Wednesday, November 30, 2016

ये 7 आदतें तुरंत छोड़ दें भगवान श्रीराम की बताई , वरना होंगे कई नुकसान

भगवान राम और माता सीता के जीवन पर कई ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से एक है आनन्द रामायण। आनन्द रामायण के लेखक श्रीरामलग्न पाण्डेय हैं। इसकी रचना वाल्मीकि रामायण के आधार पर की गई थी। आनन्द रामायण में कुल 9 काण्ड हैं, जिनमें भगवान राम से जन्म से लेकर स्वलोकगमन तक की कथाएं बताई गई हैं।

इस ग्रंथ में खुद भगवान राम ने 7 ऐसी बातें बताई गई हैं, जो की मनुष्य के सबसे बड़े अवगुण होते हैं। आज दशहरे के शुभ दिन पर हर किसी को अपने अंदर की इन 7 बुराइयों का अंत करके, एक नए जीवन की शुरुआत करना चाहिए।

श्लोक-

निद्रालस्यं मघपानं धूतं वाराड्गनारतिः।
अतिक्रीडातिमृगया सप्त दोषा नृपस्य च।।

1. देर  तक सोना

देर तक सोना आलस की निशानी होती है। आलसी मनुष्य घर के प्रति अपनी जिम्मेदारियां कभी पूरी नहीं कर सकता। देर तक सोने वाला आलसी के साथ-साथ कामचोर भी बनता जाता है। ऐसे मनुष्य को हर काम को टालने की आदत लग जाती है। साथ ही देर तक सोना कई बीमारियों का भी कारण बन सकता है। इसलिए,  देर तक सोने की आदत से बचना चाहिए।

2. आलस्य

आलस मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। आलसी व्यक्ति जीवन में किसी भी अवसर का लाभ नहीं लेता। आलस की वजह से मनुष्य अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं करता और सबकी नजरों में बुराई का पात्र बनता जाता है। ना तो वह अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहता हैना आपने कामों के प्रति। आलस्य की आदत को जितनी जल्दी हो सके छोड़ देना चाहिए।

3. दूसरी स्त्री से प्रेम करना

जो मनुष्य अपनी स्त्री को छोड़कर दूसरी स्त्रियों पर ज्यादा ध्यान देता है, हर समय उनके आगे-पीछे घूमता रहता है, वह दुष्ट माना जाता है ऐसा मनुष्य किसी भी समय स्त्री के साथ बुरा व्यवहार कर जाता है। ऐसे व्यक्ति के मन में बुरी भावनाएं उत्पन्न होती रहती हैं। वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद कर जा सकता है और कई बार तो अपराधी तक बन जाता है। साथ ही ऐसे मनुष्य के गृहस्थ जीवन में भी अविश्वास और तनाव बना रहता है। यह आदत मनुष्य के सबसे बड़े दोषों में से एक है, इससे बचना चाहिए।

4. शराब पीना

नशा करने की या शराब पीने की आदत मनुष्य का सबसे बड़ा दोष मानी जाती है। नशे में व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं रहता और कई बार वह ऐसे काम भी कर देता हैजो उसे नहीं करना चाहिए। नशे में की गई गलतियों की सजा न कि सिर्फ उस व्यक्ति को बल्कि उसके परिवार वालों को भी भुगतना पड़ती है। नशा करने वाला मनुष्य अपने मान-सम्मान के साथ-साथ धन-सम्पत्ति का भी नाश कर लेता है। इस दोष से हमेशा दूर रहना चाहिए।

5. जुआ

जुआ मनुष्य की सबसे बुरी आदतों में से एक माना जाता है। जुआ खेलने वाला जब इसका आदी हो जाता हैतब वह जुए के आलावा और किसी चीज के बारे में नहीं सोच पाता। वह लालची हो जाता है और कई बार वह कर्ज में भी डूब जाता है। जुआरी खुद के साथ-साथ अपने परिवार की बर्बादी का कारण भी बनता है। जुए की आदत किसी भी मनुष्य को बरबाद कर सकती हैइससे दूर रहना चाहिए।

