हो तो मोर पंख वाला मुकुट भी रखा जा सकता है।
5. माखन-मिश्री
किसी भी भगवान की पूजा में सबसे जरुरी होता है भोग। माखन-मिश्री भगवान कृष्ण का सबसे प्रिय भोग है। बिना इसके भगवान कृष्ण की पूजा कभी पूरी नहीं होती। इसलिए ध्यान रखें, भगवान कृष्ण को रोज माखन-मिश्री का भोज जरुर लगाएं।                                                                          http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-if-there-is-statue-of-krishna-in-house-than-definitely-carry-these-5-things-with-5226840.html

Wednesday, January 20, 2016

चीरहरण से द्रौपदी की रक्षा की थी दुर्वासा के वरदान ने : शिवपुराण


जब युधिष्ठिर जुए में अपनी पत्नी द्रौपदी को हार गए, तब द्रौपदी पर दुर्योधन का अधिकार हो गया था। द्रौपदी का अपमान करने के लिए दुर्योधन ने उसे कौरवों की सभा में बुलाया। दुःशासन द्वारा द्रौपदी का चीरहरण करके का प्रयास किया गया, लेकिन द्रौपदी के वस्त्र को बढ़ाकर भगवान ने उसकी रक्षा की थी। द्रौपदी को संकट के समय उसके अन्नत (कभी खत्म न होने वाले) हो जाने का वरदान ऋषि दुर्वासा ने दिया था।
ये है वरदान की पूरी कथा
शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के अवतार ऋषि दुर्वासा एक बार स्नान करने के लिए नदी के तट पर गए थे। नदी का बहाव बहुत तेज होने के कारण ऋषि दुर्वासा के कपड़े नदी में बह गए। ऋषि दुर्वासा से कुछ दूरी पर द्रौपदी भी स्नान कर रही थी। ऋषि दुर्वासा की मदद करने के लिए द्रौपदी ने अपनी वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर ऋषि को दे दिया था। इस बात से ऋषि द्रौपदी पर बहुत प्रसन्न हुए और संकट के समय उसके वस्त्र अन्नत हो जाने और उसकी रक्षा का वरदान दिया था। इसी वरदान के कारण कौरव सभा में दुःशासन द्वारा द्रौपदी की साड़ी खिंचने पर वह बढ़ती ही गई और उसके सम्मान की रक्षा हुई थी।
ऋषि दुर्वासा ने ली थी श्रीराम की परीक्षा
शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के अवतार दुर्वासा ने भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम की वचनबद्धता की परीक्षा ली थी। एक बार काल ने ऋषि का रूप धारण करके श्रीराम के साथ शर्त लगाई थी कि मेरे साथ बात करते समय कोई भी श्रीराम के पास न आए, जो भी इस बात का पालन नहीं करेगा श्रीराम तुरंत ही उसका त्याग कर देंगे।श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए ऋषि दुर्वासा ने हठपूर्वक लक्ष्मण को श्रीराम के पास भेजा। ऐसा होने पर श्रीराम ने तुरंत ही लक्ष्मण का त्याग कर दिया था।
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कौन है ऋषि दुर्वासा
ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के अवतार हैं। भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया की तपस्या से खुश होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भगवान के ऐसा कहने पर अत्रि और अनुसूया ने तीनों देवों को अपने पुत्रों के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा। इसी वरदान के फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, विष्णु का अंश से दत्तात्रेय और शिव के अंश से दुर्वासा उत्पन्न् हुए। ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के रुद्र रूप से उत्पन्न हुए थे, इसलिए वे अधिक क्रोधी स्वभाव के थे। भगवान शिव के अवतार ऋषि दुर्वासा का वर्णन कई पुराणों और ग्रंथों में पाया जाता है।

Tuesday, January 19, 2016

कभी संकोच नहीं करना चाहिए, इन 7 को लेने में: मनु स्मृति


मनुस्मृति के एक श्लोक में बताया गया है कि किन 7 चीजों को बिना संकोच किए लेने की कोशिश करना चाहिए। ये श्लोक तथा इससे जुड़ा लाइफ मैनेजमेंट इस प्रकार है-
श्लोक

