Tuesday, February 9, 2016

चार वेद में क्या वर्णन है।


वेदों को सनातन धर्म का आधार माना जाता है। यह शब्द संस्कृत भाषा के "विद्" धातु से बना है। इन्हें हिंदू धर्म का सबसे पवित्र धर्म ग्रंथ माना गया है। इनसे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई है। ऐसी मान्यता है कि इनके मंत्रों को परमेश्वर यानी भगवान ने प्राचीन ऋषियों को सुनाया था। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है।
वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वाचिक परंपरा की सबसे अच्छी रचना है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पिछले चार-पांच हज़ार वर्षों से चली आ रही है।
वेदों के मुख्य रूप से चार प्रकार के हैं
1.
ऋग्वेद
2.
यजुर्वेद
3.
सामवेद
4.
अथर्ववेद
ऋग्वेद- वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण हुआ। यह पद्यात्मक है यानी काव्य रूप में है। ऋग्वेद को मंडल बांटा गया है। इसके मंडल में 10 1028 सूक्त हैं और 11 हजार मंत्र हैं। इस वेद की 5 शाखाएं हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन । ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है। इसे अर्थशास्त्र ऋषि ने बताया है। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग बताई गई है, जो कि 107 स्थानों पर पाई जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने की कथा भी मिलती है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा का आदि की भी जानकारी मिलती है।
यजुर्वेद यह वेद गद्य मय है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य मंत्र हैं, यह वेद मुख्यतः क्षत्रियों के लिए होता है।
यजुर्वेद के दो भाग हैं -
कृष्ण : वैशम्पायन ऋषि का सम्बन्ध कृष्ण से है। कृष्ण की चार शाखाएं हैं।
शुक्ल : याज्ञवल्क्य ऋषि का सम्बन्ध शुक्ल से है। शुक्ल की दो शाखाएं हैं। इसमें 40 अध्याय हैं। यजुर्वेद के एक मंत्र में च्ब्रीहिधान्यों का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अलावा, दिव्य वैद्य और कृषि विज्ञान का भी विषय इसमें मौजूद है।
सामवेद - सामवेद गीतात्मक यानी गीत के रूप में है। चार वेदों में सामवेद का नाम तीसरे स्थान पर आता है। ऋग्वेद के एक मंत्र में ऋग्वेद से भी पहले सामवेद का नाम आने से कुछ विद्वान वेदों को एक के बाद एक रचना न मानकर हर एक को स्वतंत्र मानते हैं। सामवेद में उन गेय छंदों की अधिकता है, जिनका उपयोग गान यज्ञों के समय होता था। 1824 मंत्रों के इस वेद में 75 मंत्रों को छोड़कर शेष सब मंत्र ऋग्वेद से ही लिए गए हैं। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें सविता, अग्नि और इंद्र देवताओं के बारे में जिक्र मिलता है। यज्ञ में गाने के लिए संगीतमय मंत्र हैं, यह वेद मुख्यतः गंधर्व लोगो के लिए होता है। इसमें मुख्य रूप से 3 शाखाएं हैं, 75 ऋचाएं हैं।
अथर्ववेद- इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिए मंत्र हैं। यह वेद मुख्य रूप से व्यापारियों के लिए होता है। इसमें 20 काण्ड हैं। इसके आठ खण्ड हैं जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JMJ-SAS-origin-of-the-veda-4880682-NOR.html

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