6. शिकार करना

शिकार करना या जीव हत्या करना। कई लोगों को शिकार करने का शौक होता है। शिकार करने को लंबे समय से स्टेटस सिंबल माना गया है और जो लोग शिकार नहीं करते है वह भी अनजाने में कई बार निर्दोष जीवों की हत्या कर जाते हैं। जीव हत्या बहुत बड़ा पाप माना जाता है। ऐसा करने से मनुष्य को इसके बुरे परिणाम किसी न किसी रूप में झेलना ही पड़ते हैं। इसलिए, हर किसी को शिकार करने की आदत छोड़ देना चाहिए।

7. ज्यादा खेल-कूद करना

खेलना-कूदना कई लोगों का शौक होता है,  लेकिन शौक कब आदत बन जाए  पता नहीं चलता। जिस मनुष्य को खेल-कूद करने और अपना समय व्यर्थ ही बरबाद करने की आदत लग जाती है,  वह हर समय यहीं काम करता रहता है। ऐसे मनुष्य का मन अपने कामों और जिम्मेदारियों से हट कर इसी ओर केन्द्रित हो जाता है। जिसकी वजह से उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस आदत को छोड़ देने में ही समझदारी होती है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-7-bad-habits-according-to-lord-ram-news-hindi-5469529-PHO.html

Monday, November 28, 2016

आपके अपमान का कारण बन सकते हैं ये 5 काम, भूल कर भी न करें

जीवन में मान-सम्मान का बहुत महत्व है। यह भी कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का घर-परिवार, समाज आदि में कोई मान-सम्मान नहीं होता उसे जीते-जी मरे हुए के समान समझना चाहिए। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जब मान-सम्मान की रक्षा के लिए लोगों ने अपने प्राण भी गंवा दिए।

इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें उनके बुरे कामों के कारण जीवन में कभी न कभी अपयश यानी अपमान का सामना करना पड़ता है। गरुड़ पुराण में कुछ ऐसे कामों के बारे में बताया भी गया है, जिसके कारण व्यक्ति को अपमानित होना पड़ता है। आज हम आपको उन्हीं कामों के बारे में बता रहे हैं। गरुण पुराण के अनुसार वो 5 काम इस प्रकार हैं-

श्लोक

दाता दरिद्र: कृपणोर्थयुक्त: पुत्रोविधेय: कुजनस्य सेवा।
परापकारेषु नरस्य मृत्यु: प्रजायते दुश्चरितानि पञ्च।।

अर्थात्- 1. दरिद्र होकर दाता होना, 2. धनवान होने पर भी कंजूस होना, 3. पुत्र का आज्ञाकारी न होना, 4. दुष्ट लोगों की सेवा करना तथा 5. किसी का अहित करते हुए मृत्यु होना। इन 5 कामों से अपमान ही मिलता है।

1. दरिद्र होकर दाता होना

जब कोई गरीब व्यक्ति अपनी हैसियत से अधिक दान देता है तो उसे व उसके परिवार को धन से संबंधित अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि ऐसा वह बार-बार करता है तो कई बार स्थिति बहुत ही कठिन हो जाती है। ऐसा कुछ लोग दूसरों को दिखाने के लिए भी करते हैं, लेकिन इस दिखावे में वह यह भूल जाते हैं कि इसके कारण उसके परिवार को परेशानी हो सकती है। इसलिए दान देते समय अपनी आर्थिक स्थिति जरूर देख लेना चाहिए, नहीं तो आगे जाकर अपमान का सामना करना पड़ सकता है।

2. धनवान होने पर भी कंजूस होना

अगर आपके पास पर्याप्त धन है और फिर भी आप कंजूस हैं तो इसके कारण भी आपको अपमानित होना पड़ सकता है। सोच-समझकर पैसा खर्च करना अच्छी बात है, लेकिन जब ये जरूरत से ज्यादा हो जाता है तो आप कंजूस की श्रेणी में आ जाते हैं। जिस जगह जितना खर्च करना जरूरी है, उतना तो करना ही चाहिए। अगर आप वहां से भी पैसा बचाने की कोशिश करेंगे तो लोग आपको कंजूस ही समझेंगे। कंजूस लोगों को अपनी इस आदत के कारण कई बार अपमान का सामना करना पड़ता है। इसलिए पैसों का सही उपयोग करें, लेकिन कंजूस न बनें।