स्त्रियो रत्नान्यथो विद्या धर्मः शौचं सुभाषितम्।
विविधानि च शिल्पानि समादेयानि सर्वतः।।

अर्थ- जहां कहीं या जिस किसी से (अच्छे या बुरे व्यक्ति, अच्छी या बुरी जगह आदि पर ध्यान दिए बिना) 1. सुंदर स्त्री, 2. रत्न, 3. विद्या, 4. धर्म, 5. पवित्रता, 6. उपदेश तथा 7. भिन्न-भिन्न प्रकार के शिल्प मिलते हों, उन्हें बिना किसी संकोच से प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
1. रत्न
रत्न बहुत प्रकार के होते हैं जैसे- मोती, पन्ना, माणिक, मूंगा, पुखराज आदि। इनकी कीमत बहुत अधिक होती है। हीरा भी एक बहुमूल्य रत्न है, लेकिन यह कोयले की खान में मिलता है। मोती व मूंगा समुद्र की गहराइयों से मिलते हैं। देखा जाए तो कोयले की खान व समुद्र की तलहटी को साफ-स्वच्छ स्थान नहीं कहा जा सकता, लेकिन फिर भी यहां से प्राप्त होने वाले रत्न बेशकीमती होते हैं और हम इन्हें धारण भी करते हैं। इसलिए मनु स्मृति में कहा गया है कि रत्न किसी भी स्थान से मिले, उसे लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
2. विद्या
विद्या यानी ज्ञान जहां से भी, जिस किसी भी व्यक्ति से, चाहे वो अच्छा हो या बुरा लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। ज्ञान से हम अपने जीवन को नई दिशा दे सकते हैं। ज्ञान प्राप्त होने पर हमारे लिए कुछ भी पाना ज्यादा कठिन नहीं रह जाता, लेकिन इसके लिए जरूरी है उस ज्ञान को अपने चरित्र में उतारना। ज्ञान सिर्फ सुनने तक ही सीमित नहीं है, उसे अपने आचार-विचार, व्यवहार व जीवन में उतारने पर ही हम अपने लक्ष्य को आसानी से पा सकते हैं।
3. धर्म
धर्म एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है धारण करना। धर्म का अर्थ बहुत विशाल है, इसे कुछ शब्दों में स्पष्ट करना मुश्किल है। धर्म हमें अपना काम जिम्मेदारी से करना सिखाता है। दूसरों की भलाई करना, किसी भी परिस्थिति में अपने चरित्र को बेदाग बनाए रखना, पूरी ईमानदारी से अपने परिवार का पालन-पोषण करना व हमेशा सच बोलना भी धर्म का ही एक रूप है। जहां कहीं से भी हमें सादा जीवन-उच्च विचार जैसे सिद्धांत मिले, उसे ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए। यही धर्म का सार है।
4. पवित्रता
पवित्रता का संबंध सिर्फ शरीर से ही नहीं बल्कि आचार-विचार, व्यवहार व सोच से भी है। जब तक हमारा व्यवहार व सोच पवित्र नहीं होंगे, हम जीवन में उन्नति नहीं कर सकते। इसलिए यदि हमें कोई कठिन लक्ष्य प्राप्त करना है तो हमें अपने विचार शुद्ध रखने होंगे। साथ ही, चरित्र यानी व्यवहार भी साफ रखना होगा। जब हमारा व्यवहार व मानसिकता पवित्र होगी, तभी हम बिना झिझक अपना काम जिम्मेदारी से कर पाएंगे और अपना लक्ष्य पाने में सफल भी होंगे।
5. उपदेश
यदि आप कहीं से गुजर रहे हों और कोई संत या महात्मा उपदेश दे रहे हों तो थोड़ी देर वहां रुकने में संकोच नहीं करना चाहिए। किसी संत का उपदेश आपको नया रास्ता दिखा सकता है। संतों के उपदेश में ही मन की शांति, लक्ष्य की प्राप्ति, परिवार की संतुष्टि व समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के अहम सूत्र आपको मिल सकते हैं। जब आप संतों व महात्माओं के उपदेशों को अपने जीवन में उतारेंगे तो आपकी अनेक परेशानियां अपने आप ही समाप्त हो जाएंगी।
6. भिन्न-भिन्न प्रकार के शिल्प
शिल्प से यहां अभिप्राय कला से है। कला सिखाने वाले व्यक्ति के चरित्र या स्थान के अच्छा-बुरा होने पर ध्यान दिए बिना ही पूरी निष्ठा से कला सीखनी चाहिए। यही कला आगे जाकर आपके जीवन की आजीविका बन सकती है या आपको प्रसिद्धि दिला सकती है। जब आपके किसी कला विशेष का ज्ञान होगा तो बिना किसी परेशानी से अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकते हैं और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी भी पूरी कर सकते हैं।
7. सुंदर स्त्री
यहां सुंदरता का संबंध सिर्फ चेहरे से नहीं बल्कि चरित्र से भी है। जिस स्त्री का चरित्र साफ-स्वच्छ है, वह अपने कुल के साथ-साथ अपने पति के कुल का भी मान बढ़ाती है। चरित्रवान स्त्री मिलने से व्यक्ति के जीवन की अनेक परेशानियां अपने आप ही समाप्त हो जाती हैं। ऐसी स्त्री संकट की घड़ी से अपने पति व परिवार को बचाने की शक्ति रखती है। यदि चरित्रवान स्त्री किसी नीच कुल से भी संबंध रखती हो, तो भी उसे पत्नी बनाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-manu-smriti-should-not-hesitate-in-taking-these-7-5225037-PHO.html

