श्रीराम नवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और एकादशी आदि पर्व पर शैव व
स्मार्त या वैष्णव शब्द सुने जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि विशेषकर ये दो पर्व
दो दिन मनाए जाते हैं। पंचांग में उल्लेख होता है शैव जन्माष्टमी और स्मार्त
जन्माष्टमी। शैव का अर्थ है शिव की परंपरा या शिव के मानने वाले उपासक। जो शिव
पूजक हैं, वे शैव कहलाते हैं। ये लोग जिस दिन किसी पर्व को
मनाते हैं वह शैव कहलाते हैं, जबकि स्मार्त
वैष्णवों से संबंद्ध है।
वैष्णवों में आचार की दृष्टि से दो भेद हैं स्मार्त और भागवत, जो स्मृतियों में दी गई विधि आचार की व्यवस्था का पालन करते हैं, वे स्मार्त कहलाते हैं। इस अर्थ में स्मार्त वैष्णवों की शाखा है, जबकि शैव शिव उपासकों की। शैव और स्मार्त के आराध्य देव और उपासना पद्धति कई स्तरों पर मिलती –जुलती है तो अनेक स्तरों पर पूरी तरह अलग है। उत्तर भारत में संतों के प्रयास से शैव व वैष्णवों के बीच एकता के प्रयास सफल हुए, लेकिन दक्षिण भारत में अभी भी दोनो मतावलंबी बंटे हुए हैं। दक्षिण के शिवाकांची और विष्णुकांची नगर इसके प्रतीक हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-shiva-and-vaishnava-5053489-NOR.htmlवैष्णवों में आचार की दृष्टि से दो भेद हैं स्मार्त और भागवत, जो स्मृतियों में दी गई विधि आचार की व्यवस्था का पालन करते हैं, वे स्मार्त कहलाते हैं। इस अर्थ में स्मार्त वैष्णवों की शाखा है, जबकि शैव शिव उपासकों की। शैव और स्मार्त के आराध्य देव और उपासना पद्धति कई स्तरों पर मिलती –जुलती है तो अनेक स्तरों पर पूरी तरह अलग है। उत्तर भारत में संतों के प्रयास से शैव व वैष्णवों के बीच एकता के प्रयास सफल हुए, लेकिन दक्षिण भारत में अभी भी दोनो मतावलंबी बंटे हुए हैं। दक्षिण के शिवाकांची और विष्णुकांची नगर इसके प्रतीक हैं।
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