3. पुत्र का आज्ञाकारी न होना

जिस व्यक्ति का पुत्र उसके कहने में नहीं होता, उसे भी परिवार, समाज के सामने अपमानित होना पड़ता है। पुत्र आज्ञाकारी नहीं होगा तो वह अपनी मनमानी करेगा। कई बार ऐसे पुत्र कुछ ऐसा काम कर देते हैं, जिसके कारण न सिर्फ पिता को बल्कि पूरे परिवार व कुटुंब को ही अपमान झेलना पड़ता है। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां पुत्र के कारण पिता को अपमानित होना पड़ा जैसे- दुर्योधन के कारण धृतराष्ट्र का राजपाठ ही नहीं बल्कि पूरे परिवार का ही नाश हो गया। इसलिए कहते हैं कि पुत्र आज्ञाकारी हो तो इससे बड़ा सुख दुनिया में और कोई नहीं है। और यदि पुत्र अपने पिता की बात नहीं मानता तो इससे बड़ा कोई दुख नहीं है।

4. दुष्ट लोगों की सेवा करना

जो लोग दुष्ट यानी बुरे काम करने वाले लोगों के साथ रहते हैं व उनकी सेवा करते हैं अर्थात उनकी बात मानते हैं, ऐसे लोगों को भी अपने जीवन में कभी न कभी अपमानित जरूर होना पड़ता है। जो लोग बुरे काम करते हैं, वे हमेशा अपने निजी स्वार्थ के बारे में सोचते हैं। जरूरत पड़ने पर वह अपने साथी को भी बलि का बकरा बना सकते हैं। जिस दिन इन लोगों की सच्चाई सामने आती हैं इनके परिवार वालों की भी शर्मिंदा होना पड़ता है। उनके साथ-साथ ऐसे लोगों के साथ रहने वाले लोगों भी अपमानित होना पड़ता है। इसलिए बुरे काम करने वाले लोगों से दूर रहने में भलाई है।

5. किसी का अहित करते हुए मृत्यु होना

अगर किसी का नुकसान करते हुए आपकी मौत हो जाती है तो ये भी अपमान का कारण है। हालांकि मृत्यु के बाद मान-अपमान का कोई महत्व नहीं रह जाता, लेकिन आपकी सालों से कमाई इज्जत पर इसका असर जरूर पड़ता है। आपके परिवार व आने वाली पीढ़ियों को भी आपके द्वारा किए गए इस काम के कारण शर्मिंदा होना पड़ सकता है। इसलिए कभी भी किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए, यहां तक कि सोचना भी नहीं चाहिए।

Saturday, November 26, 2016

क्‍या आप जानते हैं शनिदेव को क्‍यों चढ़ाया जाता है तेल?

ग्रहों में शनिदेव को कर्मों का फल देना वाला ग्रह माना गया है। शनिदेव एकमात्र ऐसे देव हैं जिनकी पूजा लोग डर की वजह से करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है शनि देव न्‍याय के देवता हैं जो इंसान को उसके कर्म के हिसाब से फल देते हैं।
अकसर देखा गया है कि शनिवार के दिन शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है और सरसों के तेल का ही दीपक भी जलाया जाता है। तेल और शनि के बीच क्‍या संबंध है? ऐसा क्‍यों है कि शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता है? शनिदेव को तेल चढ़ाने के पीछे दो पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। 

आइए जानें शनिदेव को तेल चढ़ाने का कारण और इसकी कथा।।।

पहली कथा का संबंध है रावण
शनिदेव को तेल चढ़ाने के लिए यह पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। माना जाता है कि रावण अपने अहंकार में चूर था और उसने अपने बल से सभी ग्रहों को बंदी बना लिया था। शनिदेव को भी उसने बंदीग्रह में उलटा लटका दिया था। उसी समय हनुमानजी प्रभु राम के दूत बनकर लंका गए हुए थे। रावण ने अहंकार में आकर हनुमाजी की पूंछ में आग लगवा दी थी।

