ॐ
भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
भावार्थ:- उस
प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप,
श्रेष्ठ, तेजस्वी,
पापनाशक, देवस्वरूप
परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में
प्रेरित करे।गायत्री भारतीय संस्कृति का सनातन और अनादि मंत्र है। पुराणों में कहा गया है कि परम पिता ब्रह्मा को आकाशवाणी से गायत्री मंत्र मिला था। सृष्टि निर्माण की शक्ति उन्हें इसी मंत्र की साधना से मिली थी। गायत्री की व्याख्या के रूप में ही ब्रह्माजी ने चार वेद रचे। इसलिए गायत्री को वेदमाता कहते हैं। शास्त्रकार इसे वेदों का सार कहते हैं- सर्ववेदानां गायत्री सारमुच्यते।
गायत्री मंत्र के संबंध में कहा गया है
नास्ति गंगासमं तीर्थ न देव: केशवात पर:।गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतो न भविष्यति।।
गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है, कृष्ण के समान कोई
देव नहीं है, गायत्री से श्रेष्ठ जप करने योग्य कोई मंत्र न हुआ है, न होगा। देवी भागवत में कहा गया है कि नृसिंह, सूर्य, वराह, तांत्रिक और वैदिक मंत्रों का अनुष्ठान गायत्री मंत्र
जप किए बिना असफल हो जाता है। गीता में भगवान कृष्ण ने खुद कहा है गायत्री छंद
समाहम यानी मंत्रों में मैं गायत्री मंत्र हूं। इसके मंत्रोच्चार से उन देवों से
संबंधित शरीरस्थ नाड़ियों में प्राणशक्ति बहने लगती है और ब्लड सर्कुलेशन तेज हो
जाता है। जिससे शरीर के सारे रोग व परेशानियां जलकर खत्म हो जाती हैं।
शास्त्रों में कहा गया है कि गायत्री मंत्र का श्रद्धा से विधि के अनुसार जप
करने से शारीरिक, भौतिक और आध्यात्मिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है। जीवन
में नई शक्ति और आशाओं का संचार होता है। बुद्धि, आत्मबल, नम्रता, संयम, प्रेम और शांति
जैसे गुणों में बढ़ोत्तरी होती है। महाभारत में एक प्रसंग है शैय्या पर पड़े भीष्म
पितामह युधिष्ठिर को समझाते हैं कि जो व्यक्ति गायत्री मंत्र का जप करता है, उनको धन, पुत्र, घर आदि भौतिक चीजें
मिलती हैं। दुष्ट, राक्षस, अग्नि, सांप, हवा, पानी आदि किसी का
डर नहीं रहता। यह अकाल मौत और सभी तरह के क्लेशों को भी खत्म करता है। http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-why-gayatri-mantra-the-most-recognized-5061697-NOR.html
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