Monday, January 18, 2016

श्रीराम ने लक्ष्मण को बताया है कि-दूसरों की संपत्ति देखकर नहीं सोचना ऐसी बातें


ग्रंथों में पाप और पुण्य को लेकर कई नियम बताए गए हैं। जो काम करने योग्य नहीं है, वे ही पाप है। श्रीरामचरित मानस के किष्किंधा कांड के एक प्रसंग में श्रीराम ने लक्ष्मण को बताया है कि-

गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा।।
चक्रबाक मन दुख निसि पेखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी।।

इन चौपाइयों का अर्थ यह है कि भौंरों की अनूठी गूंज सुनाई दे रही है तथा कई प्रकार के सुंदर पक्षी कलरव कर रहे हैं। रात देखकर चकवा वैसे ही दुखी है, जैसे दूसरे की संपत्ति देखकर कोई बुरा व्यक्ति दुखी होता है। दूसरे की संपत्ति को देखकर बुरे व्यक्ति को जैसा लगता है, वह एक तरह का पाप है।
कई बार लोग सोचते हैं कि जो कुछ दूसरों के पास है, वह हमारे पास भी होना चाहिए। इसमें बुराई नहीं है, लेकिन बुराई उसे पाने के लिए किए गए अनुचित प्रयास में है। जो मिला है, उसमें संतोष करना चाहिए, जो दूसरे को मिला है, उसमें प्रसन्न होना चाहिए। जब हमारी सोच में ईर्ष्या और लालच आ जाता है तो दूसरों की चीज छीनने की वृत्ति जागती है जो कि पाप है। इससे बचना चाहिए।
पाप के संबंध में श्रीराम कहते हैं कि

चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ संकरद्रोही।।
सरदातप निसि ससि अपहरई। संत दरस जिमि पातक टरई।।

इन चौपाइयों का अर्थ यह है कि प्यास के कारण पपीहा उसी तरह व्याकुल है, जैसे शंकरजी का द्रोही दुखी रहता है। सुख प्राप्त करने के लिए जो खीज, चिढ़, जो बेचैनी प्राप्त होती है, वह भी एक तरह का पाप है। अंत में शरद ऋतु के चंद्रमा की शीतलता को संतों से जोड़ते हुए कहते हैं,‘शरद-ऋतु के ताप को चंद्रमा हर लेता है, जैसे संतों के दर्शन से पाप दूर हो जाते हैं। संत एक ऐसा नजरिया देते हैं, जिससे हम जान जाते हैं कि पाप क्या है और पुण्य क्या है। इसलिए यह गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए कि संत के पास या तीर्थ में जाने से पाप मिट जाएंगे।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-SEHE-we-should-remember-these-things-about-happy-life-5224304-PHO.html