इसी बात से क्रोधित होकर हनुमानजी ने पूरी लंका जला दी थी लंका जल गई और सारे ग्रह आजाद हो गए लेकिन उल्‍टा लटका होने के कारण शनि के शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी और वह दर्द से कराह रहे थे। शनि के दर्द को शांत करने के लिए हुनमानजी ने उनके शरीर पर तेल से मालिश की थी और शनि को दर्द से मुक्‍त किया था। उसी समय शनि ने कहा था कि जो भी व्‍यक्ति श्रद्धा भक्ति से मुझ पर तेल चढ़ाएगा उसे सारी समस्‍याओं से मुक्ति मिलेगी। तभी से शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई थी।

दूसरी कथा के अनुसार शनिदेव और हनुमानजी में हुआ था युद्ध
दूसरी कथा के अनुसार एक बार शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था। लेकिन उस काल में भगवान हनुमान के बल और पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। जब शनि देव को भगवान हनुमान के बारे में पता चला तो वह भगवान हनुमान से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। जब भगवान शनि हनुमानजी के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान हनुमान एक शांत स्थान पर अपने स्वामी श्रीराम की भक्ति में लीन बैठे है।
शनिदेव ने उन्हें देखते ही युद्ध के लिए ललकारा। जब भगवान हनुमान ने शनिदेव की युद्ध की ललकार सुनी तो वह शनिदेव को समझाने पहुंचे। लेकिन शनिदेव ने एक बात न मानी और युद्ध के लिए अड़ गए। इसके बाद भगवान हनुमान और शनिदेव के बीच घमासान युद्ध हुआ। युद्ध में शनिदेव भगवान हनुमान से बुरी तरह हारकर घायल हो गए, जिसके कारण उनके शरीर में पीड़ा होने लगी। इसके बाद भगवान ने शनिदेव को तेल लगाने के लिए दिया, जिससे उनका पूरा दर्द गायब हो गया। इसी कारण शनिदेव ने कहा कि जो मनुष्य मुझे सच्चे मन से तेल चढ़ाएगा। मैं उसकी सभी पीड़ा हर लूंगा और सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगा।

इसी कारण तब से शनिदेव को तेल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई और शनिवार का दिन शनिदेव का दिन होता है और इस दिन शनिदेव पर तेल चढ़ाने से जल्द आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
http://aajtak.intoday.in/story/do-you-know-the-reason-behind-the-oil-pouring-on-lord-shani-1-855582.html

Thursday, November 24, 2016

शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाते हैं?

शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाते हैं?
शनिवार शनिदेव की आराधना का दिन है। इस दिन शनिदेव के अशुभ फल को शांत करने व शुभ फल को बनाए रखने के लिए विभिन्न पूजन आदि काम किए जाते हैं। साथ ही, इस दिन के लिए कई नियम भी बनाए गए हैं जिससे शनिदेव का बुरा प्रभाव हम पर न पड़े। इन्हीं नियमों में से एक है कि शनिवार के दिन घर में तेल खरीदकर न लाना। शनि को न्यायधिश माना गया है। इसी वजह से यह काफी कठोर ग्रह है। इसकी क्रूरता से सभी भलीभांति परिचित हैं। इसी वजह से सभी का प्रयत्न रहता है कि शनि देव किसी भी तरह से रुष्ट ना हो। शनि गलत काम करने वालों को माफ नहीं करते। जिसका जैसा काम होगा उसे शनि वैसा ही फल प्रदान करता है।

