कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी कहते हैं। दिवाली के लगभग 10 दिनों बाद और कार्तिक मास में होने वाली इस पूजा को आंवला नवमी भी कहते
हैं। कार्तिक मास में वैसे तो स्नान का अपना ही महत्व होता है, लेकिन इस दिन स्नान करने से अक्षय प्राप्त होता है। हिंदू रीति रिवाज में
इस दिन शादी-शुदा महिलाएं व्रत रखती हैं और कथा भी सुनती हैं।
क्या है महत्व
इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न दान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। अक्षय नवमी के दिन
आंवले के वृक्ष की पूजा करने का नियम है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले का
वृक्ष भगवान विष्णु को अतिप्रिय है,
क्योंकि इसमें लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए
इसकी पूजा करना माना विष्णु लक्ष्मी की पूजा करना। इस दिन व्रत करने से शादीशुदा
औरतों की सभी मनोकामना पूरी होती है।
आंवला के पेड़ के नीचे साफ सफाई करके पूजा करें।
क्या करना चाहिए
इस दिन गुप्त दान करना शुभ माना जाता है।
आंवला के पेड़ के नीचे 10 दिनों तक भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दीया
जलाया जाता है, एक धागा बांधकर मनोकामनाएं मांगी जाती है। परिक्रमा
कर रक्षा सूत्र बांधा जाता है। पंडितों का मानना है कि ये पूजा सालों से चली आ रही
है। इसी पेड़ के नीचे बैठकर व्रती खाना भी खाती हैं। ये तिथि बहुत ही शुभ होती है।
इसलिए इस दिन कई शुभ काम शुरू किए जाते हैं। नवमी के दिन जगद्धात्री पूजा होती है।
पूरे दिन महिलाएं व्रती रहती हैं।
इस विधि से करें आंवला
वृक्ष का पूजन
आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ
में जल, चावल,
फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प
करें।
नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर
खाने का विशेष महत्व है। यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर
में भोजन बनाकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के बाद भोजन करना चाहिए।
भोजन में सुविधानुसार खीर,
पूड़ी या मिष्ठान्न हो सकता है।
आंवले के पेड़ के नीचे साफ सफाई करें, धो लें और फिर पूजा करके नीचे बैठकर खाएं। अगर पेड़ ना मिले तो उस दिन
आंवला जरूर खाएं। बहुत शुभ होता है।
आंवले का रस मिलाकर नहाएं।
ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नेगेटिव ऊर्जा होगी वह समाप्त हो
जाएगी।सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ौतरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी
लक्ष्मी का पूजन करें। इस तरह मिलेंगे पुण्य, कटेंगे
पाप।
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