अश्विन मास
के शुक्ल पक्ष को शरद पूर्णिमा है। इस बार
की शरद पूर्णिमा बहुत ही खास हैं। यह पूर्णिमा वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा से
श्रेष्ठ मानी गई है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें अमृत रस के समान
होती है,
क्योंकि वह 16 कलाओं से
परिपूर्ण होती है। इतना ही नहीं इस दिन और भी खास होता है, क्योंकि इस
दिन महालक्ष्मी का व्रत और श्री कृष्ण से रासलीला रची थी।
नारद पुराण
के अनुसार माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसके साथ ही वह
उल्लू वाहन में बैठकर प्रथ्वी के भ्रमण में भी निकलती है। मां देखती है कि रात के
समय कौन जग रहा है और कौन नहीं। इस रात जगकर जो भी मां की उपासना करते है उनके ऊपर
मां की असीम कृपा होती है। साथ ही यह व्रत लक्ष्मी जी को प्रसन्न करता है।
श्री कृष्ण ने किया रासलीला
श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्द में रास पंचाध्यायी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इसी शरद पूर्णिमा को यमुना पुलिन में गोपिकाओं के साथ महारास के बारे में बताया गया है।
श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्द में रास पंचाध्यायी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इसी शरद पूर्णिमा को यमुना पुलिन में गोपिकाओं के साथ महारास के बारे में बताया गया है।
ये है कहानी
पुराणों के अनुसार एक बार गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की।श्री कृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रास का आयोजन किया। इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया।सभी गोपियां सज-धज कर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था।यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई जितनी गोपियां थीं, उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य एवं प्रेमानंद शुरू हुआ। माना जाता है कि आज भी शरद पूर्णिमा की रात में भगवान श्री कृष्ण गोपिकाओं के संग रास रचाते हैं। इसी कारण शरद पूर्णिमा के दिन रासलीला आज भी होती है।
पुराणों के अनुसार एक बार गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की।श्री कृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रास का आयोजन किया। इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया।सभी गोपियां सज-धज कर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था।यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई जितनी गोपियां थीं, उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य एवं प्रेमानंद शुरू हुआ। माना जाता है कि आज भी शरद पूर्णिमा की रात में भगवान श्री कृष्ण गोपिकाओं के संग रास रचाते हैं। इसी कारण शरद पूर्णिमा के दिन रासलीला आज भी होती है।
इस कारण श्री कृष्ण ने चुना इस
दिन को
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार माना जाता है कि चंद्रमा मन कारक है। इसे सौन्दर्य, कला एवं सहित्य को भी प्रभावित करने वाला माना गया है। साथ ही जल तत्व का भी कारक है। शरद पूर्णिमा को बलवान चन्द्रमा होने के कारण मानसिक बल प्राप्त होता है जो जीवन के चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को पूरा करने में सहायक होता है। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को महारास के लिए चुना गया। ताकि प्रेम करने वाला और प्रेम को प्राप्त करने वाला दोनों संतुष्ट हो सके।
http://www.khabarindiatv.com/lifestyle/religion-sharad-purnima-2017-lord-krishna-do-rasleela-in-sharad-purnimas-night-in-nidhvan-vrindavan-532505?page=1ज्योतिषशास्त्र के अनुसार माना जाता है कि चंद्रमा मन कारक है। इसे सौन्दर्य, कला एवं सहित्य को भी प्रभावित करने वाला माना गया है। साथ ही जल तत्व का भी कारक है। शरद पूर्णिमा को बलवान चन्द्रमा होने के कारण मानसिक बल प्राप्त होता है जो जीवन के चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को पूरा करने में सहायक होता है। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को महारास के लिए चुना गया। ताकि प्रेम करने वाला और प्रेम को प्राप्त करने वाला दोनों संतुष्ट हो सके।
No comments:
Post a Comment