ज्योतिष के अनुसार शनिवार को घर में तेल लेकर नहीं आना चाहिए, क्योंकि तेल शनि को अतिप्रिय है और शनिवार को तेल का दान किया जाना चाहिए। इस दिन तेल घर लेकर आने से शनि का बुरा प्रभाव हम पर पड़ता है। यदि घर के किसी सदस्य पर शनि की अशुभ दृष्टि हो तो उसके लिए यह और भी अधिक बुरा फल देने वाला सिद्ध होगा। इन बुरे प्रभावों से बचने के लिए शनिवार के दिन घर में तेल लेकर न आए, बल्कि तेल का दान करें और शनि देव को तेल अर्पित करें।

सूर्य पुत्र शनि काले क्यों हैं?
सभी देवी-देवताओं में सूर्य का रूप परम तेजस्वी है। सूर्य की पूजा करने से भक्तों का रूप भी उनके जैसा ही तेजस्वी और गौरा हो जाता है। सूर्य देव सभी को तेज प्रदान करते हैं, लेकिन  उनके पुत्र शनि का रूप श्याम वर्ण बताया गया है। सूर्य पुत्र होने के बाद भी शनि का रंग काला है, इस संबंध में शास्त्रों में कथा बताई गई है। कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। सूर्य का रूप परम तेजस्वी था, जिसे देख पाना सामान्य आंखों के लिए संभव नहीं था। इसी वजह से संज्ञा उनके तेज का सामना नहीं कर पाती थी। कुछ समय बाद देवी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ। यह तीन संतान मनु, यम और यमुना के नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में लगा दिया और खुद वहां से चली गई। कुछ समय बाद संज्ञा की छाया के गर्भ से ही शनि देव का जन्म हुआ, क्योंकि छाया का स्वरूप काला ही होता है इसी वजह से शनि भी श्याम वर्ण हुए।

शनिवार को व्रत क्यों करते हैं?
सप्ताह के सातों का दिन अपना अलग महत्व रखते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार सभी अलग-अलग देवी-देवताओं की आराधना के लिए निर्धारित किए गए हैं। श्रद्धालु को जिस देवी या देवता का भक्त होता है उसे उनसे संबंधित दिन विशेष पूजा-अर्चना, व्रत-उपवास करने होते हैं। इसी तरह जो भी व्यक्ति शनि देव को प्रसन्न करना चाहता है वह शनिवार का व्रत करता है।
 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव एक क्रूर ग्रह माना गया है। साथ ही शनि को न्यायधीश का पद प्राप्त है। शनि देव ही हमारे कर्मों के अनुसार हमें शुभ या अशुभ फल प्रदान करते हैं। हमारे अच्छे कार्यों के लिए अच्छे फल व  गलत कार्यों के लिए शनि देव दंड देते हैं। जाने-अनजाने किए गए गलत कार्यों के बुरे फल ही प्राप्त होते हैं। कई लोगों की कुंडली में शनि अशुभ फल देने वाला होता है। इस वजह से व्यक्ति को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शनि के प्रभाव से विवाह में देरी होती है, धन हानि होती है, समाज में अपमान झेलना पड़ सकता है, चोरी का झूठा आरोप लग सकता है, शारीरिक बीमारी हो सकती है। इन दुष्प्रभावों से बचने के लिए शनि देव की कृपा प्राप्त करना बहुत जरूरी है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-KAK-shani-dev-and-ritual-news-hindi-5465014-NOR.html

Wednesday, November 23, 2016

ऐसे मिलती है सफलता और लक्ष्य होते हैं पूरे

एक बार स्वामी विवेकानंद के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो बहुत दुखी लग रहा था। उस व्यक्ति ने आते ही स्वामीजी के पैरों में गिर पड़ा और बोला कि मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूं, मैं बहुत मेहनत करता हूं, लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाता हूं। उसने विवेकानंद से पूछा कि भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है? मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती हूं, फिर भी कामयाब नहीं हूं।

स्वामीजी उसकी परेशानी समझ गए। उस समय स्वामीजी के पास एक पालतू कुत्ता था, उन्होंने उस व्यक्ति से कहा कि तुम कुछ दूर तक मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ। इसके बाद तुम्हारे सवाल का जवाब देता हूं।

वह व्यक्ति आश्चर्यचकित हो गया, फिर भी कुत्ते को लेकर निकल पड़ा। कुत्ते को सैर कराकर जब वह व्यक्ति वापस स्वामीजी के पास पहुंचा तो स्वामीजी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी चमक रहा था, जबकि कुत्ता बहुत थका हुआ लग रहा था।
स्वामीजी ने व्यक्ति से पूछा कि यह कुत्ता इतना ज्यादा कैसे थक गया, जबकि तुम तो बिना थके दिख रहे हो।
व्यक्ति ने जवाब दिया कि मैं तो सीधा-साधा अपने रास्ते पर चल रहा था, लेकिन कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था और लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता था। हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया है, लेकिन फिर भी इस कुत्ते ने मेरे से कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है इसलिए यह थक गया है।

स्वामीजी ने मुस्करा कर कहा कि यही तुम्हारे सभी प्रश्रों का जवाब है। तुम्हारी मंजिल तुम्हारे आसपास ही है। वह ज्यादा दूर नहीं है, लेकिन तुम मंजिल पर जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और अपनी मंजिल से दूर होते चले जाते हो।

यही बात लगभग हम पर भी लागू होती है। अधिकांश लोग दूसरों की गलतियां देखते रहते हैं, दूसरों की सफलता से जलते हैं। अपने थोड़े से ज्ञान को बढाने की कोशिश नहीं करते हैं और अहंकार में दूसरों को कुछ भी समझते नहीं हैं।

इसी सोच की वजह से हम अपना बहुमूल्य समय और क्षमता दोनों खो बैठते हैं और जीवन एक संघर्ष मात्र बनकर रह जाता है। इस प्रसंग की सीख ये है कि दूसरों से होड़ नहीं करना चाहिए और अपने लक्ष्य दूसरों को देखकर नहीं, बल्कि खुद ही तय करना चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-SEHE-self-help-tips-by-vivekanand-in-hindi-news-hindi-5458041-PHO.html

Tuesday, November 22, 2016

क्यों रखते है शिखा ? क्या है इसकी वैज्ञानिकता ?

हमारे देश भारत में प्राचीन काल से ही लोग सिर पे शिखा रखते आ रहे है ख़ास कर ब्राह्मण और गुरुजन। सिर पर शिखा रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को आर्यों की पहचान तक माना लिया गया। यदि आप ये सोचते है की शिखा केवल परम्परा और पहचान का प्रतिक है तो आप गलत है। सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ी वैज्ञानिकता है जिसे आधुनिक काल में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध भी किया जा चूका है।  आज हम इस लेख में सिर पर शिखा की वैज्ञानिक आधार पर विवेचना करेंगे जिससे आप जान सके की हज़ारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज ज्ञान विज्ञानं में हम से कितना आगे थे।

1. सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग, जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगहोँ(मुण्डन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है)की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से उष्मा व अन्यब्रह्माण्डिय विद्युत-चुम्बकी य तरंगोँ का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति मेँ स्थानीय वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। लेकिन वैज्ञानिकतः मस्तिष्क को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है। क्योँकि शिखा(लगभग गोखुर के बराबर) इसताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणोँ से भलिभाँति परिचित है।

2. जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन कोनियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखाएक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।

3. आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यहनहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं,मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्सेमें होता है और आखिरी है सहस्राह चक्रजो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रणकरने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबावहोने से रक्त प्रवाह भी तेजरहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।

4. ऐसा भी है कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए है दो आँखे, दो कान, दो नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुह )और दसवा द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो सिर में होता है , कहते है यदि प्राण इस चक्र से निकलते है तो साधक की मुक्ति निश्चत है.और सिर पर शिखा होने के कारणप्राण बड़ी आसानी से निकल जाते है. और मृत्यु हो जाने के बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसेहोते है जो आसानी से नहींनिकलते, इसलिए जब व्यक्ति को मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपनेआप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है यदि सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है.

5. शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है।  शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायुहोता है।

योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।  शिखा रखने से मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।
http://www.ajabgjab.com/2014/07/why-have-shikha-or-choti-on-head.html

Monday, November 21, 2016

कालभैरव जयंती आज : इस विधि से करें पूजा, चढ़ाएं नीले फूल

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरवाष्टमी कहते हैं। इस दिन भगवान कालभैरव की पूजा की जाती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने इसी दिन कालभैरव के रूप अवतार लिया था। इस बार कालभैरव अष्टमी 21 नवंबर, सोमवार को है। इस दिन भगवान कालभैरव की विधि-विधान से पूजा करने पर भक्तों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। भगवान कालभैरव का पूजन इस विधि से करें-
पूजन विधि
कालभैरव अष्टमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद समीप स्थित किसी भैरव मंदिर में जाएं। अबीर, गुलाल, चावल, फूल, सिंदूर आदि चढ़ाकर कालभैरव की पूजा करें। नीले फूल चढ़ाने से विशेष लाभ मिलता है। भगवान को भोग के रूप में दही के साथ उड़द के बड़े अर्पित करें। मिठाई का प्रसाद भी चढ़ाएं। सरसो के तेल का दीपक लगाएं। मंदिर में ही बैठकर श्रीकालभैरवाष्टकम का पाठ करें। भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अत: इस दिन कुत्तों को भी मिठाई खिलाएं। इस प्रकार भगवान कालभैरव का पूजन करने से साधक की हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

कालभैरवाष्टकम्
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपंकजं।व्यालयज्ञसूत्रमिंदुशेखरं कृपाकरम् ॥
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबर।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥1
भानुकोटिभास्वरं भावाब्धितारकं परं।नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्॥
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥2
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं।श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्॥
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रतांडवप्रियं।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥3
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तलोकविग्रहं।भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहं।
विनिक्कणन्मनोज्ञहेमकिंकिणीलसत्कटिं।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥4
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं।कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुं॥
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥5
रत्न५पादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं।नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्॥
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥6
अट्टाहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं।दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनं॥
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥7
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं।काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुं॥
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं।काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥8
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं।ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनं॥
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनम्।प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधि ध्रूवम॥9

उग्र है कालभैरव का स्वरूपशिवजी का विश्वेश्वरस्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत है। यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है। रुद्रमाला से सुशोभित, जिनकी आंखों में से आग की लपटें निकलती हैं, जिनके हाथ में कपाल है, जो अति उग्र हैं, ऐसे कालभैरव को मैं वंदन करता हूं।- भगवान कालभैरव की इस वंदनात्मक प्रार्थना से ही उनके भयंकर एवं उग्ररूप का परिचय हमें मिलता है।
तंत्र-मंत्र के ज्ञाता हैं कालभैरव
भगवान भैरवनाथजी तंत्र-मंत्र विधाओं के ज्ञाता हैं। इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है। इनके 52 रूप माने जाते हैं। इनकी कृपा प्राप्त करके भक्त निर्भय और सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। भैरवनाथ अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं। वे सृष्टि की रचना, पालन और संहार करते हैं।
कालभैरव के साथ करें देवी कालिका की पूजा
कालभैरव अष्टमी पर भगवान कालभैरव के साथ देवी कालिका की पूजा-अर्चना एवं व्रत का विधान है। देवी काली की उपासना करने वालों को आधी रात के बाद मां की वैसे ही पूजा करनी चाहिए जैसे दुर्गा पूजा में सप्तमी को देवी कालरात्रि की पूजा होती है।
माता दुर्गा के विभिन्न रूपों के चित्रों में शेर सवार माता के आगे एक ओर हनुमानजी और दूसरी ओर भैरव होते हैं। वास्तव में भैरवजी और हनुमानजी वीर शक्तियां हैं। जब-जब माता दैत्यों का वध करती हैं वीर भैरव और हनुमानजी इन दैत्यों पर अपनी संपूर्ण शक्ति से घात करते हैं।
कालभैरव के पूजन से मिलते हैं ये सुख
भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य की रक्षा होती है। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से कई परेशानियां खत्म होती हैं।
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